बेरोजगारी से युवा दे रहे जान, NCRB के आंकड़ों ने खोली पोल

जब नौकरी ही नहीं होगी तो इंसान खाएगा क्या और बचाएगा क्या? अगर आप सोच रहे हैं कि बेरोजगारी का मुद्दा केवल रोटी से जुड़ा है तो आप गलत समझ रहे हैं. बेरोजगारी के मुद्दे से सरकार की बेरुखी नौजवानों की जिंदगी निगल रही है.

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घटते रोजगार के अवसर से युवा परेशान (Photo: File) घटते रोजगार के अवसर से युवा परेशान (Photo: File)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 जनवरी 2020,
  • अपडेटेड 8:49 AM IST

  • 2018-19 के मुकाबले 19-20 में 16 लाख नौकरी कम होंगी
  • कॉन्ट्रैक्ट वाले रोजगार पर सबसे ज्यादा गाज गिरने की आशंका

जब नौकरी ही नहीं होगी तो इंसान खाएगा क्या और बचाएगा क्या? अगर आप सोच रहे हैं कि बेरोजगारी का मुद्दा केवल रोटी से जुड़ा है तो आप गलत समझ रहे हैं. बेरोजगारी के मुद्दे से सरकार की बेरुखी नौजवानों की जिंदगी निगल रही है.

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एनसीआरबी के ताजा आंकड़े आपको डरा देंगे. 2018 में 12936 नौजवानों ने बेरोजगारी के कारण जान दी. रोजाना औसतन 35 लोगों ने बेरोजगारी के चलते जान दी. इसी दौरान खेती से जुड़े 10349 लोगों ने अपनी जान दी.

ऐसी स्थिति आई क्यों?

समझना पड़ेगा कि अर्थव्यवस्था की ऐसी दुर्दशा क्यों हुई? क्योंकि लोगों के पास खरीदारी की क्षमता कम हो गई है, लोगों के पास खरीदारी की क्षमता क्यों कम हुई? क्योंकि नौजवानों के पास नौकरी या रोजगार ही नहीं है. नौजवानों के पास रोजगार क्यों नहीं है? क्योंकि सरकार ने कंपनियों और उद्योगों की कमर तोड़ दी. नौजवानों के पास रोजगार होने से क्या होगा?- वो खरीदारी करेंगे तो बाजार में रुपये की आवाजाही बढ़ेगी. बाजार में रुपया आएगा तो क्या होगा?-मांग बढ़ेगी, मांग बढ़ेगी उत्पादन के लिए उद्योग लगेंगे.

रिपोर्ट ने खोली पोल

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भारत के सबसे बैंक स्टेट बैंक के रिसर्च विंग ईकोरैप की एक रिपोर्ट आई है. रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 के मुकाबले 19-20 में 16 लाख नौकरी कम होंगी. सरकारी नौकरियां भी 39 हजार कम होने का अनुमान है. अनुबंध यानि कॉन्ट्रैक्ट वाले रोजगार पर सबसे ज्यादा गाज गिरने वाली है.

2018-19 में 89 लाख 70 हजार नए रोजगार पैदा हुए. लेकिन 2019-20 में इसके घटकर केवल 73 लाख 90 हजार रह जाने का अनुमान है. इन दोनों का अंतर करीब 15 लाख 80 हजार का है.  वहीं 2019-20 में जीडीपी केवल 5 फीसद रहने का अनुमान लगाया गया है. पिछले 11 साल में ये जीडीपी का सबसे खराब स्तर होगा.

तुरंत कदम उठाने की जरूरत

वहीं अर्थशास्त्रियों चेतावनी दे रहे हैं कि सरकार ने तुरंत कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो समस्या और गंभीर हो जाएगी. क्योंकि बेरोजगारी में लगातार बढ़ोतरी हो रही है, महंगाई बढ़ती जा रही है और इन सबके बीच मांग (डिमांड) घटती जा रही है. अब सबको राहत की उम्मीद बजट से है. लेकिन अर्थव्यवस्था के माहिर ये भी कहते हैं कि देश की माली हालत बेहद खस्ता है और ऐसे में बजट से किसी को बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए.

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