आतंकवाद के ब्रेक से बार-बार टूट जाती है कश्मीरी इकोनॉमी की लाइफलाइन

जहां बीते पांच सालों में राज्य की अर्थव्यवस्था 15 फीसदी की औसत दर से बढ़ी हैं वहीं प्रति वर्ष उसे हजारों करोड़ रुपये का कारोबारी नुकसान सिर्फ इसलिए उठाना पड़ता है क्योंकि राज्य में विकास की रफ्तार पर आंतकवाद की लगाम लगी है.

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एक बार फिर ठप पड़ने जा रहा जम्मू-कश्मीर का कारोबार एक बार फिर ठप पड़ने जा रहा जम्मू-कश्मीर का कारोबार

राहुल मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 12 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 11:15 AM IST

जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था की लाइफलाइन सेक्टर हैं पर्यटन, सर्विस, कृषि, हॉर्टीकल्चर, माइनिंग, हैंडीक्राफ्ट और हैंडलूम. जहां बीते पांच सालों में राज्य की अर्थव्यवस्था 15 फीसदी की औसत दर से बढ़ी हैं वहीं प्रति वर्ष उसे हजारों करोड़ रुपये का कारोबारी नुकसान सिर्फ इसलिए उठाना पड़ता है क्योंकि राज्य में विकास की रफ्तार पर आंतकवाद की लगाम लगी है.

कम हो जाएंगे अमरनाथ यात्रा करने वाले श्रद्धालू

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अमरनाथ यात्रा राज्य में टूरिज्म के पीक सीजन का सबसे अहम इवेंट है. इस सीजन में लगभग 3-4 लाख श्रद्धालू दर्शन करने के लिए राज्य पहुंचते हैं. इस साल 29 जून से शुरू इस यात्रा में 10 जुलाई तक 1.5 लाख श्रद्धालू दर्शन कर चुके हैं और 2-2.5 लाख श्रद्धालुओं को और पहुंचना है. लेकिन 10 जुलाई को अमरनाथ यात्रियों से भरी बस पर हुए आतंकी हमले के बाद इस आंकड़े में बड़ी गिरावट दर्ज होने का अनुमान है. इसके चलते महज इस यात्रा से राज्य को मिलने वाले राजस्व में बड़ी गिरावट दर्ज होने के आसार हैं.

इस यात्रा के अलावा, राज्य के कारोबार के लिए अहम अन्य क्षेत्रों के लिए भी यह वक्त बेहद अहम रहता है. टूरिज्म के बाद राज्य में छोटे और मध्यम कारोबार का बड़ा योगदान राज्य की अर्थव्यवस्था में रहता है. जून से शुरू पीक टूरिज्म सीजन राज्य में जुलाई-अगस्त-सितंबर और नवंबर तक चलता है.

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जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था में छोटे-बड़े कारोबार का योगदान

• 2013-14 के दौरान जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था 45,399 करोड़ रुपए थी. इस साल अर्थव्यवस्था में विकास के लक्ष्य भी बड़े थे.

• सूबे की जीएसडीपी में कृषि एवं संबंधित क्षेत्र का योगदान 20 फीसदी, इंडस्ट्री और माइनिंग का योगदान 23.5 फीसदी और सर्विस सेक्टर का योगदान 56.5 फीसदी है.

सितंबर से नवंबर सीजन का सबको रहता है इंतजार

• सितंबर से नवंबर जम्मू-कश्मीर के लिए बड़ी कारोबारी हलचल वाला महीना होता है. यूं कह सकते हैं कि इसमें काटी गई फसल की कीमत और फायदा दोनों उद्यमियों को मिलता है. मौजूदा समय में राज्य में फसल तैयार हो रही है और किसानों को अपनी फसल से कमाई की बड़ी उम्मीद रहती है.

• एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में आतंकी घटना अथवा प्राकृतिक आपदा के चलते इस सीजन में बड़ी संख्या में घरेलू और विदेशी पर्यटक अपने टिकेट कैंसिल करा देते हैं. इसका सीधा असर राज्य के सभी कारोबार पर पड़ता है.

टूरिज्म के सहारे खड़ी राज्य की इंडस्ट्री

• पर्यटन क्षेत्र के सहारे जम्मू कश्मीर के छोटे उद्यमों का कारोबार होता है. ऐसे में सितंबर से नवंबर के बीच सूबे को पर्यटकों से बड़ी उम्मीदें रहती हैं. जब पर्यटक नहीं आते या संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज होती है तो इसका असर सभी क्षेत्रों पर देखने को मिलता है.

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• हैंडलूम, हैंडीक्राफ्ट, कृषि, इत्यादि उत्पाद पर्यटकों को इस सीजन में बेंचे जाते हैं. ऐसे में रोजमर्रा का काम करने वाले और पर्यटन से जुड़े तमाम लोगों की आजीविका भी चलती है. मौजूदा हालात में इन पर सबसे बड़ा संकट है.

• राज्य में स्थिति टूरिज्म के अनुकूल नहीं रहने पर होटल और रेस्टोरेंट को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है. वहीं जब मामला आतंकवाद के चलते सुरक्षा का रहता है तो स्थिति सामान्य होने में लंबा वक्त लगता है. इस दौरान होटल और रेस्टोरेंट कारोबार ठंडा पड़ा रहने के साथ-साथ रखरखाव का काम भी नहीं हो पाता. लिहाजा, स्थिति सामान्य होने से पहले इस क्षेत्र में बड़ा निवेश कर एक बार फिर पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाओं को जुटाया जाता है.

• एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक सबसे बड़ी चिंता पर्यटकों का भरोसा टूटना है और पर्यटकों को दोबारा राज्य में आकर्षित करने में लंबा समय लगता है. उन्होंने उत्तराखंड का उदाहरण देते हुआ कहा कि वह पिछले साल की अप्रत्याशित बाढ़ से अभीतक राज्य उबर नहीं पाया है.

 

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