"पैरों में पायल, बालों में गजरे और मोहक रूप... कुछ दक्षिण भारतीय मंदिरों में विष्णु जी ऐसे क्यों दिखते हैं?

बेलूर और हेलिबिड में बने भव्य मंदिरों का निर्माण काल 12वीं-13वीं शताब्दी का है. इस प्रतिमा के 8 हाथ हैं. जिनमें दाहिनी ओर के चारों हाथ में तो विष्णु प्रतीक शंख-चक्र, गदा-पद्म हैं, लेकिन बाईं ओर के हाथों में अमृत कलश, वारुणि कलश, पुष्पमाला और स्फटिक हैं. देवी की प्रतिमा कुछ-कुछ नृत्य की मुद्रा में है, जो कि समुद्ग मंथन के बाद उसी कथा को बताने की कोशिश है, जिसमें मोहिनी ने असुरों से अमृत लेकर देवताओं को पिलाया था.

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दक्षिण भारत के मोहिनी मंदिर अपने आप में एक रहस्य हैं दक्षिण भारत के मोहिनी मंदिर अपने आप में एक रहस्य हैं

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2025,
  • अपडेटेड 9:18 PM IST

भारत के दक्षिणी राज्य कर्नाटक की जमीन आज भी प्राचीन संस्कृति और इसकी विविधताओं से भरी हुई है. यहां होयसाल साम्राज्य के वैभवशाली अवशेष आज भी जीवित हैं. इसी वैभव का प्रतीक है हेलेबिडू की बस्ती में स्थित होयसालेश्वर मंदिर, जिसे श्री जगनमोहिनी केशव स्वामी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

मंदिर में स्थापित प्रतिमा कैसी है?

मंदिर में स्थापित मुख्य प्रतिमा शालिग्राम शिला से बनी है, जो 5 फीट ऊंची और 3 फीट चौड़ी है. इसकी अलौकिक शोभा और बारीक नक्काशी देखते ही बनती है. बेलूर-हेलिबिड की स्थापना एक प्रजा पालक राजा कामा, जिसे नृप काम नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने की थी. होयसाल शासक  कला, शिल्प और स्थापत्य के महान संरक्षक थे.

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बेलूर और हेलिबिड में बने भव्य मंदिरों का निर्माण काल 12वीं-13वीं शताब्दी का है. इस प्रतिमा के 8 हाथ हैं. जिनमें दाहिनी ओर के चारों हाथ में तो विष्णु प्रतीक शंख-चक्र, गदा-पद्म हैं, लेकिन बाईं ओर के हाथों में अमृत कलश, वारुणि कलश, पुष्पमाला और स्फटिक हैं. देवी की प्रतिमा कुछ-कुछ नृत्य की मुद्रा में है, जो कि समुद्ग मंथन के बाद उसी कथा को बताने की कोशिश है, जिसमें मोहिनी ने असुरों से अमृत लेकर देवताओं को पिलाया था.

भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक है मोहिनी

इस मंदिर में प्रतिमा के चेहरे पर बनी मुस्कान ही इसका मुख्य आकर्षण है, लेकिन इस प्रतिमा का भागवत से क्या संबंध है? भागवत पुराण में एक कहानी दर्ज है, जो भगवान विष्णु के 24 अवतारों से जुड़ी है. इनमें से उनका एक अवतार मोहिनी का है. स्कंद पुराण में भी दर्ज कहानी के मुताबिक, जब समुद्र मंथन में से अमृत निकला तो देवता और असुर दोनों ही इसके लिए लड़ पड़े. असुरों ने चालाकी से अमृत को अपने कब्जे में कर लिया, तब देवताओं की सहायता के लिए भगवान विष्णु ऐसी स्त्री बनकर आए, जिसने सिर्फ अपनी झलक से ही सभी को मोहित कर दिया.

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सागर मंथन, अमृत की कहानी और मोहिनी का 'स्पाई यूनिवर्स'

अमृत वाली इस कहानी में एक ऐसा खूबसूरत स्त्री किरदार चाहिए था, जिसे कोई जानता न हो. ये सवाल उठ सकता है कि जब रंभा, उर्वशी जैसी अप्सराएं स्वर्ग में मौजूद थीं, तो भगवान विष्णु को एक स्त्री का ही रूप क्यों बनाना पड़ा. इसकी वजह यही है उन्हें ऐसी महिला को भेजना था, जो खूबसूरत होने के साथ अच्छी जासूस भी हो, जिसे कोई न जाने और छल-छद्म भी कर ले और मायावी भी हो. यह सारे कार्य खुद विष्णु ही कर सकते थे, इसलिए वही मोहिनी बनकर गए.  

असुर मोहिनी की सुंदरता से इतने मोहित हुए कि नाम-गांव तो पूछना भूल गए उल्टा अमृत कलश सौंप दिया. इस प्रसंग को पौराणिक जासूसी गतिविधि का एक उदाहरण माना जा सकता है.

शिवमहापुराण में भी होता है मोहिनी का जिक्र

इसके अलावा मोहिनी का जिक्र शिव महापुराण में भी होता है. जब शिव एक राक्षस को दिए वरदान से खुद ही संकट में फंस जाते है, तब विष्णु जी ने मोहिनी अवतार लिया था. यह अवतार महज शिव को भस्मासुर से बचाने के लिए नहीं है, और न ही केवल देवताओं को अमृत पिलाने के लिए है, बल्कि यह अवतार बताता है कि पुरुष को जब अपने पौरुष-बाहुबल और वर्चस्व पर घमंड हो जाए तो बस एक बार वह मोहिनी स्वरूप को याद कर ले. मोहिनी भगवान विष्णु की वही आत्मिक शक्ति है, जो सृष्ट की शुरुआत और प्रलय के समय 'माया' नाम से उनके आज्ञाचक्र में निवास करती है.

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18 पुराणों में भी अलग-अलग तरीके से मोहिनी की व्याख्या की गई है. बह्म वैवर्त पुराण ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना का वर्णन करता है. उस दौरान सबसे पहले एक स्त्री का अवतरण हुआ. इसी स्त्री की मुस्कान से प्रेरित होकर ब्रह्नांड की रचना की गई. ब्रह्माण्ड और पद्म पुराण भी यह बताते हैं कि विष्णु के आज्ञाचक्र में निवास करने वाली देवी ही विश्व मोहिनी हैं, जिनके कारण प्राणि की बुद्धि, स्मृति और मेधा शक्ति होती है. यही देवी नींद, भूख, प्यास को भी जगाती हैं और नियंत्रण में रखती हैं. शाक्त परंपरा में इसे ही स्वतंत्र रूप में त्रिपुर सुंदरी कहा गया है.

आंध्र प्रदेश में जगत मोहिनी मंदिर

आंध्र प्रदेश के रियाली में भी एक मोहिनी मंदिर है, जिनको भी जगत मोहिनी नाम से ही जाना जाता है. यह स्थान 11 वीं शताब्दी के दौरान एक जंगल था. मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी के दौरान चोल राजा राजेविक्रम देव ने करवाया था. प्रतिमा के सामने का भाग भगवान विष्णु को नर रूप में दिखाता है और पिछला भाग स्त्री रूप का है. यही जगन मोहिनी है. मूर्ति एक विशिष्ट महिला के रूप में है. जिनके बाल फूलों के गजरों से सजे हुए हैं और इनके पैरों में गहने हैं.

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जगन मोहिनी मंदिर में समय-समय पर कई धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं. इसमें श्री जगनमोहिनी केशव स्वामी कल्याणम प्रमुख है, जो चैत्र शुक्ल नवमी से पूर्णमा तक होता है. श्री राम सत्यनारायण स्वामी कल्याणम वैशाख शुक्ल एकादशी से पूर्णमा तक होता है. श्री वेणुगोपाला स्वामी कल्याणम ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी से जून के महीने में पूर्णिमा तक होता है. श्रवण बहुला अष्टमी श्री कृष्ण अष्टमी (अगस्त). इसके अलावा मुकोटि एकादशी और भीष्म एकादशी के पर्व मुख्य तौर पर मनाए जाते हैं.

गोवा में महालसा नारायणी नाम से जानी जाती हैं मोहिनी

मोहिनी माता का एक मंदिर गोवा में भी है. यहां के मार्डोल में महालसा नारायणी मंदिर स्थापित है. मंदिर की देवी का नाम महालसा नारायणी ही है, जिन्हें मोहिनी अवतार के तौर पर देखा जाता है. महालसा नारायणी कोंकणी-भाषी परिवारों की कुलदेवी भी हैं. विदेशियों को आमतौर पर गर्भगृह में प्रवेश नहीं करने दिया जाता, लेकिन इस मंदिर में भारतीय और पुर्तगाली वास्तु शैलियों का मिला-जुला रूप देखने को मिलता है. महाराष्ट्र के नेवाला में भी एक महालसा मंदिर है, जिसे कुछ परंपराओं में मोहिनी के रूप में माना जाता है. मोहिनी का स्वरूप उत्तर भारतीय मंदिरों में लगभग नहीं के बराबर दिखता है, लेकिन दक्षिण-पश्चिमी भारत में मोहिनी देवी एक प्रमुख दैवीय शक्ति के तौर पर पहचानी जाती हैं.

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राजा रविवर्मा की पेंटिंग में मोहिनी

भारतीय पौराणिक किरदारों को अपनी पेंटिंग का विषय बनाने वाले महान चित्रकार राजा रवि वर्मा ने भी मोहिनी को अपनी कूची के रंग में रंगा था. राजा रवि वर्मा  ने अपनी पेंटिंग में यूरोपीय यथार्थवाद और भारतीय प्रतीकात्मकता के मेल से जो मिश्र शैली अपनाई, उसमें पौराणिक किरदारों की हकीकत वाली झलक मिलती है. उनकी एक पेंटिंग, जिसे उन्होंने 'मोहिनी' का नाम दिया था, इसमें मोहिनी इतनी साधारण और आम नवयौवना जैसी है, कि इस पेंटिंग को देखकर पुराण कथाओं वाली देवत्व छवि को आप भूल जाएंगे.

राजा रवि वर्मा की पेंटिंग मोहिनी (सोर्सः डॉ. रणजीत साहा की पुस्तक से)

यह भी तय नहीं कहा जा सकता है कि राजा रवि वर्मा की यह पेंटिंग क्या वाकई पौराणिक कथाओं वाला ही किरदार है या कोई सामान्य सुंदर स्त्री. पेंटिंग में उन्हें झूले पर बैठे हुए, सफेद साड़ी पहने हुए मोहक सुंदरता के साथ उकेरा गया है. मोहिनी की ये मुस्कान सिर्फ भारतीय पुराणों और मिथकीय कथाओं में नहीं छायी है, बल्कि विश्व की अन्य सभ्यताओं में भी मोहिनी की मौजूदगी नजर आती है. उनकी गाथा, अगले भाग में.

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