Sahitya Aaj Tak 2024: देश की राजधानी दिल्ली में सुरों और अल्फाजों का महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' का आज दूसरा दिन है. इस तीन दिवसीय कार्यक्रम में देश के जाने-माने लेखक, साहित्यकार व कलाकार शामिल हो रहे हैं. साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2024' के मंच पर 'तू जो मेरे सुर में सुर मिला ले' सत्र में संगीत प्रेमियों के दिलों को छू लिया.
इस खास सत्र में मशहूर गायिका हेमलता और उनकी जीवनी के लेखक अरविंद यादव ने शिरकत की. हेमलता ने अपने जीवन के यादगार पलों को साझा करते हुए संगीत की गहराइयों पर चर्चा की, जबकि अरविंद यादव ने हेमलता के जीवन पर पुस्तक लिखी है. जिसके जरिए उनके जीवन के अनसुने पहलुओं को उजागर किया. सुरों और शब्दों के इस संगम ने दर्शकों को भावुक कर दिया और संगीत के प्रति उनकी प्रेम भावना को और गहरा किया.
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए गायिका हेमलता ने कहा कि मेरे करियर में दिल्ली की जनता का बड़ा योगदान है. मैं छोटी थी तो लालकिले पर कार्यक्रम था. उसमें बॉलीवुड के बड़े दिग्गज थे, वहां मौजूद जनता मुझे जो आशीर्वाद दिया, वहां से आज यहां तक का सफर तय किया है. इस दौरान 'अंखियों के झरोखों से तूने देखा जो सांवरे...' गीत सुनाया. इसके बाद उनका बेहद फेमस गीत 'कौन दिशा में लेके चला रे बटुहिया...' सुनाया.
![]()
हेमलता ने कहा कि मेरे आगे सिर्फ दीवार ही नहीं, फौलाद की दीवार थी. उसे कौन भेद सकता था. जब तक बिके न थे, हमें कोई पूछता न था, तुमने खरीदकर मुझे अनमोल कर दिया. हेमलता ने लेखक अरविंद के बारे में कहा कि ये लिखना चाहते थे तो काफी कुछ समझने के बाद मैंने कहा कि लिखो. ये मेरे पास आए और कैमरा ऑन किया. एक डेढ़, दो घंटे तक सवाल करते रहे, मैं जवाब देती रही. फिर ये वापस हैदराबाद चले गए. ये सिलसिला डेढ़ दो साल तक चलता रहा. गायिका हेमलता 38 भाषाओं में 5 हजार से ज्यादा गाने गा चुकी हैं.
यह भी पढ़ें: लेखन की दुनिया में कैसे आगे बढ़ सकती है युवा पीढ़ी? साहित्य आजतक के मंच पर लेखकों ने दिए टिप्स
हेमलता ने कहा कि मैंने पहला गाना 13 साल की उम्र में गाया था. जो मुझे मिला, वो सब भगवान की देन है. संगीत खुद एक भाषा है. कई बार आलाप से ही पता चल जाता है कि सैड है, रोमांटिक, हांटेड है. मेरी आदर्श लता मंगेशकर रही हैं. मैंने उनके साथ जब पहला गाना गाया था तो मुझे 103 डिग्री बुखार आ गया था डर की वजह से. वो गाना था- रातों में हो रातों में.
उन्होंने कहा कि मैं तो सोचती थी कि एक गाना मुझे फिल्मों में मिला जाएगा, तो मेरे नाम के आगे भी प्लेबैक सिंगर लग जाएगा. घर की परिस्थितियां नाजुक थीं. आज 71 साल की हो चुकी हूं. मैं जो भी हूं, जो कुछ भी हूं वो सिर्फ यहां की जनता की वजह से हूं. लता माई के सामने जब भी गई, मेरी उनके पांवों से ऊपर देखने की हिम्मत नहीं हुई, चेहरा देखने की हिम्मत नहीं हुई.
![]()
वहीं लेखक अरविंद ने कहा कि नदिया के पार फिल्म का गीत कौन दिशा से लेके ... गाना उस वक्त गाया था, जब ये प्रेग्नेंट थीं और 9 महीने पूरे हो रहे थे. उस समय सिंगल टेक में उन्होंने गीत को गाया. गाने के प्रति इनका ये संघर्ष और समर्पण बताता है कि किस हद तक इनकी शख्सियत महानता की श्रेणी में आती है. हेमलता के साथ उनके इकलौते बेटे आदित्य भी कार्यक्रम में पहुंचे थे. इस दौरान हेमलता ने उड़िया भाषा में भी गीत गुनगुनाया. इसके अलावा मैं आई हूं सपनों के गांव में, प्यार की छांव में बिठाए रखना सजना... भी गाकर सुनाया, जिसे मौजूद आडियंस ने काफी पसंद किया. इस दौरान हेमलता के जीवन पर आधारित किताब का अनावरण भी किया गया.