आजकल एक अजीब सी बात हो रही है. हमारी वो युवा पीढ़ी, जो कभी मुंबई या दिल्ली जैसे बड़े शहरों की तेज रफ्तार जिंदगी का सपना देखती थी, अब सब छोड़कर जा रही है. आप सोच रहे होंगे कि अधिक सैलरी के लिए, लेकिन सच्चाई थोड़ी अलग है. अब इन युवाओं को बड़े शहरों में पैसा तो दिखता है, पर सुकून नहीं. कम सैलरी, आसमान छूता किराया और घर चलाने का तनाव, बस इसी वजह से ये नौजवान अब अपना बोरिया-बिस्तर बांधकर छोटे शहरों, छोटे शहरों या फिर अपने गांव की ओर रुख कर रहे हैं. यह सिर्फ सस्ता घर पाने की बात नहीं है, बल्कि यह बेहतर जिंदगी, शांति और स्थिरता की तलाश है.
IndiaToday.in ने इस बड़े बदलाव को समझने के लिए रियल एस्टेट एक्सपर्ट्स से बात की. पारस राय (प्रॉपर्टी मास्टर), शशांक गुप्ता (आरपीएस ग्रुप) और प्रमोद कुमार गुप्ता (कडमश्री डेवलपर्स) का कहना है कि अब युवाओं के लिए पैसा नहीं, बल्कि जगह और स्थिरता अधिक जरूरी है.
शहरों में महंगाई सिर चढ़कर बोल रही है
आज की युवा पीढ़ी की कमाई जितनी बढ़ रही है, उससे कहीं ज्यादा तेजी से शहरों में खर्च बढ़ गया है. किराया, मेंटेनेंस, ट्रैफिक, बाहर का खाना हर चीज महंगी हो चुकी है. इस पर रियल एस्टेट विशेषज्ञ पारस राय कहते हैं कि ' शहरों में घर की कीमतें और किराए इतने बढ़ गए हैं कि आम सैलरी वालों के लिए वहां टिके रहना मुश्किल हो रहा है. जबकि छोटे या उपनगरीय इलाकों में आपको उतने ही पैसों में बड़ा और बेहतर घर मिल जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा है. '
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महामारी ने सब बदल दिया
कोरोना वायरस महामारी के बाद तो लोगों की सोच ही बदल गई. अब सबको घर में खुली हवा, हरियाली, और शांति चाहिए. शहर के छोटे, भीड़भाड़ वाले अपार्टमेंट अब तनाव भरे लगने लगे हैं, जबकि उपनगरों के बड़े घर ज्यादा जरूरी लगने लगे हैं.
अब काम से ज्यादा लाइफ जरूरी
पहले लोग ऑफिस के पास घर लेते थे, ताकि आने-जाने में समय कम लगे. लेकिन अब ऑफिस से दूरी की चिंता कम हो गई है. पारस राय बताते हैं कि हाइब्रिड वर्क ने पूरा खेल बदल दिया है. अब रोज-रोज ऑफिस जाने की जरूरत नहीं है. इससे युवाओं को यह ताकत मिल गई है कि वे ऐसे घर चुन सकें जो सिर्फ ऑफिस के पास न हों, बल्कि उनकी सेहत और काम दोनों के लिए अच्छे हों. अच्छे इंटरनेट कनेक्शन के साथ, अब पहाड़ों या किसी शांत जगह से भी काम किया जा सकता है.
जिंदगी की क्वालिटी पहली प्राथमिकता
आरपीएस ग्रुप के निदेशक शशांक गुप्ता का कहना है कि 'अब युवा शांत पड़ोस, प्रकृति तक आसान पहुंच और कम तनाव वाली जिंदगी चाहते हैं. उपनगरीय इलाके अब केवल फीके नहीं रहे, बल्कि यहां आधुनिक सुविधाएं, अच्छे स्कूल और बच्चों के लिए सुरक्षित माहौल मिलने लगा है.'
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बिल्डर भी युवाओं के हिसाब से बदल रहे हैं
रियल एस्टेट डेवलपर भी इस ट्रेंड को समझ रहे हैं और अपने प्रोजेक्ट्स में बदलाव ला रहे हैं.
नए डिजाइन की मांग: शशांक गुप्ता बताते हैं कि 'अब लोग घरों में कोवर्किंग लाउंज (Co-working Lounges), हरियाली वाले क्षेत्र और अच्छी हवा वाला घर मांगते हैं. डेवलपर्स अब केवल घर नहीं बना रहे, बल्कि पार्क, जॉगिंग ट्रैक, क्लब हाउस जैसी सुविधाओं वाली पूरी की पूरी टाउनशिप बना रहे हैं, जो युवा परिवारों की जरूरतें पूरी करती हैं.
हिसाब-किताब सही नहीं बैठ रहा: कडमश्री डेवलपर्स इंडिया एलएलपी के निदेशक प्रमोद कुमार गुप्ता बताते हैं कि अब लोग किराए और महंगे रखरखाव शुल्क से परेशान हैं. उनके हिसाब से, "शहरों में उतना ही पैसा खर्च करके आपको छोटा घर मिलता है. लेकिन उपनगरों में उतने ही बजट में बेहतर सुविधाओं वाला बड़ा घर और कम मासिक खर्च मिल सकता है. यह समझदारी का कदम है."
अच्छा जीवन क्या है, युवा अब खुद तय कर रहे हैं
जैसे-जैसे युवा 30 की उम्र में आ रहे हैं और परिवार बनाने की सोच रहे हैं, उनकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं. दरअसल अब घर खरीदने से पहले लोग सुरक्षा व्यवस्था, बच्चों के लिए खेलने की जगह और अच्छे स्कूलों के बारे में पूछते हैं. इसके अलावा एक एक्स्ट्रा कमरा, बालकनी में हरियाली और थोड़ी खुली जगह, ये चीजें जो कभी महंगी विलासिता मानी जाती थीं, अब जरूरत बन गई हैं.
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि भले ही कुछ कंपनियों के कड़े नियम लोगों को वापस शहर बुला सकते हैं, लेकिन यह बड़ा बदलाव अब स्थायी है. युवा अब अपने 'अच्छे जीवन' की परिभाषा बदल रहे हैं, उनके लिए अब चमक-दमक वाले शहर से ज्यादा जरूरी है सुकून, स्थिरता और परिवार के लिए बेहतर माहौल.
(रिपोर्ट - जैस्मीन आनंद)
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