IL&FS संकट पर सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि मौजूदा केन्द्र सरकार का मानना है कि इसके लिए यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान पॉलिसी पैरालिसिस जिम्मेदार है. यूपीए कार्यकाल में प़ॉलिसी पैरालिसिस के चलते कई इंफ्रास्ट्रकर सेक्टर के प्रोजेक्ट्स रुक गए थे जिसके चलते IL&FS कर्ज के बोझ में दब गया.
केन्द्र सरकार में सूत्रों ने दावा किया है कि पूर्व में कंपनी ने कर्ज देने के काम में सावधानी नहीं बरती और आज उसके सामने डूबने का संकट मंडरा रहा है. सूत्रों ने बताया कि IL&FS का कर्ज छिपाने की कोशिश की गई कंपनी की वित्तीय हालत तब उजागर हुई जब उसने डिफॉल्ट करना शुरू कर दिया. इस डिफॉल्ट के चलते वित्तीय बाजार में उच्च स्तर की रेटिंग से गिरकर कंपनी को डिफॉल्ट रेटिंग दी गई है.
इंडिया टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक IL&FS ग्रुप 2012 की शुरुआत में गंभीर समस्याओं से घिर गया था. वहीं 2014 के आम चुनावों से पहले ही कंपनी के पास बड़ी संख्या में खटाई में पड़े प्रोजेक्ट्स एकत्र हो गए. सूत्रों ने दावा किया कि यूपीए की पॉलिसी पैरालिसिस के चलते खटाई में पड़े इन प्रोजेक्ट्स को डेट फाइनेंनसिंग के जरिए जिंदा रखने का काम किया गया.
सूत्रों के मुताबिक IL&FS इंजीनियरिंग को 2011-12 से लगातार नुकसान हो रहा था. जिसके बाद 2015-16 में कंपनी प्रॉफिट के दायरे में आई. वहीं IL&FS ट्रांस्पोर्टेशन नेटवर्क लिमिटेड का प्रॉफिट 2012-13 से साफ होने लगा. वहीं कंपनी का नेट डेट इस दौरान 13,939 करोड़ रुपये से बढकर 2017-18 में 29,961 करोड़ रुपया हो गया.
गौरतलब है कि कर्ज के चलते विवादों में फंसी IL&FS के खिलाफ केन्द्र सरकार ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी- NCLT) का दरवाजा कंपनी एक्ट 2013 के सेक्शन 241 के साथ सेक्शन 242 के तहत खटखटाया है. केन्द्र सरकार ने एनसीएलटी से कंपनी के मौजूदा बोर्ड ऑफ डायरेक्टर को रद्द करते हुए नए बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बनाने की मंजूरी मांगी है.
राहुल श्रीवास्तव / राहुल मिश्र