चीन में अब तक करीब 5000 मौतें हुई हैं, वहीं अमेरिका में 40,000 से ज्यादा लोग कोरोना की चपेट में आकर मर चुके हैं. इटली-स्पेन में भी मौत का भयावह आंकड़ा है. अमेरिकी राष्ट्रपति समेत दुनिया के कई देश चीन के आंकड़ों पर भी शक जाहिर कर चुके हैं. ये संदेह तब और बढ़ गया जब चीन ने शुक्रवार को अचानक वुहान में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा कर दिया. चीन ने कहा कि कुछ अस्पतालों में जल्दबाजी में मौतों का रिकॉर्ड ठीक से दर्ज नहीं किया गया था. अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने फॉक्स न्यूज से बातचीत में कहा कि चीन के राष्ट्रपित शी जिनपिंग की नेतृत्व वाली सरकार को कोरोना वायरस महामारी के लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए. पोम्पियो ने कहा कि चीन को दुनिया को बताना होगा कि इतनी तेजी से वायरस कैसे फैल गया. ABC टेलीविजन से बातचीत में ऑस्ट्रेलिया की विदेश मंत्री मैरिस पाइन ने कहा है कि कोरोना वायरस के संदर्भ में चीन की पारदर्शिता को लेकर उनकी चिंता बहुत महत्वपूर्ण है. ऑस्ट्रेलिया वैश्विक महामारी को लेकर जांच चाहता है जिसमें वुहान में कोरोना के पहले मामले आने के बाद चीन के ऐक्शन की भी जांच होनी चाहिए.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का चीन पर हमला तेज होता जा रहा है. पेकिंग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता वांग जिसी ने एक इंटरव्यू में कहा है, 1970 में औपचारिक कूटनीतिक संबंध स्थापित होने के बाद से अमेरिका-चीन के संबंध सबसे बुरे दौर में पहुंच गए हैं. दोनों देशों के व्यापारिक संबंध पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे थे और अब इनके सुधरने की गुंजाइश भी खत्म होती नजर आ रही है.
ब्रिटेन में भी एंटी-चाइना सेंटीमेंट देखने को मिल रहे हैं. ब्रिटेन के विदेश मंत्री डॉमनिक राब ने कड़े शब्दों में कहा कि चीन को बताना होगा कि कोरोना महामारी कैसे फैली और उसे रोकने की क्या कोशिश हुई? ब्रिटेन के कंजरवेटिव पार्टी के नेताओं ने सरकार से चीन के प्रति सख्त रुख अपनाने के लिए कहा है. यहां तक कि ब्रिटेन की इंटेलिजेंस एजेंसियों ने कहा है कि वे बीजिंग की तरफ से आने वाले किसी खतरे के प्रति ज्यादा सतर्कता बरतेंगी. यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की सरकारों ने आर्थिक संकट के बीच चीनी कंपनियों को देश की सस्ती संपत्तियां खरीदने से प्रतिबंधित कर दिया है. टोक्यो ने भी कई जापानी कंपनियों को चीन से बाहर अपनी सप्लाई चेन स्थापित करने के लिए 2.2 अरब डॉलर की आर्थिक मदद का ऐलान किया है.
चीन को शक की नजरों से देखने वालों में सिर्फ अमेरिका और उसके सहयोगी देश ही नहीं हैं. चीन के सहयोगी उत्तर कोरिया ने महामारी की शुरुआत में ही अपनी सीमाओं को बंद कर दिया था. ऐसा करने वाला वह पहला देश था जबकि चीन ने उस वक्त अंतरराष्ट्रीय यात्राओं पर प्रतिबंध को लेकर कड़ा ऐतराज जताया था. रूस ने भी महामारी के शुरुआती दौर में ही उत्तर कोरिया की तरह चीन से लगीं अपनी सीमाएं बंद कर दी थीं. यहां तक कि ईरान के अधिकारी भी महामारी की जानकारी छिपाने को लेकर चीन की आलोचना कर चुके हैं.
फ्रांस के राष्ट्रपति एम्यानुएल मैंक्रो ने रविवार को चीन की सरकार को लेकर कड़ी टिप्पणी की. मैंक्रो ने कहा कि सबने अपन-अपने रास्ते चुने और आज चीन जो है, मैं उसका सम्मान करता हूं लेकिन ये कहना गलत होगा कि वह कोरोना वायरस से निपटने में ज्यादा सफल रहा. वहां कई चीजें ऐसी हुई हैं जिनका हमें पता ही नहीं है. मैंक्रो ने कहा कि लोकतांत्रिक और खुले समाज की आप उस समाज से तुलना नहीं कर सकते हैं जहां सच को दबाया जाता हो. उन्होंने कहा कि महामारी से लड़ने के लिए लोगों की आजादी खत्म करने से पश्चिमी देशों के लोकतंत्र को खतरा पैदा हो जाएगा. आप कोरोना वायरस की महामारी का हवाला देकर अपने मूल डीएनए (लोकतंत्र) को नहीं छोड़ सकते हैं.
फ्रांस और चीन के बीच एक और बात को लेकर तनातनी देखने को मिली. चीनी दूतावास की वेबसाइट पर एक आर्टिकल में कहा गया था कि पश्चिमी देशों ने अपने बुजुर्गों को केयर होम्स में मरने के लिए छोड़ दिया है. फ्रांस के विदेश मंत्री ने इस लेकर चीनी राजदूत को समन किया और कड़ी आपत्ति जताई.
चीन की कथित मास्क डिप्लोमेसी को लेकर भी यह संदेह जाहिर किया जा रहा है कि इसके जरिए वह विदेशों में अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. हालांकि, नीदरलैंड, स्पेन और तुर्की समेत कई देशों ने फेसमास्क समेत चीन के कई मेडिकल उपकरणों की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए जिससे उसकी मास्क डिप्लोमेसी बैकफायर कर गई. केन्या में चीन ने बेल्ट ऐंड रोड के तहत भारी-भरकम निवेश किया है लेकिन वहां भी चीन को लेकर असंतोष है. केन्या के एक लोकप्रिय अखबार द स्टैंडर्ड के संपादकीय में सवाल किया गया है कि क्या कोरोना वायरस से पैदा हुए आर्थिक संकट के दौर में भी चीन केन्या से कर्ज अदायगी की उम्मीद कर रहा है?
चीन दुनिया भर में कोरोना वायरस की वजह से अपनी बिगड़ती छवि को बेहतर करने की कवायद में भी जुट गया है. अमेरिकी सांसद रोजर रोथ ने दावा किया है कि उन्हें चीन की सरकार की तरफ से एक ई-मेल आया था जिसमें उनसे कोरोना वायरस से निपटने को लेकर चीन की तारीफ करने वाला एक बिल स्पॉन्सर करने के लिए कहा गया था. सेन रोथ ने फाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि ये ई-मेल उन्हें शिकागो में चीन के काउंसल-जनरल की तरफ से ही भेजा गया था.
जाहिर है कि चीन की हर आलोचना सही नहीं है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी नाकामी छिपाने के लिए बार-बार चीन पर हमला कर रहे हैं. चीन की वेट मार्केट को बंद करने की अपीलों के पीछे भी एक नस्लीय मानसिकता छिपी हुई है. लेकिन बीजिंग ने अगर कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर पारदर्शिता और सहयोग की रणनीति अपनाई होती तो शायद दुनिया भर में लोगों के मन में उसके लिए सहानुभूति होती, ना कि संदेह.