उठो देव जागो देव... देव उठनी एकादशी पर गाएं ये भजन, जागते हैं भगवान विष्णु

देवोत्थान एकादशी, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है जब भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं. इस दिन उनकी पूजा और जागरण के लिए पारंपरिक मंत्रों के साथ-साथ लोक गीतों का भी विशेष महत्व है.

Advertisement
देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 8:28 PM IST

देव उठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि देव जागरण की तिथि कहलाती है. सामान्य मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं और फिर से संसार के भरण-पोषण का कार्य संभालते हैं. उनकी अनुपस्थिति में चार महीने तक यह कार्य अलग-अलग देवता करते रहते हैं, जिनमें शिवजी, गणेशजी, पितृ देवता और मां पार्वती या देवी दुर्गा भी शामिल हैं. खैर, ये पौराणिक मान्यता है और इनका जिक्र पुराण कथाओं में अलग-अलग संदर्भ में मिलता है. 

Advertisement

देव प्रबोधिनी एकादशी के दिन देव यानी विष्णु जी जागते हैं और उनके पूजन के दौरान उन्हें जगाने की परंपरा भी है. इस दिन देव को जगाने के लिए यानी उठाने के लिए कुछ पारंपरिक गीत गाए जाते हैं. पारंपरिक गीतों का महत्व मंत्रों से कम नहीं है. 

स्कंदपुराण में भगवान विष्णु को जगाने के लिए एक मंत्र का वर्णन है. 

उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज।
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यं मङ्गलं कुरु।। 

इसका अर्थ है कि हे कमलाकांत, हे गोविंद, हे गरुड़ध्वज आप जागिए और उठिए और संसार समेत त्रिलोक का मंगल कीजिए.

लेकिन, लोक परंपरा में लोक गीतों का स्थान भी मंत्रों के समान ही पवित्र है. इन लोक भजनों को नवधा भक्ति में शामिल किया गया है, क्योंकि इनकी भाषा सरल, भाव शुद्ध और सीधे ईश्वर तक अपनी बात अपने तरीके से पहुंचाई जाती है. देवोत्थान के मौके पर ऐसे ही एक भजन के जरिए श्रीहरि को उठाया जाता है. अपनी पूजा के दौरान आप भी इसे गा सकते हैं.

Advertisement

उठो देव बैठो देव गीत 
उठो देव बैठो देव

पाटकली चटकाओ देव

आषाढ़ में सोए देव
कार्तिक में जागे देव

कोरा कलशा मीठा पानी
उठो देव पियो पानी

हाथ पैर फटकारो देव
आंगुलिया चटकाओ देव

कुवारी के ब्याह कराओ देव
ब्याह के गौने कराओ

तुम पर फूल चढ़ाए देव
घी का दीया जलाये देव

आओ देव पधारो देव
तुमको हम मनाएं देव

चूल्हा पीछे पांच पछीटे
सासू जी बलदाऊ जी धारे रे बेटा

ओने कोने झांझ मंजीरा
सहोदर किशन जी तुम्हारे वीरा

ओने कोने रखे अनार
ये है किशन जी तुम्हारे व्यार

ओने कोने लटकी चाबी
सहोदरा ये है तुम्हारी भाभी

जितनी खूंटी टांगो सूट
उतने इस घर जन्मे पूत

जितनी इस घर सीक सलाई
उतनी इस घर बहुएं आईं

जितनी इस घर ईंट और रोडे
उत‌ने इस घर हाथी-घोड़े

गन्ने का भोग लगाओ देव

सिंघाड़े का भोग लगाओ देव
बेर का भोग लगाओ देव

गाजर का भोग लगाओ देव
गाजर का भोग लगाओं देव

उठो देव उठो...

ये भजन लोक परंपरा में शामिल है और बहुत प्रसिद्ध है. इसमें बड़ी ही सरल भाषा में, आम शैली में एक भक्त ने अपनी मांग, अपनी पुकार रखी है. भजन में हरिविष्णु को मौसमी फल जैसे गन्ना, सिंघाड़ा, बेर, गाजर आदि का भोग लगाने की बात है तो वहीं उनसे संतान, व्याह-शादी आदि की मांग की जा रही है. देवोत्थान के मौके पर आप भी इस गीत के जरिए भगवान विष्णु को जागृत कर सकते हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement