Police encounter deaths: 5 साल में पुलिस एनकाउंटर में 655 मौतें... यूपी नहीं, ये राज्य है पहले नंबर पर

बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने पुलिस एनकाउंटर में हुई मौतों (Police encounter deaths in India) को लेकर सवाल किया था. इसके जवाब में गृह मंत्रालय ने बताया है कि 1 जनवरी 2017 से 31 जनवरी 2022 के बीच देश में पुलिस एनकाउंटर में 655 लोगों की मौत हुई है.

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सरकार ने पुलिस एनकाउंटर में हुई मौतों का ब्योरा दिया है. (फाइल फोटो-PTI) सरकार ने पुलिस एनकाउंटर में हुई मौतों का ब्योरा दिया है. (फाइल फोटो-PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 फरवरी 2022,
  • अपडेटेड 3:05 PM IST
  • वरुण गांधी के सवाल पर सरकार का जवाब
  • छत्तीसगढ़ में 191 तो यूपी में 117 मौतें हुईं

Deaths in Police Encounter: देश में पुलिस एनकाउंटर में होने वाली मौतों पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. पिछले कुछ सालों से ऐसा माना जाता रहा है कि उत्तर प्रदेश में पुलिस एनकाउंटर में सबसे ज्यादा मौतें हुईं हैं. लेकिन आंकड़े अलग बात कहते हैं. 

लोकसभा में बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने पुलिस एनकाउंटर में हुई मौतों को लेकर सवाल किया था. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने इसका जवाब दिया है. उन्होंने बताया है कि 5 साल में देश में पुलिस एनकाउंटर में 655 लोग मारे गए हैं. ये आंकड़ा 1 जनवरी 2017 से 31 जनवरी 2022 तक के हैं. 

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केंद्र सरकार ने बताया है कि 5 साल में देश में पुलिस एनकाउंटर में सबसे ज्यादा मौतें छत्तीसगढ़ में हुई हैं. वहां 191 लोग मारे गए हैं. दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है जहां 117 लोगों की मौत हुई है. 

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भारत में एनकाउंटर को लेकर क्या है नियम?

- संविधान में कहीं भी एनकाउंटर का जिक्र नहीं है. कानून में एनकाउंटर को वैध ठहराने का प्रावधान नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे नियम जरूर हैं जो पुलिस को अपराधियों पर हमला करने और इस दौरान अपराधी की मौत को सही ठहराने का अधिकार देते हैं.

- सीआरपीसी की धारा 46 के मुताबिक, अगर कोई अपराधी खुद को गिरफ्तारी से बचाने की कोशिश करता है या पुलिस की गिरफ्त से भागने की कोशिश करता है या फिर पुलिस पर हमला करता है तो ऐसे हालात में पुलिस जवाबी हमला कर सकती है. 

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- पुलिस एनकाउंटर या फायरिंग में हुई मौत की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कुछ गाइडलाइंस तय की हुई हैं. इसके मुताबिक, ऐसे मामले में तुरंत FIR दर्ज होनी चाहिए और इसकी जांच सीआईडी या दूसरे पुलिस स्टेशन की टीम से करवाना जरूरी है. 

- सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक, पुलिस फायरिंग में हुई हर मौत की मजिस्ट्रियल जांच होनी चाहिए. ऐसे मामलों की सूचना बिना देरी किए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग को देना जरूरी है.

- इसके अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भी कुछ गाइडलाइंस हैं. इनमें कहा गया है कि पुलिस कार्रवाई के दौरान हुई मौत की जानकारी 48 घंटे के भीतर आयोग को देना जरूरी है. इसके तीन महीने बाद एक विस्तृत रिपोर्ट पेश करना होगा. ये भी कहा गया है कि अगर जांच में पुलिस दोषी पाई जाती है तो मारे गए व्यक्ति के परिजनों को मुआवजा देना होगा.

 

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