रेटिंग एजेंसी फिच की चेतावनी-दबाव में कर्ज देने से बैंकों की हालत और खराब होगी

रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे अगले दो वर्षों के दौरान उनके इम्पेयर्ड लोन अनुपात में छह फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है. फिच ने कहा कि सरकार के करीब 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज के तहत पहले से स्वीकृत उधार देने से बैंकों को कर्ज की किस्तें वसूल करने में उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.  

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 दबाव में कर्ज दने से बैंकों की हालत खराब होगी दबाव में कर्ज दने से बैंकों की हालत खराब होगी

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 28 मई 2020,
  • अपडेटेड 9:40 PM IST
  • फिच ने कहा— दबाव में कर्ज दने से बैंकों की हालत खराब होगी
  • राहत पैकेज के तहत ज्यादा लोन देने से बैंकों की बढ़ेगी मुश्किल
  • मोरेटोरियम से भी बढ़ेगी बैंकों की मुश्किल

फिच रेटिंग्स ने गुरुवार को अपनी एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी कि दबाव में कर्ज देने से बैंकों की हालत और खराब होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे अगले दो वर्षों के दौरान उनके इम्पेयर्ड लोन अनुपात में छह फीसदी तक बढ़ोतरी हो सकती है. 
इम्पेयर्ड लोन कर्ज की उस ​स्थिति को कहते हैं जब प्रिंसिपल और ब्याज वसूले जाने की संभावना कम हो जाती है.एजेंसी ने कहा कि सरकार के करीब 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज के तहत पहले से स्वीकृत उधार देने से बैंकों को कर्ज की किस्तें वसूल करने में उल्लेखनीय चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.  

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बढ़ सकता है इम्पेयर्ड लोन अनुपात  
न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक फिच रेटिंग्स ने कहा कि जबरन कर्ज देने के दबाव के चलते बैंकों का इम्पेयर्ड कर्ज अनुपात दो फीसदी से छह फीसदी के बीच हो सकता है. यह बैंकों के हालात की गंभीरता और बैंकों के जोखिम लेने की क्षमता और उच्च नियामक प्रावधानों पर निर्भर करेगा. एजेंसी ने हालांकि, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और निजी क्षेत्र के बैंकों के एनपीए के बारे में अलग-अलग जानकारी नहीं दी. 

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मोरेटोरियम से भी बढ़ेगी मुश्किल 
सरकार द्वारा घोषित प्रोत्साहन पैकेज में बैंक कर्ज में कई तरह की राहत और कर्ज अदायगी में दी गई मोहलत में 90 दिनों की वृद्धि शामिल है. फिच की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये उपाय विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर भारी बोझ डालेंगे, जिनकी बैलेंस शीट पहले ही बहुत कमजोर है. रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों के काबू में आने तक उपभोक्ता मांग और मैन्युफैक्चरिंग, दोनों ही खराब स्थिति में रहने वाले हैं. फिच ने कहा कि सभी क्षेत्रों में परेशानी बढ़ रही है, लेकिन एमएसएमई और खुदरा क्षेत्र में सबसे अधिक जोखिम होगा. 

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