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कोरोना

कोरोना वायरस को लेकर क्या भारत भी US की तरह कर रहा बड़ी गलती?

aajtak.in
  • 18 मार्च 2020,
  • अपडेटेड 4:28 PM IST
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भारत में दिन पर दिन कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं और अब तक इससे तीन मौतें हो चुकी हैं. भारत सरकार कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए तमाम कोशिशें कर रही हैं लेकिन कोरोना वायरस के टेस्ट की सीमित संख्या को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं. सवा अरब की आबादी वाले भारत में अभी तक कोरोना वायरस के सिर्फ 150 मामले ही सामने आए हैं जोकि बाकी देशों की तुलना में बेहद कम है.

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स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि अभी तक कोरोना के जो भी मामले सामने आए हैं, वे लोग या तो विदेश से लौटे हैं या फिर उनके संपर्क में आए लोग कोरोना से पीड़ित हुए हैं. मंत्रालय ने इस बात को खारिज किया है कि भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो रहा है यानी ऐसे मामले जिनमें ये ना पता चल पाए कि उन्हें किस शख्स के संपर्क में आने से कोरोना संक्रमण हुआ है. कम्युनिटी ट्रांसमिशन संक्रमण की दूसरी स्टेज है और इसे रोकना काफी मुश्किल होता है.

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हालांकि, कुछ विश्लेषकों का कहना है कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण के कम मामले कम टेस्ट की वजह से हैं. फिलहाल, भारत में केवल उन्हीं लोगों की जांच की जा रही है जो या तो किसी देश की यात्रा करके लौटे हैं या फिर विदेश से लौटे व्यक्तियों के संपर्क में आए हैं. विश्लेषकों का कहना है कि ये बिल्कुल भी ठीक नहीं है. कोरोना वायरस के संक्रमण को अब सिर्फ विदेश यात्रा के आधार पर तय नहीं किया जाना चाहिए. चीन में कोरोना वायरस का संक्रमण नवंबर महीने से फैलना शुरू हुआ था इसलिए अब हर देश में संक्रमण की अनगिनत और अनजानी श्रंखलाएं बन चुकी हैं.

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जॉन हॉपिकन्स सेंटर फॉर हेल्थ सिक्योरिटी में शोधकर्ता डॉ. अमेश अदालजा ने हफिंगटन पोस्कट से बातचीत में कहा, कोरोना वायरस से निपटने में अमेरिका से हुई गलती से भारत सबक ले सकता है. अमेरिका में कोरोना वायरस से अब तक 100 मौतें हो चुकी हैं. अमेरिका की सबसे बड़ी गलती यही थी कि उसने कोरोना वायरस को सिर्फ यात्रा के दायरे में सीमित रखा और चीन से आए लोगों के लिए सीमित जांच के नियम बनाए. जबकि अगर बड़े पैमाने पर टेस्टिंग होती तो संक्रमण रोकने में मदद मिल सकती थी.

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वक्त रहते कम्युनिटी ट्रांसमिशन की पहचान ना कर पाना ही इटली, स्पेन, ईरान और अमेरिका के लिए घातक साबित हुआ. भारत में कम मेडिकल सुविधाओं की वजह से डर है कि कम्युनिटी ट्रांसमिशन होने पर कई लोगों की जानें जा सकती हैं.

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दक्षिण कोरिया में जहांकोरोना वायरस के परीक्षण की दर (10 लाख लोगों पर 3692 टेस्ट) ज्यादा है, वहां मृत्यु दर (0.6 फीसदी या 66 मौतें) काफी कम है. जबकि इटली में जहां प्रति 10 लाख पर सिर्फ 826 टेस्ट किए जा रहे हैं, वहां संक्रमित लोगों में मृत्यु दर 10 गुना ज्यादा है. इटली में कोरोना वायरस की चपेट में आने से 1000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.

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एक्सपर्ट्स का कहना है कि कई देशों में कम्युनिटी ट्रांसमिशन हो रहा है. ऐसे में सिर्फ विदेश से लौटे यात्रियों या उनके संपर्क में आए लोगों तक जांच सीमित रखने के बजाय लक्षण दिखने के आधार पर कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच उपलब्ध कराई जानी चाहिए.

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इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) इन्फ्लुएंजा जैसी बीमारी वाले लक्षणों में रैंडम सैंपल उठाकर जांच कर रहा है कि भारत में कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन तो नहीं हो रहा है. आईसीएमआर के मार्च महीने में कोरोना वायरस की पहचान के लिए की गई रैंडम सैंपलिंग के नतीजे निगेटिव आए हैं. कोरोना वायरस के परीक्षण के लिए 1020 लोगों के रैंडम सैंपल लिए गए जिनमें न्यूमोनिया और इन्फ्लुएंजा की तरह लक्षण नजर आ रहे थे. इनमें से 500 सैंपल के रिजल्ट निगेटिव आए हैं जो इस बात का संकेत हो सकता है कि अभी भारत में कोरोना वायरस का कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं हो रहा है. बाकी बचे 500 सैंपल के रिजल्ट बुधवार को जारी किए जाने हैं.

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फिलहाल, देश भर में 52 प्रयोगशालाओं में कोरोना वायरस का टेस्ट किया जा रहा है. सरकार प्राइवेट लैब में भी टेस्ट कराने की अनुमति देने पर भी विचार कर रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के डायरेक्टर-जनरल डॉ. टेडरोस अदनॉम घेब्रेयसस ने भी सभी देशों को ज्यादा से ज्यादा कोरोना वायरस के परीक्षण का सुझाव दिया है.

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विश्व स्वास्थ्य संगठन के कोरोना वायरस से निपटने के लिए 'टेस्ट, टेस्ट और टेस्ट' की सलाह पर जब आईसीएमआर के वैज्ञानिक आर आर गंगखेडकर से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, हम अभी कोरोना वायरस के संक्रमण की दूसरी स्टेज में है जबकि डब्ल्यूएचओ की गाइडलाइन किसी एक देश को लेकर नहीं है. हमने उनसे कहा भी है कि भारत जैसे देश के लिए इस तरह के बयान नहीं दिए जाने चाहिए क्योंकि इससे ज्यादा डर, ज्यादा शंकाएं पैदा होंगी. उन्होंने ये भी कहा है कि तमाम देशों की रणनीतियों की तुलना नहीं की जा सकती है क्योंकि हर देश अलग स्टेज से गुजर रहा है.

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आईसीएम के डायरेक्टर-जनरल (डीजी) बलराम भार्गव ने कहा, फिलहाल कम्युनिटी ट्रांसमिशन को लेकर कोई सबूत नहीं है. हालांकि, अभी ये कहना जल्दबाजी होगी कि हमने वायरस की रोकथाम कर ली है. हम कितनी मजबूती से अपनी सीमाओं को बंद करते हैं... इससे मदद मिल सकती है. हम ये भी नहीं कह सकते हैं कि आने वाले वक्त में कम्युनिटी ट्रांसमिशन नहीं होगा.

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सीनियर हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, भारत में संक्रमण को रोकने के लिए तमाम कदम उठाए जा रहे हैं और अभी भी संक्रमण के अपेक्षाकृत कम मामले हैं. इन सबके बावजूद भारत में स्थिति अभी नियंत्रण में नहीं कही जा सकती है. चूंकि हम अभी आक्रामक तौर पर टेस्टिंग नहीं कर रहे हैं, ऐसे में कम्युनिटी ट्रांसमिशन रोकने के लिए फ्लू जैसी बीमारियों में रैंडम सैंपलिंग अच्छा आइडिया है.

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