योगिंदर के. अलघ की कलम से: एमएस स्वामीनाथन और हरित क्रांति के जादू की कहानी 

एमएस स्वामीनाथन इस बात से पूरी तरह आश्वस्त थे कि पंजाब और हरियाणा के मॉडल को हर राज्य में नहीं दोहराया जा सकता है. उन्होंने महसूस किया कि देश के अन्य हिस्सों में अलग-अलग फसल पैटर्न और मॉडलों की जरूरत है. 

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हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथ (फाइल फोटो) हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथ (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 1:20 PM IST

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन का 98 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है. उन्हें दुनिया 'फादर ऑफ ग्रीन रेवोल्यूशन इन इंडिया' यानी 'हरित क्रांति के जनक' के रूप में जानती है. इंडिया टुडे पत्रिका ने देश की आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर पथप्रवर्तक/विज्ञान को लेकर विशेषांक प्रकाशित किया था, जिसमें प्रसिद्ध अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय योगिंदर के. अलघ ने एमएस स्वामीनाथन पर यह आलेख लिखा था-

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दुनिया एम.एस. स्वामीनाथन- जिन्हें हम प्यार से 'एमएसएस’ कहते हैं- को भारत की हरित क्रांति के वास्तुकार के रूप में देखती है, वह शख्स जिसने देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया. 

स्वामीनाथन किसानों की जरूरतों के प्रति उतने ही जागरूक थे, जितने कि बीजों के जीनोम के प्रति. खेती की जटिलताओं को समझने की क्षमता उन्हें उनके साथियों के बीच सबसे अलग बनाते हुए उनके काम को असाधारण बना देती थी. 

60 के दशक के मध्य में, भारत ने एक के बाद एक लगातार सूखे का सामना किया था और तब किसानों को दूसरी फसल लेने के लिए प्रेरित करना एक चुनौती थी. विश्व स्तर पर कृषि अर्थशास्त्री अपने लोगों की जरूरत का पर्याप्त अनाज उगाने की दिशा में भारत के प्रयासों को कम आंक रहे थे. 

फसल पैटर्न और उपज पर वास्तविक डेटा और जानकारियां एकत्र करने के कार्य के लिए सरकार की ओर से चुने जाने पर मैंने सभी जिला कलेक्टरों को ऐसी जानकारी साझा करने को लिखा था. इसके पहले मैंने कृषि संबंधी काम कभी नहीं किया था, इसलिए स्वामीनाथन के मार्गदर्शन से मुझे आत्मविश्वास मिला. 

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देश में हरित क्रांति के जनक एम. एस. स्वामीनाथन का निधन, 98 साल की उम्र में दुनिया को कहा अलविदा

जिलेवार आंकड़ों को इकट्ठा करने की बड़ी कसरत ने हमें हरित क्रांति की दृष्टि से संभावनाशील जिलों पर केंद्रित करने को अपेक्षित प्रयास समझने में मदद की. इस कार्य के मानचित्रण के काम के दौरान स्वामीनाथन लगातार हमारी मदद में खड़े रहे. उपलब्ध सिंचाई सुविधाओं और व्यवहार्यता पर उनकी अंतर्दृष्टि बहुत काम आई और हमें पंजाब और हरियाणा पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिली. 

स्वामीनाथन हालांकि आश्वस्त थे कि पंजाब और हरियाणा के मॉडल को हर जगह नहीं दोहराया जा सकता. उन्होंने महसूस किया कि देश के अन्य हिस्सों में अलग-अलग फसल पैटर्न और मॉडलों की जरूरत है. 

बाद में उन्हीं की दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप देश में स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) का नेटवर्क बनाने में मदद मिली, कॉर्पोरेट्स की भागीदारी के लिए दरवाजे खोले गए और फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित किया गया. मेरे और व्यवहार्य तथा विविधतापूर्ण कृषि के लिए काम कर रहे अन्य लोगों के लिए एमएसएस हमेशा शक्ति स्तंभ बने रहेंगे.   

(विख्यात अर्थशास्त्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री योगिंदर के. अलघ ने एमएस स्वामीनाथन पर यह लेख अगस्त, 2021 के इंडिया टुडे अंक के लिए लिखा था. योगिंदर के. अलघ का 6 दिसंबर, 2022 को निधन हो गया था.)

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