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'कई लोग ओहदा नहीं, सिर्फ औरत देखते हैं', महिलाओं से भेदभाव पर साहित्य आजतक में बोलीं स्मृति ईरानी

साहित्य आजतक 2025 के तीसरे दिन पूर्व केंद्रीय मंत्री और अभिनेत्री स्मृति ईरानी ने मंच से महिलाओं के संघर्ष, राजनीतिक यात्रा और न्यायिक प्रक्रिया में आने वाली चुनौतियों पर बेहद स्पष्ट और निर्भीक बातचीत की. उन्होंने बताया कि ओहदा मिलने से संघर्ष खत्म नहीं होता, बल्कि उसका रूप बदल जाता है. कोर्ट में 14 साल से चल रहे केस का उदाहरण देते हुए ईरानी ने कहा कि असली पहचान जिगर और साहस की होती है, न कि पद की.

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साहित्य आजतक में स्मृति ईरानी ने की शिरकत (Photo: Chandradeep Kumar)
साहित्य आजतक में स्मृति ईरानी ने की शिरकत (Photo: Chandradeep Kumar)

देश के दिल यानी की दिल्ली में चल रहे साहित्य के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2025' का तीसरा दिन है. मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित इस कार्यक्रम में टीवी की दुनिया से लेकर राजनीति तक में अपनी धाख जमा लेने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री, अभिनेत्री और लेखिका स्मृति ईरानी ने शिरकत की. 'क्योंकि स्मृति लेखक भी हैं' सत्र में स्मृति ईरानी ने टीवी सीरियल की दुनिया से लेकर अपनी राजनीतिक यात्रा और महिलाओं की सबसे बड़ी चुनौती पर विस्तार से बातचीत की है.

महिलाओं को दोहरी मेहनत करनी पड़ती है: स्मृति ईरानी

स्मृति ईरानी से जब कार्यक्रम के दौरान पूछा गया कि क्या महिलाओं को साबित करने के लिए दोहरी मेहनत करनी पड़ती है. इसके जवाब में उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि किसी महिला को इससे दिक्कत है क्योंकि या तो आप अपनी हालत पर रोते रहें या उन समस्याओं से लड़ने के लिए हमेशा तैयार रहें. देश की जवान लड़की या महिलाएं ये समझ लें कि उन्हें यह गलतफहमी दिलवाई जाती है कि अगर आप एक बार ओहदा पा लें तो आपके जीवन का संघर्ष खत्म हो जाता है.'

'कई लोग ओहदा नहीं, सिर्फ औरत देखते हैं' : स्मृति ईरानी

स्मृति ईरानी ने आगे कहा, 'ओहदा मिलने के बाद संघर्ष के मायने बदल जाते हैं, तौहीन का अंदाज बदल जाता है क्योंकि कई लोग ओहदा नहीं देखते हैं सिर्फ औरत को देखते हैं, ये हमें कभी नहीं भूलना चाहिए.'

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उन्होंने कहा, 'जब मैं केंद्रीय मंत्री थी तब भी मैं पटियाला हाउस कोर्ट में खड़ी होती थी उन लोगों की शिनाख्त करने के लिए जिन्होंने शारीरिक रूप से मेरी मर्यादा का उल्लंघन किया था. उस जज के सामने मैं सिर्फ एक औरत थी और वो केस 2011 से चल रहा है, आज 2025 है. 14 साल से जब-जब कोर्ट तलब करता है मैं जाती हूं.'

ओहदे की औकात नहीं, जिगरे की होती है: स्मृति ईरानी

पूर्व केंद्रीय मंत्री ईरानी ने कहा, 'ऐसा नहीं है कि उसके लिए न्याय का इंतजार खत्म हो जाता है जो सांसद की परिधि में आ जाता है. मुझे सबसे ज्यादा तपिश उस दिन महसूस हुई जब कोर्ट में खड़े होकर क्रॉस क्वेश्चनिंग जब होती है, जिस पुरुष ने आपकी मर्यादा लांघी उसके वकील आपसे सरेआम कोर्ट में जब तफ्तीश करते हैं, वाद-विवाद करते हैं तो उनको फर्क नहीं पड़ता की आप केंद्रीय मंत्री हैं या फिर स्मृति ईरानी हैं.

उन्होंने कहा, वो आपके चरित्र को तार-तार करते हैं ताकि वो अपना केस प्रूफ कर सकें. ऐसे लम्हें बताते हैं कि ओहदे की औकात नहीं होती अंदर जो जिगरा होता है उसकी औकात होती है लेकिन हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत ये है कि हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है.

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