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कोरोना

Covid-19 के 85% मरीजों का पीछा नहीं छोड़ रही हैं दिमाग संबंधी चार बीमारियां, स्टडी

aajtak.in
  • शिकागो,
  • 25 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 9:48 AM IST
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कोरोना से पीड़ित 85 फीसदी लोगों में लगातार चार तरह की दिमागी समस्याएं देखने को मिल रही हैं. ये न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें काफी दिनों तक कोरोना पीड़ित को परेशान कर सकती हैं. इनमें शामिल हैं दिमाग में कोहरा पैदा होना, सिरदर्द, सूंघने और स्वाद को समझने की ताकत कम होना. ये उनके साथ भी हो सकता है जो कोरोना पीड़ित तो हुए लेकिन अस्पताल में भर्ती नहीं हुए या गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़े. ये खुलासा एक नई स्टडी में हुआ है. (फोटोःगेटी)

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एनल्स ऑफ क्लीनिकल एंड ट्रांसलेशनल न्यूरोलॉजी (Annals of Clinical and Translational Neurology) जर्नल में 23 मार्च को प्रकाशित इस स्टडी में अमेरिका के 21 राज्यों के 100 कोविड-19 मरीजों पर अध्ययन किया गया है. इन मरीजों का अध्ययन, इनसे बातचीत और इनकी जांच शिकागो स्थित नॉर्थवेस्टर्न मेमोरियल अस्पताल के वैज्ञानिकों ने मई 2020 से नवंबर 2020 तक की. उसके बाद इसकी रिपोर्ट बनाई गई. (फोटोःगेटी)

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इनमें से कोई भी मरीज ऐसा नहीं था जिसे कोरोना संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती होना पड़ा हो. इन मरीजों ने छह हफ्तों तक इन चारों दिमाग संबंधी समस्याओं का सामना किया. ठीक होने के चार या पांच महीने बाद भी इन कोरोना पीड़ितों को ये समस्याएं आती रहीं. जबकि वो कोरोना से पूरी तरह ठीक हो चुके थे. (फोटोःगेटी)

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100 कोरोना मरीजों में से आधे कोरोना पॉजिटिव थे. जबकि, आधे कोरोना निगेटिव थे लेकिन उनके अंदर कोविड-19 के छिपे हुए लक्षण मौजूद थे. इनमें दिमाग संबंधी बीमारियों से संबंधित लक्षण भी शामिल हैं. कोरोना के शुरुआती दौर में उन मरीजों की जांच करना मुश्किल था, जो अस्पताल में भर्ती नहीं थे. (फोटोःगेटी)

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85 फीसदी कोरोना मरीजों को दिमाग संबंधी चार दिक्कतें आईं. 81 फीसदी मरीजों के दिमाग में कोहरा (Brain Fog) जम रहा था. यानी उन्हें सोचने और समझने में दिक्कत आ रही थी. इतना ही नहीं उन्हें अलग-अलग तरह के फैसले लेने के लिए काफी समय लग रहा था. इसके अलावा 68 फीसदी लोगों ने लगातार या थोड़े-थोड़े समय अंतराल पर सिरदर्द की शिकायत भी की. (फोटोःगेटी)

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60 फीसदी लोगों ने शरीर के हिस्सों का सुन्न होना या गुदगुदी या सनसनाहट जैसी शिकायतों का जिक्र किया. 50 फीसदी से ज्यादा लोगों ने स्वाद और सूंघने की क्षमता में कमी की शिकायत की. 47 फीसदी लोगों को आलस और थकान की दिक्कत आई. 30 फीसदी लोगों को धुंधला दिख रहा था. इतना ही नहीं 29 फीसदी लोगों के कान में घंटियां बजने की शिकायत भी सामने आई. (फोटोःगेटी)

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इसके अलावा जो बीमारियां और लक्षण लोगों में देखे गए हैं वो है थकान, डिप्रेशन, बेचैनी, नींद न आना और गैस्ट्रोइंटेसटाइनल समस्याएं. लेकिन जो चार लक्षण सबसे ज्यादा देखे गए उनमें दिमाग में कोहरा, सिरदर्द, सुन्न होना या सनसनाहट और स्वाद-सूंघने की क्षमता में कमी आना. मरीजों ने अध्ययन में कि उन्हें लगता है कि वो सिर्फ 64 फीसदी ही सही हो पाए है. कोरोना से ठीक होने के बाद भी उनके शरीर में कई तरह की दिक्कतें अब भी बाकी हैं. (फोटोःगेटी)

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नॉर्थवेस्टर्न मेडिसिन में न्यूरो-इंफेक्शियस डिजीस एंड ग्लोबल न्यूरोलॉजी के प्रमुख और इस स्टडी के लेखक डॉ. इगोर कोरलनिक ने कहा कि 30 फीसदी कोरोना मरीजों में ये चार दिमागी दिक्कतें 9 से 10 महीनों तक रह रही हैं. इसकी वजह से उनका सामान्य जीवन खराब हो रहा है. कोरोना होने से पहले और उसके बाद मरीजों के लिए सबसे बड़ी दिक्कत है मानसिक रूप से स्वस्थ रहना. लेकिन लोग डिप्रेशन और ऑटोइम्यून डिजीसेस के शिकार हो रहे हैं. (फोटोःगेटी)

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जिन मरीजों का अध्ययन किया गया उनमें से 70 फीसदी महिलाएं थीं. महिलाओं में ऑटोइम्यून डिजीसेस ज्यादा देखे गए. जैसे- रह्यूमेटॉयड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis). ये बीमारी कोरोना पीड़ित पुरुषों की तुलना में कोरोना पीड़ित महिलाओं को तीन गुना ज्यादा हो रही है. इस स्टडी के मुताबिक दिमाग संबंधी चार दिक्कतें तो ज्यादातर मरीजों में देखी ही गई हैं. इनकी वजह से शरीर के अन्य अंगों से संबंधित दिक्कतें भी पैदा हो रही हैं. (फोटोःगेटी)

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अब इस स्टडी को करने वाली वैज्ञानिकों की टीम यह पता कर रही है कि कैसे कोरोना पीड़ितों को इन बीमारियों से ठीक किया जाए. उनकी बेहतर जांच कैसे की जाए कि मरीजों की सारी दिक्कतें सामने आएं. इसके लिए वैज्ञानिक ये जांच कर रहे हैं कि हमारे शरीर के इम्यून सेल्स यानी प्रतिरोधक कोशिकाएं कोरोनावायरस के प्रोटीन से किस तरह रिएक्ट करती हैं. ताकि इससे बीमारियों को ठीक करने में मदद मिले. (फोटोःगेटी)

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