मजाक उड़ा तो क्राइम की दुनिया में उतरी जुड़वा बहनें, फिर एक को बचाने के लिए दूसरी ने चुन ली मौत

कहानी उन दो जुड़वा बहनों की जिन्हें घर, परिवार और दोस्त किसी से भी कोई मतलब नहीं था. दोनों बस अपनी ही दुनिया में रहती थीं. यहां तक कि इनकी अपनी एक भाषा भी थी. जिसे सिर्फ वही दोनों बहनें ही समझ सकती थीं. एक कमरे में बंद रहकर दोनों क्राइम स्टोरीज लिखतीं फिर उन्हें अंजाम देतीं. यही नहीं, एक बहन की जिंदगी बचाने के लिए दूसरी बहन ने तो अपनी जान तक दे दी. आखिर कौन थी वो बहनें और क्यों ऐसा करती थीं. चलिए जानते हैं विस्तार से...

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जून और जैनिफर गिबन्स (फाइल फोटो) जून और जैनिफर गिबन्स (फाइल फोटो)

तन्वी गुप्ता

  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2023,
  • अपडेटेड 7:48 AM IST

जुड़वा भाई या बहन होना किसी के लिए भी सौभाग्य की बात होती है. लेकिन आज हम उन दो बहनों के बारे में जानेंगे जिनका जुड़वा होना उन्हीं के लिए घातक बन गया. दोनों में से एक बहन को अपनी जान से हाथ गंवाना पड़ा. कौन थी वो बहनें और क्या हुआ था उनके साथ ऐसा चलिए जानते हैं...

11 अप्रैल 1963 का दिन... यमन (Yemen) के ब्रिटिश फोर्स एडन में गिबन्स परिवार में दो जुड़वा बहनों का जन्म हुआ. नाम रखा गया जून गिबन्स (June Gibbons) और जैनिफर गिबन्स (Jennifer Gibbons). मां ग्लोरिया और पिता ओबरे अपनी दोनों ही बेटियों को बहुत प्यार करते थे.

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लेकिन अश्वेत होने के कारण स्कूल में उन्हें काफी परेशान किया जाता. क्योंकि पूरे स्कूल में बस दोनों बहनें ही अश्वेत थीं. उन्हें स्कूल में काफी चिढ़ाया जाता, अलग बैठाया जाता और जमकर मजाक उड़ाया जाता. इस कारण वे दोनों सिर्फ एक दूसरे से ही बात करतीं. किसी से भी उनकी दोस्ती नहीं थी. धीरे-धीरे दोनों बहनों ने आपस में बात करने के लिए एक नई भाषा तक बना डाली. जिसे सिर्फ वही दोनों समझ सकती थीं और कोई नहीं. यहां तक कि उनकी मां ग्लोरिया भी उनकी भाषा नहीं समझ पाती थी.

एक समय तो ऐसा आया कि जून और जैनिफर ने तंग आकर स्कूल जाना ही छोड़ दिया. माता-पिता ने सोचा कि अगर उन दोनों को अलग-अलग स्कूल में डाल दिया जाए तो शायद वे थोड़ी सोशल हो जाएं. फिर दोनों को अलग-अलग स्कूल में डाल दिया. लेकिन यहां तो बात और ज्यादा बिगड़ गई. वे दोनों सोसायटी से और भी अलग होने लगीं और इन में सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) के लक्षण नजर आने लगे.

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बता दें, सिजोफ्रेनिया एक प्रकार का मानसिक विकार है. जिसमें रोगी को लगने लगता है कि कोई उनके विचारों को दूर बैठे नियंत्रित कर रहा है. इसमें उन्हें तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं. इस बीमारी के परिणामस्वरूप रोगी को ऐसी चीजें दिखने लगती हैं जो वाकई में हैं ही नहीं. आखिरकार डॉक्टर और परिवार इस नजीते पर पहुंचा कि दोनों बहनों का साथ रहना ही सही है.

क्राइम स्टोरी लिखती थीं दोनों बहनें
घर वापसी होने के बाद दोनों बहनों ने अपने कमरे से बाहर निकलना ही बंद कर दिया. दोनों अपने कमरे में बैठकर खिलौनों से खेलतीं तो कभी नोवेल लिखतीं. कभी कोई नाटक बनातीं तो कभी कविताएं लिखतीं. उनके हर लेखन में अग्रेशन नजर आता.

ज्यादातर दोनों बहनें क्राइम स्टोरी लिखतीं. पेप्सी-कोला एडिक्ट (Pepsi Cola Addict) जून द्वारा ही लिखा गया था. जिसमें एक 15 साल के लड़के की कहानी बताई गई है. इसमें उसकी एक प्रेमिका है. एक अच्छा दोस्त है जो उसके साथ क्रूरता करता है.

इसी तरह जैनिफर द्वारा लिखे पगिलिस्ट (Pugilist) में एक ऐसे डॉक्टर की कहानी है जो अपने बेटे को बचाने के लिए अपने ही कुत्ते को मारकर उसका दिल ट्रांसप्लांट करता है. जिसके बाद कुत्ते की आत्मा डॉक्टर के बेटे में आ जाती है. फिर वह अपने पिता से बदला लेता है.

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दोनों ने असल में ही क्राइम करना शुरू कर दिया
उनकी दोनों किताबें पब्लिश हुईं. लेकिन उनकी लिखी बाकी कोई भी कहानी कभी पब्लिश नहीं हुईं. इससे जून-जैनिफर को बहुत निराशा होने लगीं. अपनी किताबों से फेमस नहीं हो सकीं तो उन्होंने सोचा कि कुछ तो ऐसा करना होगा जिससे वे दुनिया की नजरों में आ सकें. फिर उन्होंने क्राइम करना शुरू कर दिया.

पहले तो उन्होंने छोटी-मोटी चोरियां कीं. लेकिन धीरे-धीरे सोसायटी के प्रति उनकी नफरत और बढ़ने लगी और उन्होंने लोगों के घरों में आग लगानी भी शुरू कर दी. उन्होंने ड्रग्स लेना भी शुरू कर दिया. एक बार तो दोनों पकड़ी भी गईं. जिसके चलते कोर्ट ने उन्हें मनोरोगी घोषित कर ब्रोडमोर हॉस्पिटल भेज दिया.

जून की डायरी में हुआ चौंकाने वाले खुलासे
जून की डायरी में उसकी लिखी बातों से कुछ नए ही खुलासे हुए. जून ने लिखा था कि मेरी तरह परेशान शायद ही कोई इस दुनिया में होगा. मेरे लिए सबसे बड़ी दुश्मन मेरी खुद की बहन है. हम दोनों एक दूसरे की आंखों में चुभने लगे हैं. मैं कभी-कभी सोचती हूं कि क्या मुझे कभी मेरी बहन से निजात मिल पाएगी? क्या मेरी परछांई के बिना मैं रह पाऊंगी? क्या मैं कभी उससे आजाद हो पाऊंगी या मरने के लिए छोड़ दी जाऊंगी?

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असल में दोनों की बहनें एक दूसरे को मार देना चाहती थीं. जैनिफर ने जून का गला दबाने की कोशिश की थी और जून ने उसे नदी में डुबोने की कोशिश की थी. असल में उनका मानना था कि उनमें से किसी एक की जिंदगी तभी सुधर सकती है अगर दूसरे की मौत हो जाए. लेकिन दोनों ने इस बात को भी स्वीकार कर लिया था कि उन्हें कभी एक दूसरे से छुटकारा नहीं मिल सकता.

11 सालों तक भी नहीं आया कोई सुधार
हॉस्पिटल में इलाज के दौरान दोनों में से एक बहन एक दिन खाना खाती और दूसरे दिन भूखी रहती. दूसरी बहन भी ऐसा ही करती. दोनों का अलग-अलग कमरों में इलाज चल रहा था. लेकिन दोनों ही हमेशा एक ही पॉजिशन में पाई जाती थीं. ये सिलसिला अगले 11 सालों तक चला. फिर भी दोनों की हालत वैसी ही थी. दोनों का अब भी यही मानना था कि किसी एक बहन की मौत के बाद ही दूसरी बहन की जिंदगी सुधर सकती है.

जैनिफर ने कहा- मुझे मरना होगा
आखिरकार जैनिफर ने फैसला किया कि यह कुर्बानी वह खुद देगी. हॉस्पिटल में रहने के दौरान उनकी मुलाकात जर्नलिस्ट मारजोरी वैलेस (Marjorie Wallace) से हुई. वह उन पर बायोग्राफी लिख रही थीं. दोनों बहनें न जाने क्यों पर मारजोरी को अपना हमदर्द समझने लगी थीं. वे उससे ही खुलकर अपनी बातें करती थीं. बता दें, मारजोरी की यह किताब 'The Silent Twins' 1986 में पब्लिश हुई थी. जैनिफर ने ही मारजोरी से कहा था कि मुझे लग रहा है कि मुझे ही मरना होगा.

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9 मार्च 1993 के दिन दोनों बहनों को कैसवेल क्लिक भेजा जा रहा था. इस दौरान रास्ते में ही जैनिफर की तबीयत अचानक बिगड़ने लगी और बाद में उसकी मौत हो गई. The Guardian के मुताबिक, जून ने एक इंटरव्यू में बताया कि जैनिफर को एक दिन पहले से ही ठीक नहीं लग रहा था. 9 मार्च को क्लिनिक जाते समय जैनिफर उसकी गोद में ही सिर रखकर सोई थी. लेकिन उसकी आंखें खुली हुई थीं.

आज तक जैनिफर की मौत बनी हुई है रहस्य
जब जैनिफर का पोस्टमार्टम करवाया गया तो डॉक्टर्स भी हैरान रह गए. न उसके शरीर में को ड्रग मिला और न ही कोई जहर. यह एक रहस्यमयी मौत थी. उसके साथ क्या हुआ किसी को आज तक कुछ भी पता नहीं चल पाया है. वहीं, जून आज भी जिंदा है और एक नॉर्मल जिंदगी जी रही है.

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