क्रिसमस की धूम दुनियाभर में है. हमले और पलायन सिर्फ मानव आबादी को इधर-उधर नहीं करते हैं, बल्कि इनके साथ सभ्यता और संस्कृति भी अपनी यात्राएं तय करती हैं. इसीकी देन है कि धरती के जिस हिस्से में कोई परंपरा भले ही वहां की स्थाई न हो, लेकिन समय के साथ और बाजार के प्रभाव में वह अपनी शाखाएं फैलाती ही है. लिहाजा आज भारत में भी क्रिसमस उतना ही लोकप्रिय त्योहार बन चुका है, जितना किसी अन्य यूरोपीय देश में. इसीके साथ क्रिसमस से जुड़े प्रतीकवाद स्थानीय स्तर पर अपना अर्थ खोजते हुए अपनी पहचान गढ़ने लगे हैं.
कैसे सजाया गया था पहली बार क्रिसमस ट्री?
इनमें प्रमुख हैं क्रिसमस ट्री के तौर पर सजाए जाने वाले देवदार के पेड़ और इसकी सबसे ऊंची चोटी पर चमकता पांच कोने वाला एक बड़ा सितारा. इतिहास कहता है कि 16वीं सदी में मॉर्टिन लूथर ने सर्द तारों भरी रात में देवदार के पेड़ों को देखा तो ऐसा लगा कि सितारे इसकी हर शाखा पर जगमगा रहे हैं. क्षितिज पर देखा गया ये लैंडस्केप उन्हें इतना भाया कि वह देवदार के पेड़ की एक टहनी काट लाए और उसे अपने कमरे में मोमबत्तियों से सजाया. यही पहला क्रिसमस ट्री था.
इस तरह देवदार के पेड़ क्रिसमस की पहचान बन गए और सितारे इसकी सजावट का हिस्सा. क्रिसमस ट्री में सितारों की मौजूदगी उस पुरानी धार्मिक कहानी से भी आती है जो ये संदेश लेकर आया था कि बेथलेहम में मसीह का जन्म हो चुका है. इसलिए क्रिसमस आते ही हर तरफ यह एक प्रतीक बार-बार नजर आता है. क्रिसमस ट्री की चोटी से लेकर लाइट्स, ग्रीटिंग कार्ड और यहां तक कि क्रिसमस कुकीज़ तक, सितारा हर जगह मौजूद रहता है.
सवाल यह है कि आखिर सितारा क्रिसमस का इतना अहम प्रतीक क्यों बन गया?
इसका एक सीधा-सा कारण प्रकृति की वह सादगी हो सकती है, जो सर्दियों की साफ रातों में चमकते तारों के रूप में दिखाई देती है. ठंडी, अंधेरी रात में दूर आसमान में टिमटिमाता एक उजला सितारा अपने आप में उम्मीद और सौंदर्य का अनुभव कराता है. क्रिसमस का सितारा केवल प्रकृति की खूबसूरती तक सीमित नहीं है.
यह सीधे-सीधे ईसा मसीह के जन्म की बाइबिल कथा से जुड़ा हुआ है. बाइबिल के अनुसार, एक तेज चमकते और सामान्य से बड़े तारे ने तीन ज्योतिषियों को नवजात यीशु तक पहुंचने का मार्ग दिखाया. भले ही इतिहासकार और खगोलविद इस बात पर एकमत न हों कि वास्तव में ऐसा कोई ‘स्टार ऑफ बेथलहम’ था या नहीं, लेकिन इस कथा ने सितारे को क्रिसमस का केंद्रीय प्रतीक बना दिया.
क्रिसमस के दौरान सितारे को कई रूपों में देखा जा सकता है. सबसे आम है पांच कोनों वाला साधारण सितारा, जो अक्सर क्रिसमस ट्री की चोटी पर लगाया जाता है और सजावट में भी नजर आता है. इसके अलावा आठ कोनों वाला लंबा सितारा भी लोकप्रिय है. इसके फैले हुए कोने केंद्र से निकलती रोशनी की किरणों जैसे दिखते हैं और कई बार इसे क्रॉस के आकार से जोड़ा जाता है. यही रूप पारंपरिक रूप से ‘स्टार ऑफ बेथलहम’ का माना जाता है.
मोरावियन स्टार, जो 1830 में जर्मनी में बनाया गया
एक खास और दिलचस्प रूप है मोरावियन स्टार. यह थ्री डाइमेंशनल सितारा है, जिसकी शुरुआत करीब 1830 में जर्मनी के सैक्सोनी क्षेत्र में हुई. शुरुआत में इसे स्कूल के बच्चों को ज्योमेट्री सिखाने के लिए एक क्राफ्ट प्रोजेक्ट के रूप में बनाया गया था. पारंपरिक मोरावियन स्टार में 26 कोने होते हैं, लेकिन कभी-कभी इसमें 100 तक कोने भी बनाए जाते हैं. बाद में मोरावियन चर्च ने इसे बेथलहम के तारे के प्रतीक के रूप में अपनाया और इसे नैटिविटी दृश्यों का हिस्सा बना दिया.
क्रिसमस स्टार और बाइबिल की कहानी
क्रिसमस के समय सितारा हमें बाइबिल की उस कथा की याद दिलाता है, जिसने सदियों से लोगों की आस्था को आकार दिया है. लेकिन यह प्रतीक केवल ईसाई धर्म तक सीमित नहीं है. जो लोग क्रिसमस नहीं भी मनाते, उनके लिए भी सर्दियों की सबसे अंधेरी रातों में चमकता एक सितारा नई शुरुआत, आशा और जीवन की संभावना का संकेत है. यही वजह है कि क्रिसमस का सितारा सिर्फ एक सजावटी तत्व नहीं, बल्कि अंधेरे के बीच उम्मीद का उजला संकेत बन गया है—जो हर साल, हर पीढ़ी को अपनी ओर खींचता है.
स्टार ऑफ़ बेथलेहम, जिसे आमतौर पर 'क्रिसमस स्टार' कहा जाता है, इसका जिक्र बाइबिल के 'गॉस्पेल ऑफ मैथ्यू' के दूसरे अध्याय में मिलता है.बाइबिल के अनुसार, यीशु मसीह के जन्म के समय पूरब से कुछ 'ज्ञानी पुरुष (जिन्हें बाइबिल के हिंदी संस्करण में मागी लिखा गया है, इसका अर्थ ज्योतिषि से मिलता जुलता है) यरुशलम पहुंचे. ये लोग राजा नहीं, बल्कि उस समय के विद्वान ज्योतिषी थे.
क्या है यशू मसीह के जन्म से जुड़े स्टार की कहानी
उन्होंने राजा हेरोदेस से पूछा 'यहूदियों का राजा कहां जन्मा है? हमने पूरब में उसका तारा देखा है और उसकी पूजा करने आए हैं.' यह सुनकर राजा 'हेरोदेस' परेशान हो गया. उसे डर था कि कहीं उसका सिंहासन छिन न जाए.
राजा हेरोदेस ने अपने धर्मगुरुओं और विद्वानों से पूछा कि मसीहा का जन्म कहां होना था. उन्होंने पुराने नियम (Old Testament) की 'मीका नबी' की भविष्यवाणी का हवाला देते हुए कहा- मसीहा का जन्म 'यरुशलम के दक्षिण में स्थित बेथलेहम' में होगा, जो कभी राजा दाऊद का नगर था. हेरोदेस ने गुप्त रूप से मागियों से तारे के दिखने का समय पूछा और उन्हें बेथलेहम भेज दिया. असल मंशा यह थी कि बाद में वह स्वयं उस बच्चे को मरवा सके.
मागी (ज्योतिषि) जब बेथलेहम की ओर चले, तो वही तारा फिर से दिखाई दिया और उन्हें उस स्थान तक ले गया जहां यीशु थे. वहां उन्होंने मरियम के साथ 'बालक यीशु' को देखा और उन्हें 'सोना, लोबान और गंधरस' भेंट किए.
क्रूर राजा ने कराई बच्चों की हत्या
बाइबिल में यहां यीशु के लिए यूनानी शब्द ‘पैडिऑन’ इस्तेमाल हुआ है, जिसका अर्थ शिशु या छोटा बच्चा होता है. इससे यह संकेत मिलता है कि मागियों की यात्रा जन्म के कुछ समय बाद हुई होगी. जब मागी वहां पहुंच गए, जहां यीशू का जन्म हुआ था, तब रात में सपने में उन्हें चेतावनी मिली कि वे हेरोदेस के पास वापस न जाएं. वे दूसरे रास्ते से अपने देश लौट गए. जब हेरोदेस को यह पता चला, तो उसने बेथलेहम और आसपास के क्षेत्र में 'दो साल से कम उम्र के सभी लड़कों की हत्या' का आदेश दे दिया. यह घटना बाइबिल में दर्ज इतिहास में 'मासूम बच्चों का नरसंहार' कहलाती है.
इसी बीच, यूसुफ़ को भी सपने में चेतावनी मिली. वह मरियम और यीशु को लेकर 'मिस्र' चला गया. बाद में इसे भी भविष्यवाणी के ही सच होने के तौर पर देखा गया क्योंकि टेस्टानेंट में परमेश्वर के वचन थे. 'मैंने अपने पुत्र को मिस्र से बुलाया' हेरोदेस की मृत्यु के बाद परिवार वापस लौटा और 'नासरत' में बस गया.
तारा और उससे जुड़ा दैवीय चमत्कार
ईसाई परंपरा में अधिकतर लोग मानते हैं कि यह तारा एक 'दैवी चमत्कार' था. हालांकि वैज्ञानिकों और खगोलविदों ने इसके कई संभावित कारण बताए हैं. उनके अनुसार उस रात बृहस्पति और शनि या बृहस्पति और शुक्र का दुर्लभ संयोग रहा होगा. इनमें से ही कोई एक ग्रह बड़ा और चमकदार दिख रहा होगा, जिसे तारा कहा गया.
यह कोई धूमकेतु रहा होगा जो चलता हुआ नजर आया. हालांकि इसे एक ऐतिहासिक घटना कम, बल्कि एक धार्मिक प्रतीकात्मक कथा अधिक माना जाता है.
क्रिसमस की पूर्व संध्या में गाए जाने वाले कैरल गीतों में भी इस तारे का जिक्र किया जाता है...
क्या दिन खुशी का आया,रहमत का बादल छाया,
दुनिया का मुंजीआया, आ हा हा हाल्लेलुयाह
पूरब से निकला तारा, जिसने किया इशारा,
रास्ते का बना सहारा, आ हा हा हाल्लेलूयाह
मागियों की यात्रा को पश्चिमी ईसाई परंपरा में '6 जनवरी (एपिफेनी)' के रूप में मनाया जाता है. क्रिसमस स्टार सिर्फ एक खगोलीय घटना नहीं, बल्कि आस्था, आशा और मार्गदर्शन का प्रतीक है. एक ऐसा तारा, जिसने अंधकार में रास्ता दिखाया और इतिहास की सबसे चर्चित जन्म-कथा को रोशनी दी.
इसीलिए आज भी क्रिसमस ट्री की सजावट में सबसे ऊपरी हिस्सा पर सितारे को सजाया जाता है, जो नई उम्मीद की किरण के तौर पर टिमटिमा रहा है.
विकास पोरवाल