कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए कई जगहों पर पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया गया है. लोग घरों में कैद हैं. डर और आशंका के इस माहौल में अब लोग ये सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि आखिर महामारी का अंत कब होगा.
दुनिया भर के वैज्ञानिक और हेल्थ एक्सपर्ट्स कोरोना वायरस की तोड़ ढूंढने में जुटे हुए हैं. इसी महीने रिपोर्ट्स आईं कि ब्रिटेन की सरकार वायरस के असर को घटाने के लिए इसे पूरी आबादी में फैलने देगी ताकि लोगों में 'हर्ड इम्युनिटी' यानी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए.
हालांकि, बाद में ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता मैट हैनकॉक ने इन रिपोर्ट को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता महामारी का स्वाभाविक सह उत्पाद है. यानी महामारी के फैलने के साथ ही अपने आप हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाती है.
क्या है हर्ड इम्युनिटी? नेशनल हेल्थ सर्विस के मुताबिक, जब बड़ी संख्या में किसी जगह पर लोगों को बीमारी से लड़ने के लिए वैक्सीन दी जाती है तो इससे बाकियों में बीमारी फैलने का खतरा कम हो जाता है. जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है या फिर वैक्सीन नहीं दी जा सकती है, उनमें भी बीमारी कम चपेट में ले पाती है. इसे ही हर्ड इम्युनिटी या सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता कहते हैं.
वायरस के खिलाफ सामूहिक तौर पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है जिससे महामारी को रोकने में मदद मिलती है. ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन नॉलेज प्रोजेक्ट में इसको चेचक के उदाहरण से समझाया गया है. इसके मुताबिक, जब कोई चेचक या खसरा से संक्रमित व्यक्ति वैक्सीन ले चुके तमाम लोगों से घिरा होता है तो बीमारी बाकी लोगों में भी आसानी से नहीं फैल पाती है. वायरस की संक्रमण शक्ति कमजोर पड़ जाती है.
इसे ही सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता या सामूहिक सुरक्षा कहते हैं. इससे नवजात, बुजुर्ग या ज्यादा बीमार लोगों को भी अपने आप सुरक्षा मिल जाती है जिन्हें वैक्सीन नहीं दी जा सकती है.
हालांकि, संगठन का कहना है कि ये तभी काम करता है जब अधिकतर आबादी को किसी बीमारी के खिलाफ वैक्सीन दे दी जाए. इसमें ये भी कहा गया है कि सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता वैक्सीन से रोकी जा सकने वाली हर बीमारी के खिलाफ सुरक्षा नहीं देती है.
वैक्सीन नॉलेज प्रोजेक्ट के मुताबिक, वैक्सीन के विपरीत सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता हर एक व्यक्ति की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती है इसलिए ये वैक्सीन का अच्छा विकल्प नहीं है.
'यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबर्ग' में संक्रमण और महामारी के एक्सपर्ट प्रोफेसर मार्क वूलहाउस ने द इंडिपेंडेंट से बताया कि हर्ड इम्युनिटी ही सभी वैक्सीन कार्यक्रमों का आधार है. वह कहते हैं, स्वाभाविक तौर पर भी लोगों में सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है. अगर आपको कोई ऐसा संक्रमण है जो पहले ही कई लोगों को है तो एंटीबॉडीज विकसित हो जाती है और वे इसके खिलाफ प्रतिरोध में सक्षम हो जाती है. आपके अंदर स्वाभाविक तौर पर ऐसी प्रतिरोधक क्षमता हो सकती है. इससे कोई एक वायरस पूरी आबादी में महामारी फैलाने में सक्षम नहीं रह जाता है. हालांकि, इसका ये मतलब नहीं है कि ये पूरी तरह ही खत्म हो जाएगा क्योंकि तमाम कमजोर लोगों को ये अपना निशाना बनाना जारी रखेगा. हां, इतना जरूर है कि ये महामारी की शक्ल नहीं ले पाएगा.
कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि कोई नया वायरस जब आता है तो मानव शरीर में उसके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता बिल्कुल ना के बराबर होती है. हालांकि, धीरे-धीरे शरीर वायरस से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है.