महाराष्ट्र के ठाणे में साइबर पुलिस ने 75.48 करोड़ रुपए के एक GST फ्रॉड केस का खुलासा किया है. आरोप है कि मुंबई के अंधेरी इलाके में रहने वाले एक व्यक्ति ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक लैपटॉप सेल्स सर्विस प्रोफेशनल की ऑनलाइन पहचान का दुरुपयोग करते हुए टैक्स सिस्टम में करोड़ों रुपए का हेरफेर किया. पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करके जांच शुरू कर दी है.
जानकारी के मुताबिक यह हाईटेक फ्रॉड नवंबर 2024 से अप्रैल 2025 के बीच अंजाम दिया गया. आरोपियों ने बेहद योजनाबद्ध तरीके से लैपटॉप सेल्स प्रोफेशनल और उसके दोस्त का भरोसा जीता. उन्होंने दोनों को यह यकीन दिलाया कि वे उनकी मदद से ऑनलाइन GST फाइलिंग करेंगे. इसके बाद आरोपियों ने उसका यूजर आईडी और पासवर्ड हासिल कर फर्जीवाड़े का खेल शुरू कर दिया.
पुलिस की जांच में सामने आया है कि इन्हीं क्रेडेंशियल्स का इस्तेमाल कर आरोपियों ने पीड़ितों के GST नंबरों के खिलाफ कई फर्जी या शेल कंपनियों के नाम पर झूठे बिल जमा किए. इन फर्जी बिलों के जरिए कुल 75 करोड़ 48 लाख 42 हजार 87 रुपए का ट्रांजैक्शन वॉल्यूम बनाया गया. सिस्टम में ऐसा दिखाया गया जैसे करोड़ों रुपए का कारोबार हुआ हो, जबकि असल में ये घोटाला था.
इस मामले में शिकायत दर्ज कराने वाले 33 साल के पीड़ित ने 31 अक्टूबर को पुलिस को बताया कि उसे और उसके दोस्त को यह धोखाधड़ी तब समझ आई जब उनके नाम से फर्जी GST क्लेम के नोटिस आने लगे. उन्होंने जैसे ही अकाउंट की जांच कराई, पूरा खेल सामने आ गया. किसी ने उनकी ID से करोड़ों का फर्जीवाड़ा कर डाला था. मुख्य आरोपी मुंबई के अंधेरी का रहने वाला है.
ठाणे साइबर पुलिस ने शिकायत के आधार पर सभी आरोपियों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की संबंधित धाराओं के तहत धोखाधड़ी और जालसाजी का केस दर्ज कर लिया है. एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ''यह एक सोफिस्टिकेटेड साइबर और फाइनेंशियल क्राइम लगता है. इसमें फर्जी GST क्लेम फाइल करने के लिए गोपनीय ऑनलाइन क्रेडेंशियल्स का गलत इस्तेमाल किया गया है.''
साइबर सेल अब शेल कंपनियों के डिजिटल फुटप्रिंट और फाइनेंशियल ट्रेल का पता कर रही है. यह सिर्फ GST फर्जीवाड़े का मामला नहीं बल्कि एक बड़े साइबर नेटवर्क का हिस्सा हो सकता है, जो असली यूजर्स की डिजिटल पहचान का इस्तेमाल कर सरकारी खजाने को चूना लगाता है. जांच टीम अब यह पता लगाने में जुटी है कि आरोपियों ने यह गोपनीय डेटा कैसे हासिल किया था.
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