क्या भारत में आंकड़ों से ज्यादा हैं कोरोना से होने वाली मौतें?

महाराष्ट्र और दिल्ली ने पिछले सप्ताह कोरोना वायरस के कारण केस और मौतों के उन आंकड़ों को भी शामिल किया ​जो अब तक दर्ज नहीं हुए थे. इससे आंकड़ों में व्यापक बदलाव आया है. इसके बाद से भारत के कोविड-19 के आंकड़ों की कार्यप्रणाली और प्रामाणिकता पर सवाल उठ रहे हैं.

Advertisement
देशभर में तेजी से बढ़ रहे हैं कोरोना संक्रमण के केस (तस्वीर-PTI) देशभर में तेजी से बढ़ रहे हैं कोरोना संक्रमण के केस (तस्वीर-PTI)

दीपू राय

  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2020,
  • अपडेटेड 1:47 PM IST

महाराष्ट्र और दिल्ली ने पिछले सप्ताह कोरोना वायरस के कारण केस और मौतों के उन आंकड़ों को भी शामिल किया ​जो अब तक दर्ज नहीं हुए थे. इससे आंकड़ों में व्यापक बदलाव आया है. इसके बाद से भारत के कोविड-19 के आंकड़ों की कार्यप्रणाली और प्रामाणिकता पर सवाल उठ रहे हैं.

आम तौर पर, अधिकारी केस फैटेलिटी रेट (CFR-केसों की मृत्यु दर) की गणना करने के लिए कुल केस के अनुपात में कुल मौतों को ध्यान में रखते हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़ों में केवल उन मौतों को शामिल किया जाता है जो किसी विशेष तारीख तक अस्पतालों में हुई हैं, और आमतौर पर मौतों की घटना को दर्ज होने में कुछ देर भी होती है.

Advertisement

अब विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि लैग केस फैटेलिटी रेट (L-CFR) पर ध्यान देना चाहिए. लैग केस फैटेलिटी रेट की गणना, कुल मौतों की संख्या को 14 दिन पहले दर्ज किए गए कुल कन्फर्म केस से विभाजित करके की जाती है. चूंकि इसमें कोरोना मौत की रिपोर्टिंग में 14 दिन की देरी को ध्यान में रखा जाता है, इसलिए इससे ज्यादा स्पष्ट तस्वीर बन सकती है.

24 जून तक भारत में 4,56,183 केस दर्ज हुए और 14,476 मौतें हुईं, यानी CFR 3.2 प्रतिशत रहा. इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (डीआईयू) ने पाया कि L-CFR के मुताबिक, कोविड-19 के कारण 5.1 प्रतिशत भारतीयों को मृत्यु का खतरा है.

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज, मुंबई में डिपार्टमेंट ऑफ फर्टिलिटी स्टडीज के प्रोफेसर संजय मोहंती ने इंडिया टुडे को बताया, “सीएफआर कोविड-19 की मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए एक अपरिपक्व उपाय है और यह वास्तविक मृत्यु दर को कम करके आंकता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यह केवल एक दिन की मौतों की संख्या को उस दिन कन्फर्म किए गए केस की संख्या से विभाजित करता है. इस परिभाषा के अनुसार, प्रति 100 संक्रमित लोगों में मृत्यु दर 3 है. हालांकि, 10,000 से अधिक गंभीर मरीज हैं, जो या तो वेंटिलेटर पर है या ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं.”

Advertisement

प्रो मोहंती ने हाल ही में भारत में वास्तविक मृत्यु दर के रुझान को निर्धारित करने के लिए एल-सीएफआर का उपयोग किया है. वे कहते हैं, “अगर आज के बाद से कोई संक्रमण न हो, तो भी मौजूदा मरीजों में से कई मरीज नहीं बच पाएंगे. इसलिए, एक परिष्कृत उपाय यह होगा कि आज होने वाली मौतों के लिए 14 दिन पहले दर्ज हुए केस की संख्या पर विचार किया जाए. कोरोना संक्रमण की औसत अवधि 14 दिन है और मृत्यु और संक्रमण के बीच औसत अंतर भी 14 दिन है.”

डीआईयू ने कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित पांच भारतीय राज्यों में मौतों के खतरे का विश्लेषण किया. एल-सीएफआर के मुताबिक, गुजरात में कोविड-19 की मौत का खतरा 7.95 फीसदी के साथ सबसे ज्यादा है. इसके बाद दिल्ली (7.01 फीसदी), महाराष्ट्र (6.94 फीसदी), उत्तर प्रदेश (5.96 फीसदी) और तमिलनाडु (2.26 फीसदी) है.

तमिलनाडु मौत के खतरे का फीसद कम है, इस तथ्य के बावजूद कि यहां महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद सबसे अधिक केस हैं.

घटती-बढ़ती मृत्यु दर की गणनाएं

कोविड-19 के कारण होने वाली मौतों से संबंधित विभिन्न संख्याएं बताई जा रही हैं. लेकिन मुख्य रूप से तीन प्रकार की मृत्यु दर होती हैं - केस फैटेलिटी रेट (सीएफआर), इन्फेक्शन फैटेलिटी रेट (आईएफआर) और क्रूड फैटेलिटी रेट (सीएमआर). इन सभी की गणना अलग-अलग तरीकों से की जाती है.

Advertisement

सीएफआर कन्फर्म केस और कन्फर्म मौतों का अनुपात है. महामारी के प्रकोप के दौरान वास्तविक सीएफआर गणना संभव नहीं है क्योंकि संक्रमण और मौतें बंद नहीं होती हैं. आईएफआर संक्रमित लोगों में से कुल मौतों के अनुपात की गणना करता है. इनमें वे भी शामिल हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं हैं, जिनका टेस्ट नहीं हुआ है, लेकिन वे भी संक्रमित हैं. सीएमआर किसी आबादी में किसी बीमारी के कारण होने वाली मौतों की संख्या की गणना करता है.

हालांकि, कोविड-19 के संदर्भ में ये सभी मापदंड संक्रमित आबादी में मौतों के वास्तविक खतरे का आकलन कर पाने में असमर्थ प्रतीत होते हैं. ये सभी गणनाएं केसों की वास्तविक संख्या और मौतों से संबंधित जानकारी पर आधारित हैं.

भारत में कोविड-19 के केसों और मौतों की रिपोर्टिंग पैटर्न में काफी विसंगतियां हैं. इससे मौतों के सटीक अनुपात की जानकारी प्राप्त होना काफी कठिन हो जाता है. ऐसे में एल-सीएफआर मौतों के खतरे का आकलन करने के लिए एक अधिक विश्वसनीय उपकरण हो सकता है.

स्विट्जरलैंड के लुसाने यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल के डेविड बॉड का “द लैंसेट” में प्रकाशित एक अध्ययन कहता है, “मृत्यु दर के ये सभी अनुमान संक्रमण के कन्फर्म केसों की संख्या के सापेक्ष होने वाली मौतों की संख्या पर आधारित हैं. ये वास्तविक मृत्यु दर का प्रतिनिधित्व नहीं करते. किसी भी दिन जितने मरीजों की मौत होती है, वे काफी पहले से संक्रमित होते हैं. इस प्रकार, मृत्यु दर के लिए एक समय में कुल संक्रमण की संख्या और कुल मौतों की संख्या का सटीक आंकड़ा मौजूद होना चाहिए”.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement