जापान में एक क्रूर अपराधी को सजा-ए-मौत सुनाई गई है. 30 साल के नशेड़ी युवक सातोशी युमात्सु ने साल 2016 में चाकू से ताबड़तोड़ हमला कर 19 दिव्यांगों को मौत के घाट उतारा दिया था. युमात्सु ने कोर्ट में अपना अपराध स्वीकार किया कि उसने मानसिक रोगियों के एक केयर सेंटर में कई लोगों पर चाकू से वार किए थे. इस घटना को जापान के इतिहास में दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सबसे बुरे हत्याकांडों में से एक माना जाता है.
सातोशी युमात्सु ने अपने बयान में कहा कि वो इस हमले में सभी विकलांगों को मौत के घाट उतारना चाहता था. वारदात के बाद सातोशी ने खून से सना चाकू लेकर खुद को पुलिस के हवाले कर दिया था. जांच में पता चला कि उसने कुछ महीने पहले ही केयर होम की नौकरी छोड़ दी थी. इस नरसंहार के पीछे उसका मकसद था कि विकलांग लोग सिर्फ और सिर्फ मुसीबत और दुख पैदा करते हैं. ऐसा करके वो इस मुसीबत से हर किसी को छुटकारा देना चाहता था.
सातोशी युमात्सु ने 26 लोगों को चाकू से घायल किया गया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि युमात्सु किसी भी तरह की दया का पात्र नहीं है. मुख्य न्यायाधीश कियोशी आनुमा ने कहा, उमात्सु ने कभी भी इस दिल दहला देने वाली हिंसा में अपना हाथ होने की बात से इनकार नहीं किया. ना ही उसे अपने किए पर कोई पछतावा था, लेकिन उनके वकीलों ने उसके दोषी नहीं होने की दलील दी.
कोर्ट में बचाव पक्ष ने अपनी दलील में कहा कि सातोशी युमात्सु मारिजुआना के इस्तेमाल से मानसिक विकार का शिकार हो गया था. वहीं, अभियोजकों ने सातोशी के लिए मौत की सजा मांगी थी. सातोशी ने हत्या सहित छह आरोपों का सामना किया. उसने कथित तौर पर मुकदमे से पहले कहा कि वह फैसले के खिलाफ कोई अपील नहीं करेगा. हालांकि, उसने तर्क दिया कि उसे मौत की सजा नहीं मिलनी चाहिए.
युमात्सु को फांसी की सजा सुनाते हुए जज कियोशी औनुमा ने कहा, ''इस अपराध को जान-बूझकर अंजाम दिया गया था और हत्या करने के इरादे का अदालत के पास पुख्ता सबूत हैं.'' पीड़ितों के परिजनों से खचाखच भरी अदालत में उन्होंने उस घटना को सबसे बड़ा 'नरसंहार' करार दिया. इस दौरान काले लिबास में युमात्सु अदालत में चुपचाप बैठा हुआ था. अदालत में उसने कहा था कि सज़ा की अपील करने का उसका कोई इरादा नहीं है.