देश की राजधानी दिल्ली में जब कोरोना वायरस अपनी जड़ें मजबूत कर रहा है और रोज़ एक हजार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं, ऐसे वक्त में एक बार फिर उपराज्यपाल और दिल्ली सरकार के बीच अधिकार की लड़ाई शुरू हो गई है. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले सरकारी अस्पताल और प्राइवेट अस्पतालों को सिर्फ दिल्ली वालों के लिए रिजर्व रखा, लेकिन LG ने इस फैसले को पलट दिया.
अब इसी को लेकर दोनों के बीच एक बार फिर से विवाद छिड़ गया है. ऐसा पहली बार नहीं है जब दिल्ली में LG बनाम दिल्ली सरकार की स्थिति पैदा हुई हो, ऐसा लंबे वक्त से होता आया है. यहां तक कि ये लड़ाई देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंची थी.
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पिछले साल फरवरी में सर्वोच्च अदालत ने अपने एक फैसले में दिल्ली सरकार के कामकाज का बंटवारा कर दिया था और बताया था कि किस मोर्चे पर LG बॉस हैं और किसपर दिल्ली की सरकार.
फरवरी, 2019 को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कुल 6 मामलों पर अपना फैसला सुनाया था. जिनमें ट्रांसफर-पोस्टिंग से लेकर जांच कमीशन तक का मामला था, इन 6 मामलों में से चार मामलों में उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस बताया गया था.
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1. अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग का मामला
ग्रेड 1, ग्रेड 2 लेवल के अधिकारी – केंद्र सरकार
ग्रेड 3, ग्रेड 4 के अधिकारी – राज्य सरकार
2. एंटी करप्शन ब्रांच
केंद्र सरकार
3. किसी भी मामले में जांच बैठाने का अधिकार (कमीशन ऑफ इन्क्वायरी)
केंद्र सरकार
4. इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड
दिल्ली सरकार
5. सर्किल रेट
ज़मीन केंद्र की, लेकिन सर्किल रेट पर तय करने का हक दिल्ली सरकार को
6. सरकारी वकील
दिल्ली सरकार
पढ़ें... न केंद्र जीता-न केजरीवाल हारे! पढ़ें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किसे क्या मिला
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा था कि अगर किसी भी फैसले पर मतभेद जैसी स्थिति होती है, तो उपराज्यपाल का फैसला ही सर्वमान्य होगा. बता दें कि दिल्ली में कानून व्यवस्था, ज़मीन और बड़ी ट्रांसफर-पोस्टिंग की ताकत अभी भी केंद्र के पास ही है, जिस पर उपराज्यपाल फैसला लेते हैं.
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