बासमती चावल संयुक्त रूप से भारत और पाकिस्तान की विरासत है जिसे संस्कृत में 'सुंगध' कहा जाता है. हिमालय की तलहटी में उपजाऊ नदी घाटियों में सहस्राब्दियों से इसे उगाया जा रहा है. यह अपनी पौष्टिक, सुगंध, स्वाद और बनावट के लिए पसंद किया जाता है. भारतीय रसोई के साथ यह दुनिया भर में पसंद किया जाता है. मध्य पूर्व और ईरान में भी बासमती चावल की काफी मांग है. इस चावल का उपयोग घर की रसोई से लेकर पेशेवर रसोइये तक करते हैं. शादियों में पकने वाली स्पेशल बिरयानी से लेकर दाल के साथ साधारण उबले हुए चावल तक हर चीज के लिए बासमती का इस्तेमाल किया जाता है.
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दिल्ली के एग्जिक्यूटिव शेफ आशीष भसीन साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट से कहते हैं 'लंबे, अच्छी गुणवत्ता वाले बासमती चावल न केवल बिरयानी को स्वादिष्ट बनाते हैं बल्कि कढ़ी चावल, राजमा चावल और छोले जैसे व्यंजनों को भी अनूठा बनाते हैं. एक शेफ के रूप में मैं हमेशा बाजार से बेहतर किस्म के बासमती चावल लेने की कोशिश करता हूं.
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भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है, जो दुनिया के उत्पादन का 70 प्रतिशत हिस्सा है. भारत ने 2019 में 4.45 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया. इसमें सबसे बड़ा बाजार ईरान है. यूरोप भी सबसे बड़े आयातकों में से एक है, जहां बासमती को बड़े पैमाने पर सुपरमार्केट में बेचा जाता है और एशियाई रेस्तरां में इस्तेमाल किया जाता है. बासमती चावल की यूरोपीय मांग 2023 तक 615 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.
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पिछले कुछ वर्षों से भारत और पाकिस्तान यूरोपीय यूनियन में बासमती चावल के टाइटल के मालिकाना हक को लेकर आमने-सामने हैं. पाकिस्तान ने अपने बासमती निर्यात का विस्तार यूरोपीय ब्लॉक तक किया है क्योंकि भारत को यूरोपीय संघ के कड़े कीटनाशक मानकों को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. ईरान पर अमेरिकी पाबंदियों के चलते भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. भारत ईरान के लिए चावल का मुख्य निर्यातक है.
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भारत ने जुलाई 2018 में बासमती के स्पेशल ट्रेडमार्क या प्रोटेक्टेड ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (PGI) दर्जा के लिए यूरोपीयन काउंसिल के क्वालिटी स्कीम्स फॉर एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स फूड स्टफ्स में अप्लाई किया है. लेकिन पाकिस्तान ने भारत के इस कदम का विरोध कर रहा है.
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PGI का दर्जा भौगोलिक क्षेत्र से जुड़े उत्पादों के लिए बौद्धिक संपदा अधिकार मुहैया कराता है. मसलन स्टिल्टन चीज़ और दार्जिलिंग चाय. पीजीआई दर्जा मिलने से भारत को बासमती चावल के टाइटल का मालिकाना हक मिल जाएगा और उसे एक सुरक्षित बाजार मुहैया कराएगा. यूरोपीय देशों में बासमती चावल का दूसरे बड़े निर्यातक पाकिस्तान ने कहा कि इससे उसके निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. पाकिस्तान के राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (REAP) ने यूरोपीय संघ में विरोध जताया है.
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भारत-पाकिस्तान 1947 से पहले तक दो देश नहीं हुआ करते थे. ऐतिहासिक रूप से भारत-गंगा के विशाल मैदान में सीमा के दोनों तरफ बासमती की खेती की जाती है. हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर सहित सात भारतीय राज्यों के हिमालय की तलहटी में शानदार किस्म के चावल का उत्पादन होता है. पाकिस्तान में, बासमती चावल का उत्पादन रावी और चिनाब नदियों के बीच किया जाता है जो एक उपजाऊ क्षेत्र है जिसे कलार बेसिन कहा जाता है.
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इन क्षेत्रों में बासमती चावल के उत्पादन के लिए जलवायु के साथ साथ अन्य चीजें भी अनुकूल हैं. बासमती की शानदार सुगंध हाइड्रोकार्बन, कीटोन और अल्कोहल जैसे विभिन्न वाष्पशील यौगिकों के चलते आती है. इसमें किसी भी अन्य चावल की तुलना में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है.
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बासमती को चावल की अन्य किस्मों की तुलना में प्रीमियम माना जाता है. इसकी सुगंध, गुणवत्ता भिगोने और पकाने के बाद और खिलकर सामने आती है. पकाने के बाद बासमती का आकार दोगुना हो जाती है. शराब की तरह बासमती चावल भी जितना पुराना होता है उतना ही इसमें निखार आता जाता है. पुराने चावल की गुणवत्ता को लेकर हिंदी साहित्य में मुहावरा तक है. कटाई के बाद इसे कम से कम 12 महीने से दो साल तक भंडार में रखा जाता है, ताकि यह चिपचिपा न हो और इसकी सुगंध बढ़ जाए.
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दो देशों को तो छोड़िए. खुद भारत में राज्यों के बीच बासमती चावल को लेकर विवाद रहे है. मध्य प्रदेश ने अपनी चावल उपज के लिए खास दर्जा हासिल करने की कोशिश की लेकिन असफल रहा. मध्य प्रदेश ऐतिहासिक रूप से चावल का उत्पादक राज्य भी नहीं रहा है.
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बासमती चावल के संरक्षण को लेकर भारत की लड़ाई का एक लंबा इतिहास रहा है. 1990 में, अमेरिकी कंपनी राइसटेक ने कुछ बासमती किस्मों के लिए पेटेंट हासिल करने का प्रयास किया, जिसे भारत की देशी बासमती को एक अमेरिकी लंबी चावल की किस्म के साथ क्रॉसब्रीडिंग करके विकसित किया गया था. लेकिन इसका खासा विरोध हुआ है. रसोई पर किताब लिख चुके मधुर जाफरी ने वॉल स्ट्रीट जर्नल में लिखा, "वे (अमेरिकी) अपने चावल को बासमती कहने हिम्मत कैसे करते हैं. यह हमारी फसल है. हमारे पास इसका इतिहास है."
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लंबी लड़ाई के बाद भारत 1997 में बासमती का पेटेंट हासिल कर पाया. फिर भी राइसटेक द्वारा उत्पादित तीन चावलों का अमेरिका को पेटेंट मिल गया. उस समय पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ वंदना शिवा ने कहा था कि यह भारतीय किसानों के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राउट्स और जैव विविधता की विरासत की सामूहिक चोरी है. यह भारतीय व्यापारियों और निर्यातकों से की गई चोरी है.
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साझी विरासतः विश्लेषकों का माना है कि दोनों देशों में बासमती चावल के निर्यातक इसके ट्रेडमार्क पर एक संयुक्त दावे को प्राथमिकता देंगे क्योंकि यह साझी विरासत है.
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पिछले 70 वर्षों से चावल निर्यात के व्यावसाय से जुड़े चमन लाल सेतिया एक्सपोर्ट्स के अंकित सेतिया ने कहा, “बासमती चावल दोनों देशों का है. इसे केवल पंजाब, हरियाणा और भारत के गंगा के मैदानी इलाकों के आसपास एक विशेष सूक्ष्म जलवायु में उगाया जा सकता है. लेकिन भारत की तुलना में पाकिस्तान कम निर्यात करता है और इससे भारतीय निर्यातकों को बिल्कुल भी परेशानी नहीं होनी चाहिए. हमारी गुणवत्ता और मात्रा हमें निर्यात बाजार में बहुत मजबूत बनाती है. यदि कोई आयातक बड़ी मात्रा में बासमती चाहता है, तो केवल एक भारतीय निर्यातक ही डिलीवरी कर सकता है."
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विश्लेषकों का कहना है कि यूरोपीय संघ के नियमों के अनुसार, भारत और पाकिस्तान को सितंबर तक एक सौहार्दपूर्ण समाधान पर बातचीत करने का प्रयास करना चाहिए. हालांकि यह मुश्किल होगा.
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