आजाद हिंदुस्तान में पहली बार किसी महिला को फांसी देने की तैयारी की जा रही है. ये फांसी उत्तर प्रदेश के मथुरा जेल में दी जानी है. दरअसल, मथुरा जेल प्रदेश की एकमात्र जेल है जहां पर महिला फांसी घर है. खास बात ये है कि इस जेल में सिर्फ एक ही फांसी घर है और वो महिलाओं के लिए है. पुरुषों के लिए इस जेल में फांसी घर नहीं बनाया गया है.
आजतक को मथुरा के इस फांसी घर की दो तस्वीरें प्राप्त हुई हैं, जिसे देखकर फांसी घर की हालत देखी जा सकती है. चूंकि आजाद भारत में कभी किसी महिला को फांसी ही नहीं दी गई इसलिए ये फांसी घर भी शायद ही कभी खुला हो. लेकिन जैसे ही राष्ट्रपति ने शबनम की दया याचिका खारिज की, उसके बाद जेल प्रशासन ने सबसे पहले उस कंपाउंड का निरीक्षण किया जहां पर फांसी घर बना है.
इन तस्वीरों में देखा जा सकता है कि फांसी घर के चारों तरफ एक ऊंची चहारदीवारी है और बीच में वो तख्त है जिस पर मृत्युदंड पाने वाले को लटकाया जाता है. फांसी घर का कंपाउंड करीब 400 मीटर का है. ऐसे में आसपास की खाली जमीन में क्यारियां बनी हैं जिनमें सब्जी भी उगाई जाती है.
150 साल पुराना फांसी घर
मथुरा जेल का ये फांसी घर 1870 में अंग्रेजों ने बनवाया था. यानी आज से करीब 150 साल पहले इसे बनाया गया था. लेकिन 1947 से लेकर अब तक यहां किसी भी महिला को फांसी नहीं दी गई है और अब शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद मथुरा जेल के इस फांसी घर में अचानक से सरगर्मी तेज हो गई है.
हालांकि, अभी फांसी की तारीख तय नहीं है फिर भी प्रशासन अपनी तैयारियों में जुट गया है. दरअसल, रामपुर की जेल में बंद शबनम की दया याचिका राष्ट्रपति ने खारिज कर दी है. इसके बाद ही मथुरा जेल की महिला घर के ताले खोल दिए गए.
जल्लाद पवन ने किया निरीक्षण
प्रदेश का इकलौता जल्लाद पवन भी मथुरा जेल का निरीक्षण कर चुका है और फांसी के तख्त और लिवर में खराबी की जानकारी जेल प्रशासन को दे चुका है. मथुरा जेल प्रशासन के मुताबिक, कुछ कमी नजर आई है जिसे वक़्त रहते दूर किया जा रहा है. अमरोहा की शबनम की दया याचिका खारिज होने के बाद अब माना जा रहा है कि उसे फांसी पर चढ़ाया जाएगा. ऐसा होता है तो देश की आजादी के बाद शबनम पहली महिला होगी, जिसे फांसी दी जाएगी.
मथुरा के जेलर के अनुसार जेल प्रशासन ने फांसी की तैयारियां शुरू कर दी हैं. अब डेथ वारंट का इंतजार है. शबनम को फांसी देने के लिए बिहार के बक्सर से रस्सी मंगाई जा रही है. किसी को भी फांसी देने से पहले दूसरे कैदियों से अलग तन्हाई में रखा जाता है.
अगर शबनम को फांसी दी जानी होगी तो उसे पहले रामपुर से मथुरा जेल में शिफ्ट किया जाएगा. इसके बाद उसे पूरी सुरक्षा में तन्हाई में रखा जाएगा. जहां उसे तन्हाई में रखा जाएगा, उस जगह से फांसी घर की दूरी करीब 200 मीटर के आसपास है.
टल भी सकती है शबनम की फांसी
जानकारी के मुताबिक अब से करीब 23 साल पहले अप्रैल 1998 में एक महिला रामश्री को फांसी देने की तैयारी थी. उस वक़्त भी जेल प्रशासन ने फांसी की तैयारी शुरू कर दी थी और लगभग टूट चुके प्लेटफॉर्म को बनवाया था, लेकिन रामश्री का एक छोटा बेटा था, जो उसकी गोद में था. इसे देखते हुए कुछ महिला संगठनों ने राष्ट्रपति के यहां दया याचिका लगाई थी, जिसके बाद रामश्री की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था.
इस लिहाज से देखें तो अभी पूरी तरह नहीं कहा जा सकता कि शबनम को फांसी होगी ही, क्योंकि रामपुर जेल में बंद शबनम के 12 साल के बेटे ने एक बार फिर से दया याचिका लगाई है. अब देखना ये होगा कि इस पर कब तक और क्या फैसला होता है. लेकिन जेल प्रशासन अपनी तरफ से फांसी घर को ठीक कर रहा है.
कौन है शबनम, क्या था मामला
अमरोहा जिले के बावनखेड़ी के रहने वाले अध्यापक शौकत अली की इकलौती बेटी का नाम शबनम है. शबनम के घरवालों ने उसे पढ़ाया-लिखाया. उसने अंग्रेजी और भूगोल में एमए किया. शबनम को पांचवीं तक पढ़े सलीम नाम के मजदूर से प्यार हो गया था. शबनम के घरवालों ने इसका विरोध किया. शबनम और उसके परिवार के बीच खींचतान चलती रही. ये संघर्ष इतना बढ़ गया कि 14 अप्रैल 2008 की रात शबनम ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने माता-पिता समेत 7 लोगों की हत्या कर दी. मृतकों में 10 महीने का शबनम का भतीजा भी शामिल था.
वारदात के बाद शबनम ने पुलिस को चकमा देने की भी कोशिश की. उसने बताया था कि उसने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया था. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हुआ था कि सभी को बेहोशी की दवा दी गई थी और फिर हत्या की गई थी. पुलिस ने शबनम के कॉल रिकॉर्ड के आधार पर सलीम को भी गिरफ्तार कर लिया था और हत्या में इस्तेमाल कुल्हाड़ी भी बरामद कर ली थी. बाद में जेल में ही शबनम ने अपने बेटे को जन्म दिया था.
हिमांशु मिश्रा / अभिषेक मिश्रा