भारतीय घरों में आज भी गोल्ड और सिल्वर को ज्यादा महत्व दिया जाता है. यह सिर्फ ज्वेलरी के लिए नहीं, बल्कि एक सुरक्षित निवेश विकल्प के तौर भी देखा जाता है. लेकिन चार्टर्ड अकाउंटेंट नितिन कौशिक का मानना कुछ और ही है... वे इन धातुओं को इसके चमक से दूर रहने की सलाह देते हैं.
वे कहते हैं कि सोना सुरक्षित लगता है, क्योंकि आप इसे छू सकते हैं. लेकिन ज्यादातर लोगों के लिए फिजिकल गोल्ड कोई निवेश नहीं है. यह एक भावनात्मक खरीदारी है और भावनात्मक रूप से प्रेरित निवेश अक्सर छिपी हुए चार्जेज के साथ आते हैं, जो चुपके से आपके मुनाफे को कम कर देते हैं.
फिजिकल सोने-चांदी में छिपे हुए चार्ज
कौशिक का मानना है कि फिजिकल गोल्ड और सिल्वर में निवेश को नजरअंदाज करना चाहिए. जबकि स्मार्ट तरीका डिजिटल इन्वेस्टमेंट है. उनका कहना है कि फिजिकल गोल्ड और चांदी खरीदने का मतलब है रिटेल प्राइस चुकाना, जिसमें डीलर का मार्जिन, 3 फीसदी जीएसटी और ज्वेलरी के मामले में 5 से 8 फीसदी मेकिंग चार्ज शामिल है. हालांकि जब आप बेचते हैं तो आपको थोक प्राइस मिलता है यानी पहले दिन से ही आपको नुकसान होगा.
कौशिक बताते हैं, 'अगर आप 1.22 लाख रुपये प्रति 10 ग्राम के हिसाब से सोना खरीदते हैं और अगले दिन बेचने जाते हैं तो यह 1.18 लाख रुपये पड़ेगा, मतलब यह 4,000 रुपये का तत्काल नुकसान है, वह भी बिना कोई मार्केट में उतार-चढ़ाव के."
इसके विपरीत, डिजिटल गोल्ड, सिल्वर ETF और म्यूचुअल फंड पर चार्ज बहुत कम होता है. आमतौर पर 0.5 रुपये से 2 रुपये प्रति ग्राम (500 रुपये से 2,000 रुपये प्रति किलोग्राम). इन पर मेकिंग चार्ज भी नहीं लगता और ये आसानी से लिक्विडिटी प्रदान करते हैं. निवेशकों को एक छोटा सा सालाना मैनेजमेंट चार्ज देना पड़ सकता है, लेकिन कुल मिलाकर लागत भौतिक खरीद-बिक्री की तुलना में बहुत कम होती है.
क्या है रिस्क?
फिजिकल सोने को सुरक्षित रूप से रखना होता है. अक्सर बैंक लॉकरों में, जहां स्थान और आकार के आधार पर 1,000 रुपये से लेकर 10,000 रुपये तक का एनुअल चार्ज लगता है. समय के साथ यह काफी महंगा हो जाता है.
कौशिक यह भी कहते हैं कि इससे चोरी बगैरह की टेंशन बनी रहती है. जब आपकी दौलत लॉकर में बंद हो, तो आप पूरी तरह से निश्चिंत नहीं हो सकते. चोरी, नुकसान या गुम हो जाना, ये सभी वास्तविक चिंताएं हैं.
डिजिटल सोना-चांदी इस बोझ को कम करती हैं. गोल्ड ETF या डिजिटल गोल्ड प्लेटफॉर्म में निवेश इंश्योर्ड और ऑडिटेड वॉल्ट द्वारा सपोर्टिव होता है. निवेशक इलेक्ट्रॉनिक रूप से मेटल का मालिक होता है.
कौशिक बताते हैं कि डिजिटल गोल्ड में 10 लाख रुपये का निवेश शून्य भंडारण जोखिम और पूर्ण तरलता के साथ होता है, जिससे निवेशकों को तुरंत खरीदने, बेचने या भुनाने की सुविधा मिलती है.
प्योरिटी और सेलिंग पर कटौती
कई खरीदारों के लिए प्योरिटी एक अहम सवाल होता है. यहां तक कि BIS हॉलमार्क वाले सोने पर भी जांच शुल्क या मिश्र धातु की मात्रा पर संदेह के कारण सेलिंग पर 2 से 5 फीसदी की कटौती का सामना करना पड़ सकता है. ज्वेलरी की डिजाइन और निर्माण लागत के मामले में तो स्थिति और भी खराब है. यह 8 से 10 फीसदी की कटौती कर देते हैं. कौशिक कहते हैं कि हॉलमार्क वाली ज्वेलरी भी पूरी कीमत पर नहीं बिकते और चांदी के मामले में तो प्योरिटी का मुद्दा और भी बड़ा हो जाता है.
गोल्ड ईटीएफ और सिल्वर ईटीएफ जैसे डिजिटल निवेश इन समस्याओं को दूर करते हैं. ये 99.5% या उससे अधिक शुद्धता वाले सोने द्वारा पूरी तरह से समर्थित होते हैं, सेबी की ओर से अप्रूव होते हैं और इससे शुद्धता की गारंटी, मूल्य पारदर्शिता और भौतिक सत्यापन की परेशानी के बिना तत्काल लेनदेन सुनिश्चित होता है.
आजतक बिजनेस डेस्क