नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी ने आजतक से कहा- गरीबों को राहत, अमीरों पर ज्यादा टैक्स जरूरी

आजतक से खास बातचीत में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार हासिल करने वाले इकोनॉमिस्ट अभ‍िजीत बनर्जी ने कहा कि वे भारत में कॉरपोरेट टैक्स कटौती से निराश हुए हैं. उन्होंने कहा कि अमीरों पर टैक्स लगाना और उससे गरीबों की भलाई के लिए काम करना उचित ही है.

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अभ‍िजीत बनर्जी को मिला है अर्थव्यवस्था का नोबेल पुरस्कार अभ‍िजीत बनर्जी को मिला है अर्थव्यवस्था का नोबेल पुरस्कार

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 4:05 PM IST

  • अभिजीत बनर्जी को मिला है अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार
  • अभिजीत बनर्जी ने आजतक से कहा कि अमीरों पर टैक्स जरूरी
  • बनर्जी ने गरीबों को राहत वाले वेलफेयर स्टेट की वकालत की

भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है. राजदीप सरदेसाई से खास बातचीत में अभिजीत ने कहा कि वे हाल में भारत में कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से निराश हुए हैं. उन्होंने कहा कि वेलफेयर स्टेट में अमीरों पर टैक्स लगाना और उससे गरीबों की भलाई के लिए काम करना उचित ही है.

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अमीरों पर हो ज्यादा टैक्स और गरीबों को मिले राहत

बनर्जी ने कहा कि अमीरों पर ऊंचा टैक्स लगाने और गरीबों को राहत देने की व्यवस्था सुचारु तरीके से चलती रही है, इसमें कहीं भी विरोधाभास नहीं है. सरकार को यह देखना होगा कि इकोनॉमी अच्छे से चले और गरीबों के प्रति उदार रहे. मुझे नहीं लगता है कि हाई टैक्स रेट से अमीर हतोत्साहित होते हैं. सरकार अमीरों पर ऊंचा टैक्स लगातार सही काम कर रही है. हमें वेलफेयर स्टेट के लिए ज्यादा टैक्स लगाना होगा, ता‍कि अर्थव्यवस्था स्थि‍र हो, लोगों का रोजगार न छिने. इसलिए कॉरपोरेट टैक्स में कटौती से मैं निराश हूं.'

उन्होंने कहा कि पीएम मोदी को जिस यंग वेल एजुकेटेड शहरी युवा से खास समर्थन मिला है, वह गरीबों को राहत के खिलाफ नहीं है. चुनाव इस मसले पर नहीं लड़ा गया. लोगों ने यह देखा है कि देश को मजबूती कौन दे रहा है.

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गरीबी को करीब से देखा

 आजतक से बनर्जी ने कहा, 'मैं एक मिडल क्लास फैमिली से हूं, लेकिन मेरे दादा जी ने जो मकान बनवाया वह संयोग से कोलकाता के सबसे बड़े स्लम के पास था. इस तरह मैं स्लम के बच्चों के साथ बड़ा हुआ, इसलिए गरीबी का काफी फर्स्ट हैंड एक्सपीरियंस रहा. हम अपने घर में गरीबों के जीवन पर चर्चा करते थे.'

उन्होंने कहा, 'हमें गरीबी के मनोवैज्ञानिक पहलू को भी देखना चाहिए. गरीब लोग बिना गरिमा के असमान, हिंसक माहौल में रहते हैं. उनके पास जीने का माद्दा नहीं होता, उनमें मृत्यु दर ज्यादा होती है.' 

जेएनयू की तरह पूरे समाज में हो असहमति की जग‍ह

बनर्जी ने कहा कि जिस तरह जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में वैध असहमति को जगह होती है, वैसे ही यह पूरे समाज में होना चाहिए. उन्होंने कहा, 'जेएनयू मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, मैं कोलकाता में रहा जहां पॉलिटिक्स की समझ बनी, लेकिन मैंने किसी पार्टी को ज्वाइन नहीं किया. राजनीति के बारे में मेरी समझ थी और राजनीतिक दलों के अंतर्संबंध को मैं समझता था. हमारे समाज में असहमति को जगह देनी चाहिए. जेएनयू में वैध असहमति को जगह होती है तो पूरे सोसाइटी में भी इसी तरह होना चाहिए, यही इंडिया की बुनियादी सोच है.'

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न्यूनतम आय देना क्यों जरूरी है

अभिजीत बनर्जी ने कहा, 'भारत में लोगों को कुछ न्यूनतम आय देना जरूरी है. चाहे वह किसी भी तरह से हो. बहुत से ऐसे लोग हैं जो मुश्किल में हैं. रियल एस्टेट कारोबार बैठ रहा है, बैंक बैठ रहे है. इन सबकी वजह से तमाम लोग नौकरियां खो रहे हैं. इसलिए ऐसे माहौल में लोगों के लिए सुरक्षा चक्र बहुत जरूरी है.'  

गरीबों को आलसी मानना छोड़ दें

उन्होंने कहा कि गरीबों को समानुभूति से देखने की जरूरत है. उन्होंने कहा, 'यह हमारे देश की लंबे समय से परंपरा रही है, सरकारें जनता को राहत देती रही है. ऐसा नहीं है कि लोग आलसी हैं इसलिए गरीब है, लोग मेहनत कर रहे हैं, लेकिन जॉब चली गई तो लोग क्या करेंगे? भारत को ऐसे पश्चिमी विचारों को अपनाने की जरूरत नहीं कि गरीब ऐसे आलसी लोग होते हैं जो बेहतर जीवन हासिल करने के लिए मेहनत नहीं करना चाहते.' 

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