भारत में 18 साल और इससे ऊपर के लोगों के लिए वैक्सीनेशन शुरू किया जा चुका है. हालांकि अभी भी जगह जगह पर वैक्सीन की किल्लत हो रही है और लोगों को स्लॉट नहीं मिल पा रहा है.
साउथ कोरियन टेक कंपनी सैमसंग ने भारत को कोविड के खिलाफ लड़ाई में मदद का ऐलान किया है. इस मदद के तहत कंपनी ने टोटल 37 करोड़ डोनेट करने का ऐलान किया है. इसी के तहत कंपनी भारत को 10 लाख लो डेड स्पेस सिरिंज देने का भी ऐलान किया है.
लो डेड स्पेस सिरिंज यानी (LDS) से वैक्सीन को बेहतर तरीके से युटिलाइज किया जा सकता है. सैमसंग ने दावा किया है कि LDS सिरिंज से वैस्कीनेशन में मौजूदा सिरिंज के मुकाबले 20% ज्यादा इफिशिएंसी मिलेगी. कंपनी के मिसाल के तौर पर कहा है कि मौजूदा सिरिंज से अगर 10 लाख डोज दिए जाते हैं तो ऐसे में अगर LDS का यूज किया जाए तो उसी वैक्सीन अमाउंट में 12 लाख डोज दिए जा सकते हैं.
गौरतलब है कि सैमसंग साउथ कोरियन कंपनी है और साउथ कोरिया में कोरोना वैक्सीन को तेजी से और इफिशिएंसी के साथ यूज करने के लिए लो डेड स्पेस सिरिंज का इस्तेमाल किया गया है.
रिपोर्ट्स और एक्सपर्ट्स बताते हैं कि साउथ कोरिया में तेजी से वैक्सीनेशन की वजह लो डेड स्पेस सिरिंज भी है. क्योंकि हाल ही में वहां लो डेड स्पेस सिरिंज का प्रोडक्शन तेजी से बढ़ा है और इस वजह से वैक्सीनेशन ड्राइव में भी तेजी देखी गई है.
भारत जैसे मुल्क, जहां वैक्सीन की किल्लत हो रही है और स्टॉक लिमिटेड है, ये टेक्नोलॉजी काफी आम आ सकती है. सैमसंग ने कहा है कि कंपनी ने निर्माताओं को इस तरह की सिरिंज का प्रोडक्शन करने में मदद भी की है. इस तरह की सिरिंज यानी LDS काम कैसे करते है ये बताते हैं.
दरअसल इसे समझना काफी आसान है. मोटे तौर पर आप ये समझ सकते हैं कि मौजूदा सिरिंज जो आम तौर पर आप देखते हैं. इसे हाई डेड स्पेस सिरिंज भी कहा जा सकता है. इसमें इंटेक किया गया पूरा फ्लुइड यानी वैक्सीन बाहर नहीं आ पाता है. इस वजह से सिरिंज में वैक्सीन की थोड़ी मात्रा रह जाती है.
लो डेड स्पेस सिरिंज की बात करें तो इसे ऐसे डिजाइन किया जाता है कि इसका पूरा फ्लुइड इंजेक्ट हो सके. इस केस में वैक्सीन का एक कतरा यानी ड्रॉप भी सिरिंज में नहीं बचता है और इस तरह लाखों करोड़ों सिरिंज के जरिए वैक्सीन को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है.