IPO वाली कंपनी मझगांव डॉक और यूटीआई AMC के बारे में जानें सबकुछ

मझगांव डॉक एक सरकारी क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी है. ये नौ-सेना और कोस्टगार्ड के लिए जंगी जहाज और पनडुब्बी बनाने का काम करती है.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 29 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 7:41 AM IST
  • मझगांव डॉक एक सरकारी क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी है
  • नौ-सेना और कोस्टगार्ड के लिए यह कंपनी बनाती है जंगी जहाज
  • UTI AMC देश की आठवीं सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड कंपनी

रिटेल निवेशकों के लिए मंगलवार यानी आज से सरकारी कंपनी मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स और यूटीआई AMC का आईपीओ ओपन होने जा रहा है. आप 1 अक्टूबर तक इसमें पैसा लगा सकते हैं. आईपीओ आने के बाद दोनों कंपनियां शेयर बाजार में ट्रेडिंग के लिए लिस्टिंग हो जाएंगी. आइए जानते हैं दोनों कंपनियों के कारोबार के बारे में.

मझगांव डॉक एक सरकारी क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी है. ये नौ-सेना और कोस्टगार्ड के लिए जंगी जहाज और पनडुब्बी बनाने का काम करती है. कंपनी जहाज और पनडुब्बी की मरम्मत का काम भी करती है. यह कंपनी जंगी जहाज की नई डिजाइन भी तैयार करती है. सबसे खास बात यह है कि इस कंपनी को साल 2006 में 'मिनीरत्न' का दर्जा प्राप्त हुआ है. इसका मुख्यालय मुंबई में है, इस कंपनी की नींव 1934 में रखी गई थी.

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वित्तीय सेहत कैसी है?
यह भारतीय नौसेना के लिए विध्वंसक और पारंपरिक पनडुब्बी बनाने वाला एकमात्र शिपयार्ड है. एमडीएल की आर्डर बुक 54,074 करोड़ रुपये की है और यह देश में कोरवेट्स (छोटे युद्धपोतों) का निर्माण करने पहला शिपयार्ड है. आगे कंपनी के कारोबार में विस्तार की व्यापक संभावना है. कंपनी की क्षमता 40,000 DWT की है.  

Photo: File

यूटीआई एएमसी के बारे में 
वहीं दूसरी कंपनी यूटीआई एएमसी का आईपीओ भी आज ही ओपन हो रहा है. यूटीआई एएमसी देश की आठवीं सबसे बड़ी म्यूचुअल फंड कंपनी है. यूटीआई में एसबीआई, पीएनबी, एलआईसी और बैंक ऑफ बड़ौदा की 18.5-18.5 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि टी रोवे प्राइस की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है.

अब एसबीआई, एलआईसी और बैंक ऑफ बड़ौदा 1.04 करोड़ इक्विटी शेयर बेचेंगे. जबकि पीएनबी और टी रोवे प्राइस 1.38 करोड़ शेयर बेचेंगे. सेबी की सख्ती के बाद ये चार बैंक हिस्सेदारी घटाने जा रहे हैं. 

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वित्तीय सेहत कैसी है?
वित्त वर्ष 2019-20 में यूटीआई एएमसी को शुद्ध मुनाफा 27.65 करोड़ रुपये का हुआ था. इससे पहले वित्त वर्ष 2018-19, वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2016-17 में यह आंकड़ा क्रमश: 34.79 करोड़ रुपये, 40.70 करोड़ रुपये और 39.52 करोड़ रुपये का था.

 

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