बिहार में चुनावी माहौल गर्म है. अलग-अलग राजनीतिक दल और नेता अपने-अपने क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं और मतदाताओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का उनके गृह क्षेत्र नालंदा से एक खास नाता है. नालंदा सिर्फ़ राजनीति का केंद्र नहीं है, बल्कि यह दुनिया भर में इतिहास और आध्यात्म का एक जाना-माना नाम है. यह वह जगह है, जहां सदियों पहले दुनिया का सबसे प्राचीन आवासीय विश्वविद्यालय खड़ा था, जिसने हज़ारों विद्वानों को ज्ञान दिया.
भले ही नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण हों, लेकिन इसके आसपास ऐसी 5 और भी जगहें हैं, जो आपकी यात्रा को यादगार बना देंगी और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से आपका परिचय कराएंगी. अगर आप बिहार घूमने की योजना बना रहे हैं, तो इन आध्यात्मिक और ऐतिहासिक स्थलों को अपनी लिस्ट में शामिल करना न भूलें. हम आपको बताते हैं नालंदा और उसके आसपास के इन खास स्थलों की कहानी.
नालंदा के गौरवशाली अतीत का सबसे बड़ा प्रमाण हैं, यहां खड़े विश्वविद्यालय के खंडहर. 5वीं शताब्दी ईस्वी में गुप्त राजाओं के समय में स्थापित, यह संस्थान 12वीं शताब्दी तक फलता-फूलता रहा और दुनिया के पहले आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक बना. आज, इन विशाल खंडहरों को देखना, यहां के मंदिरों, मठों और स्तूपों के बीच चलना, आपको प्राचीन भारत की बौद्धिक और आध्यात्मिक शक्ति का एहसास कराएगा. इतना ही नहीं यह महसूस होता है कि यहां की मिट्टी में ही ज्ञान समाया हुआ है.
नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों के पास ही एक आधुनिक मंदिर है, जिसे स्थानीय लोग तेलिया भैरव या काला बुद्ध मंदिर कहते हैं. इस मंदिर की खास पहचान है, यहां मौजूद भगवान बुद्ध की एक प्राचीन और भव्य काले रंग की प्रतिमा. जिसमें बुद्ध 'भूमिस्पर्श मुद्रा' में बैठे है. यहां के स्थानीय लोग आज भी इस मूर्ति का सम्मान करते हैं. इस मंदिर का पुराना उल्लेख पुरातत्व विभाग की 1861-62 की रिपोर्ट में भी मिलता है. जो कि दिखाता है कि सदियों से यहां धार्मिक भक्ति की धारा कभी टूटी नहीं.
नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों के पास ह्वेन त्सांग स्मारक हॉल खड़ा है, जो प्रसिद्ध चीनी यात्री और महान विद्वान ह्वेन त्सांग को समर्पित है. उन्होंने प्राचीन काल में यहां रहकर पढ़ाई की थी. यह हॉल उनकी लंबी यात्राओं और भारत में बौद्ध धर्म को समझने में उनके अमूल्य योगदान को श्रद्धांजलि देता है. जो कि बताता है कि नालंदा ने कैसे दूर-दराज के देशों के विद्वानों को आकर्षित किया था.
यह पर्वत देखने में किसी गिद्ध के सिर जैसा लगता है, इसलिए इसे गिद्ध शिखर या गृधकूट पर्वत कहा जाता है. बौद्ध धर्म के ग्रंथों में इसका महत्व बहुत ज़्यादा है. माना जाता है कि इसी शिखर पर बैठकर भगवान बुद्ध ने अपना प्रसिद्ध कमल उपदेश दिया था. इतना ही नहीं बताया जाता है कि यह बुद्ध का ध्यान करने का पसंदीदा स्थान भी था. यही वजह है कि आज भी, यहां आने वाले पर्यटक इसकी प्राकृतिक सुंदरता और गहन आध्यात्मिक शांति को महसूस करते हैं. इसके अलावा इस स्थल से मिली 600 ईसा पूर्व की बुद्ध प्रतिमा अब नालंदा के संग्रहालय में सुरक्षित है.
जल मंदिर का शाब्दिक अर्थ है ‘पानी का मंदिर’. यह जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, यही वह स्थान है जहां जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर का अंतिम संस्कार किया गया था. इस मंदिर की खासियत यह है कि यह एक कमल सरोवर (कमलों से भरी झील) के बीचों-बीच बना हुआ है. इसके केंद्र में भगवान महावीर की प्राचीन "चरण पादुका" स्थापित है. माना जाता है कि भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदीवर्धन ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. यह स्थान अपने सौंदर्य और आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध है.