टैक्स चोरी के चार साल से ज्यादा पुराने केस नहीं खोले जाएंगे! मोदी सरकार कर रही विचार

मोदी सरकार इस प्रस्ताव पर विचार कर रही है कि इनकम टैक्स चोरी से जुड़े चार साल से ज्यादा पुराने मामलों की फाइल फिर से न खोली जाए. अभी तक के नियम के मुताबिक छह साल से ज्यादा पुराने केस नहीं खोले जाते हैं.

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इनकम टैक्स विभाग कर रहा नियमों की समीक्षा इनकम टैक्स विभाग कर रहा नियमों की समीक्षा

दिनेश अग्रहरि

  • नई दिल्ली,
  • 21 जून 2019,
  • अपडेटेड 1:07 PM IST

मोदी सरकार इस प्रस्ताव पर विचार कर रही है कि इनकम टैक्स चोरी से जुड़े चार साल से ज्यादा पुराने मामलों की फाइल फिर से न खोली जाए. एक बिजनेस न्यूज पेपर में यह दावा किया गया है. अभी तक के नियम के मुताबिक छह साल से ज्यादा पुराने केस नहीं खोले जाते हैं.

इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, सरकार टैक्सपेयर्स के अनुकूल माहौल बनाने के लिए ऐसी तैयारी कर रही है. इस प्रस्ताव पर अंतिम निर्णय 5 जुलाई को बजट पेश होने से पहले हो सकता है. इसके पीछे तर्क यह है कि अब आयकर विभाग को कई स्रोतों से बेहतरीन जानकारी मिल जाती है, सिस्टम काफी सुधर गया है, ऐसे में किसी अधिकारी के लिए यह निर्णय करने में चार साल काफी है कि किसी केस को फिर से खोला जाए या नहीं. जानकारों का मानना है कि यदि इससे मुकदमेबाजी कम होगी और टैक्स की रिकवरी में सुधार होगा.

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गौरतलब है कि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी कई ऐसे उपाय किए गए थे जिसे इनकम टैक्स के मामले में मुकदमेबाजी कम हो. हालांकि कर अनुपालन में सख्ती भी बरती गई थी.

ये है मौजूदा नियम

इनकम टैक्स एक्ट की धारा 149 के प्रावधानों के अनुसार, यदि किसी टैक्सपेयर के मामले में 1 लाख या उससे ज्यादा की टैक्स चोरी का मामला दिखता है तो आकलन अधिकारी उसके छह साल पीछे तक की फाइलों को खोल सकता है. एक लाख रुपये से कम के मामले में चार साल तक की फाइल खोली जा सकती है. यही नहीं, यदि मामला विदेश में स्थ‍ित किसी एसेट से कर चोरी का है तो 16 साल तक की पुरानी फाइल खोली जा सकती है. हालांकि छह साल से पुराने मामले में नोटिस देने के लिए कई तरह की शर्तें होती हैं.

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इस बारे में विस्तृत दिशा-निर्देश है कि किसी मामले को फिर से खोलने के बाद किस तरह से यह सुनिश्चित करना है कि टैक्सपेयर्स को बेवजह परेशान न किया जाए. किसी भी मामले में टैक्सपेयर्स का फीडबैक लिया जाता है और वह चाहे तो फाइल फिर से खोलने के आयकर विभाग के निर्णय को चुनौती दे सकता है. हालांकि विभाग के अधिकारी मानते हैं कि इस प्रावधान की वजह से बेवजह की मुकदमेबाजी बढ़ रही है.

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