ब्‍लैकमनी पर भरोसेमंद आंकड़े नहीं, संसदीय समिति की रिपोर्ट में खुलासा

कालेधन का कोई विश्वसनीय हिसाब-किताब नहीं है. ब्‍लैकमनी से जुड़ी समिति की रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.

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सांकेतिक फोटो सांकेतिक फोटो

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2019,
  • अपडेटेड 4:56 PM IST

मोदी सरकार ब्‍लैकमनी पर चोट करने के लिए नोटबंदी और बेनामी संपत्ति को लेकर लगातार फैसले ले रही है. इस बीच, संसदीय समिति की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1980 से 2010 के बीच विदेशों में जमा अघोषित संपत्ति 216.48 अरब डॉलर से 490 अरब डॉलर के बीच रहने का अनुमान है.

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तीन संस्‍थानों के शोध के आधार पर बनी रिपोर्ट

संसद में समिति द्वारा यह रिपोर्ट देश के तीन प्रतिष्ठित आर्थिक और वित्तीय शोध संस्थानों, राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी), राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक शोध परिषद (एनसीएईआर) और राष्ट्रीय वित्तीय प्रबंध संस्थान (एनआईएफएम) के अध्ययनों के आधार पर रखी गई है.

एनआईएफएम का कहना है कि अवैध तरीके से विदेश भेजा गया काला धन कुल कालेधन के औसतन 10  फीसदी के बराबर रहा होगा. इसी तरह एनआईपीएफपी का अनुमान है कि 1997-2009 की अवधि में गैर कानूनी तरीके से बाहर भेजा गया धन देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के औसतन 0.2% से 7.4% के बीच था. बता दें कि कालेधन पर राजनीतिक विवाद के बीच मार्च 2011 में तत्कालीन सरकार ने इस तीनों संस्थाओं को देश और देश के बार भारतीयों के कालेधन का अध्ययन/सर्वेक्षण करने की जिम्मेदारी दी थी.

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कोई विश्वसनीय आंकलन करना कठिन

कांग्रेस के एम वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति के मुताबिक ऐसा लगता है कि अघोषित घन संपत्ति का कोई विश्वसनीय आंकलन करना बड़ा कठिन काम है. ऐसे में इन तीनों रिपोर्टों के आंकड़ों के आधार पर अघोषित संपत्ति का कोई एक साझा अनुमान निकालने की गुंजाइश नहीं है. बता दें कि इस स्थायी समिति ने 16वीं लोक सभा भंग होने से पहले बीते 28 मार्च को ही लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. इसके बाद आम चुनाव हुए और 17वीं लोकसभा का गठन हुआ है.

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