जैविक खेती के लिए सरकार दे रही पैसा, कितनी मिलेगी राशि और क्या होगा खेती का तरीका?

Bhartiya Prakritik Krishi Padhati Scheme: प्राकृतिक खेती प्रणाली को शून्य बजट खेती भी कहा जाता है, क्योंकि इस खेती में रसायनिक उर्वरक और खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि प्राकृतिक रूप से तैयार खादों का इस्तेमाल किया जाता है.

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Bhartiya Prakritik Krishi Padhati Scheme Bhartiya Prakritik Krishi Padhati Scheme

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2021,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST

Bhartiya Prakritik Krishi Padhati Scheme: प्राकृतिक रूप से खेती के तरीके को हमेशा से बेहतर माना गया है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भी खेती के इस तरीके को बढ़ावा देने के लिए किसानों को मदद पहुंचा रही है. सरकार प्राकृतिक खेती प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति (Bhartiya Prakritik Krishi Padhati, BPKP) योजना चला रही है. इस योजना के तहत सरकार किसानों को 12200 रुपये प्रति हेक्टेयर की राशि दे रही है.

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बीपीकेपी (Bhartiya Prakritik Krishi Padhati) के तहत, केंद्र सरकार किसानों को तीन वर्ष के लिए 12200 रुपये प्रति हेक्टेयर की आर्थिक मदद दे रही है. यह राशि किसानों को खेत को पूर्ण रूप से जैविक बनाने, उनके क्लस्टर निर्माण, क्षमता निर्माण के लिए दिया जाता है. प्राकृतिक खेती के तहत 8 राज्यों में ही करीब 5 (4.9 लाख) लाख हेक्टेयर क्षेत्र कवर किया जा चुका है. इन 8 राज्यों के लिए अभी तक 4980.99 लाख रुपए जारी किए जा चुके हैं.

प्राकृतिक खेती प्रणाली को शून्य बजट खेती भी कहा जाता है, क्योंकि इस खेती में रसायनिक उर्वरक और खाद का इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि प्राकृतिक रूप से तैयार खादों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में खेती पर होने वाला खर्च कम हो जाता है.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि प्राकृतिक खेती गोबर और मूत्र, बायोमास, गीली घास और मृदा वातन पर आधारित हमारी स्‍वदेशी प्रणाली है. अगले 5 वर्षों में, हमारा प्राकृतिक खेती सहित जैविक खेती के किसी भी रूप में 20 लाख हेक्टेयर तक पहुंच बनाने का इरादा है, जिनमें से 12 लाख हेक्टेयर बीपीकेपी (भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम) के अंतर्गत है.

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छोटे और सीमांत किसानों के बीच जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए 2015 में शुरू की गई परम्परागत कृषि विकास योजना ने पिछले चार वर्षों में 7 लाख हेक्टेयर और 8 लाख किसानों को कवर किया है. आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और केरल ने बड़े पैमाने पर प्राकृतिक खेती को अपनाया है.

अकेले आंध्र प्रदेश में इस योजना के तहत 2 लाख हेक्टेयर भूमि प्राकृतिक खेती के अंतर्गत लाई गई है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि प्राकृतिक खेती, पानी के अत्यधिक और अनावश्यक उपयोग, किसान को कर्ज में डूबने से रोकने, किसानों की आमदनी बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन में करते हुए ग्रीनहाउस गैसों को कम करने की दिशा में अहम भूमिका निभा सकती है.

विशेषज्ञों के मुताबिक प्राकृतिक खेती संश्लिष्ट या सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से बचाती है, जबकि पौधों की उर्वरता और अच्छे पोषण में योगदान देने वाले लाभकारी मिट्टी के जीवों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है.

 

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