दिल्ली पुलिस ने फर्जी डिग्री रैकेट का किया भंडाफोड़, महिला समेत दो आरोपी गिरफ्तार

दिल्ली पुलिस ने बुधवार को एक फर्जी एजुकेशनल डिग्री रैकेट का भंडाफोड़ किया है. इस मामले में एक महिला समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. आरोपियों के पास से कई फर्जी डिग्री सर्टिफिकेट जब्त किए गए हैं. उन्होंने गुरुग्राम के एक आईटी कर्मचारी से ग्रेजुएशन की डिग्री जारी करने के नाम पर 1.55 लाख रुपए से अधिक की ठगी की थी.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 जून 2025,
  • अपडेटेड 7:27 PM IST

दिल्ली पुलिस ने बुधवार को एक फर्जी एजुकेशनल डिग्री रैकेट का भंडाफोड़ किया है. इस मामले में एक महिला समेत दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है. आरोपियों के पास से कई फर्जी डिग्री सर्टिफिकेट जब्त किए गए हैं. उन्होंने गुरुग्राम के एक आईटी कर्मचारी से ग्रेजुएशन की डिग्री जारी करने के नाम पर 1.55 लाख रुपए से अधिक की ठगी की थी. पुलिस रैकेट की जांच कर रही है. 

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एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पीड़ित एक संविदा कर्मचारी था, जिसे स्थायी करने की प्रक्रिया चल रही थी. उसके पास कॉलेज की मार्कशीट थी, लेकिन उसकी कंपनी ने उसकी औपचारिक डिग्री की प्रति मांगी, जो उसके पास नहीं थी. एक सहकर्मी के कहने पर उसने 34 वर्षीय कपिल जाखड़ से संपर्क किया. उसने दावा किया कि वह उसे डिग्री दिलाने में मदद कर सकता है.

कपिल जाखड़ ने शुरू में करीब 30 हजार रुपए मांगे, लेकिन धीरे-धीरे उसने कई लेन-देन में पीड़ित से 1.55 लाख रुपये ऐंठ लिए. उसने आखिरकार एक बिना हस्ताक्षर वाली बीए की डिग्री भेजी, जिसे पीड़ित के नियोक्ता ने अमान्य पाया. इसके बाद पीड़ित ने आरोपी से संपर्क करने की कोशिश की तो उसने जवाब देना बंद कर दिया. मार्च में उसने उसके मोबाइल नंबर को ब्लॉक कर दिया.

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पीड़ित की शिकायत के आधार पर आरोपी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई. इसके बाद उसको हरियाणा के भिवानी में उसके पैतृक गांव से गिरफ्तार किया गया. उससे पूछताछ के बाद पुलिस को उसके साथी 33 वर्षीय दामिनी शर्मा का पता चला, जिसे दिल्ली के कड़कड़डूमा इलाके से पकड़ा गया. पुलिस ने उसके मोबाइल फोन में डिजिटल रूप से संग्रहीत सैकड़ों फर्जी डिग्रियां बरामद की हैं.

डीसीपी ने कहा, "हमने दोनों आरोपियों से चार मोबाइल फोन और सात सिम कार्ड जब्त किए हैं. आरोपी एक रैकेट चला रहे थे, जिसमें वे विभिन्न विश्वविद्यालयों से जाली डिग्रियां बनाते थे. वे बड़ी रकम के बदले में इन डिग्रियों को बेखबर पीड़ितों को बेच रहे थे. पीड़ितों की पहचान करने और फर्जी दस्तावेज सिंडिकेट के पीछे नेटवर्क का पता लगाने के लिए आगे की जांच चल रही है.''

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