होने वाला था तलाक, पति ने की दूसरी शादी, बॉम्बे HC में पहुंचा यह मुश्किल केस

इस कपल ने 13 मार्च, 2011 को अकोला में शादी की थी. लेकिन शादी के तुरंत बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. जिसके परिणामस्वरूप पति ने तलाक का मुकदमा दायर किया. 16 सितंबर, 2014 को अकोला की फैमिली कोर्ट के समक्ष क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए कार्यवाही के लिए पति ने अर्जी लगाई.

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हाई कोर्ट ने इस मामले में अहम टिप्पणी की है हाई कोर्ट ने इस मामले में अहम टिप्पणी की है

विद्या

  • मुंबई,
  • 18 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 10:30 PM IST
  • कपल ने 13 मार्च, 2011 को अकोला में की थी शादी
  • 16 सितंबर, 2014 को पति ने लगाई थी तलाक की अर्जी
  • पति की दूसरी शादी को लेकर डीवी एक्ट का नया केस

बॉम्बे हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर तलाक का मामला फाइनल स्टेज पर है, तो ऐसे में पति की दूसरी शादी पत्नी की लिए क्रूरता नहीं हो सकती है. यह मामला एक दंपति के अलग होने से जुड़ा है. जिसमें तलाक का केस फाइनल हो ही गया है.

दरअसल, इस कपल ने 13 मार्च, 2011 को अकोला में शादी की थी. लेकिन शादी के तुरंत बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. जिसके परिणामस्वरूप पति ने तलाक का मुकदमा दायर किया. 16 सितंबर, 2014 को अकोला की फैमिली कोर्ट के समक्ष क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए कार्यवाही के लिए पति ने अर्जी लगाई. 

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अदालत इस नतीजे पर पहुंची कि पत्नी ने वास्तव में पति पर अत्याचार किया था. इसके बाद अदालत ने वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए दाखिल की गई पत्नी की अर्जी भी खारिज कर दी. इसके बाद पत्नी ने बॉम्बे हाई कोर्ट के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट में भी अपील की, लेकिन दोनों ही जगह पर उसकी अपील खारिज कर दी गई.

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आखिर में उस पत्नी ने मई 2016 में अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा अधिनियम (डीवी एक्ट) के तहत एक आवेदन दायर किया और मासिक रखरखाव, मुआवजा, निवास और अन्य लाभ सहित राहतों की मांग की. पत्नी ने तलाक की डिक्री और वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए आवेदन की कार्यवाही में लगाए गए आरोपों के समान ही आरोप लगाए थे और उसके बाद दावा किया था कि पति ने दूसरी शादी करके उसके साथ क्रूरता का व्यवहार किया.

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पति ने एक याचिका दायर कर पत्नी की दलील का विरोध किया और दोनों के बीच पहले दौर की मुकदमेबाजी की बात कही. हालांकि उस साल के अंत तक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने पति की अर्जी खारिज कर दी. इससे क्षुब्ध पति और परिवार के अन्य सदस्य जिनके खिलाफ घरेलू हिंसा का मामला दर्ज किया गया था, ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

जबकि पत्नी की तरफ से वहां कोई प्रतिनिधि नहीं गया. बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ के न्यायमूर्ति मनीष पिटाले ने देखा कि तलाक की डिक्री दी गई और पत्नी द्वारा दायर वैवाहिक अधिकारों की बहाली की याचिका खारिज कर दी गई थी.

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अब अदालत के सामने सवाल यह था कि क्या तलाक की डिक्री के बाद पति के दूसरी शादी करने को डीवी एक्ट के प्रावधानों के तहत घरेलू हिंसा कहा जा सकता है या नहीं? अदालत के समक्ष एक सवाल यह भी था कि क्या डीवी एक्ट के प्रावधानों के तहत पत्नी द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग कहा जा सकता है.

न्यायमूर्ति पिटाले ने कहा कि पति और पत्नी की शादी एक समय पर हुई थी और इस तरह उनके घरेलू संबंध थे, लेकिन डीवी एक्ट को "तलाक की कार्यवाही अंतिम रूप से प्राप्त करने और उसके खिलाफ निष्कर्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद" लागू नहीं किया जा सकता. ऐसे में तलाक की कार्यवाही अंतिम चरण में पति की दूसरी शादी डीवी एक्ट के तहत क्रूरता नहीं हो सकती.

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