ग्रामीण इलाकों में रोजगार देने के लिए देश की सबसे बड़ी योजना मनरेगा 100 दिन का काम देने की गारंटी की योजना है. मगर राजस्थान में गरीबों को खाना खिलाने वाली यह योजना सियासत की भेंट चढ़ गई है. जयपुर ज़िले के अभागे तहसील में सैकड़ों महिलाएं अपना जॉब कार्ड लिए मनरेगा के काम के लिए भटक रही हैं मगर काम नहीं मिल रहा है.
राजस्थान में एक परिवार को मनरेगा के काम के बदले एक दिन में 26 रुपये मिलते हैं यानी परिवार में चार या पांच सदस्य हों तो एक दिन की कमाई पांच या छह रुपया की है. जिसके ऊपर काम देने की जिम्मेदारी है उसे पता ही नहीं है कि क्या हो रहा है.
जयपुर जिले के फागी पंचायत के बाहर अपने हाथों में मनरेगा का जॉब कार्ड लिए महिलाएं परिवार का पेट पालने के लिए डेढ़ सौ रुपये की दिहाड़ी मांगने के लिए बैठी हैं. कोरोना के बाद एक बार काम शुरू हुआ. मगर दोबारा काम ठीक से कभी शुरू नहीं हो पाया. तेरह दिन का काम आया है और इस बार जनवरी के पखवाड़े में पांच दिन का काम आया है. उसमें से भी 4 हज़ार परिवारों में से ढाई हज़ार लोगों को पांच दिन का काम दिया गया है. एक दिन के काम के बदले डेढ़ सौ रुपये से भी कम मिलते हैं. ऐसे में यह लोग काम मांगने के लिए पंचायत भवन के बाहर बैठे हुए हैं.
महिलाओं के हाथ में जो जॉब कार्ड है, उनको अगर आप देखें तो एक भी एंट्री नहीं है. यानी मनरेगा के तहत इनको रजिस्टर्ड कर लिया गया और इनके जॉब कार्ड बना दिया गया. मगर रोज़गार नहीं दिया गया.
फागी के सरपंच ओम शर्मा सचिन पायलट के कट्टर समर्थक हैं. इनका आरोप है कि फागी पंचायत समिति की हर पंचायत में काम मिल रहा है. मगर फागी पंचायत में पायलट समर्थक होने की वजह से काम नहीं दिया जा रहा है.
फागी की रहने वाली अनूप बैरवा हैं. इनके दो बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और पति मज़दूरी करते हैं. कोरोना काल में मजदूरी मिलता नहीं है इसलिए मनरेगा के ऊपर भरोसा था, लेकिन पूरे साल में तेरह दिन काम मिले हैं. इसी हिसाब से साल की कमाई दो हज़ार भी नहीं बैठती है. जबकि बच्चों की पढ़ाई के लिए लोन ले रखा है. उसकी किस्त 15 सौ रुपये जाती है. परिवार में सब का जॉब कार्ड बन रखा है पर रोजगार नहीं मिल रहा है.
फागी के मंगला और सुरता का भी यही हाल है. मंगला और सुरता के पति का देहांत हो गया है. मंगला का एक बच्चा है जो मंद बुद्धि है. घर में खाना खाने के लिए मनरेगा के अलावा कुछ और दिखता नहीं है इसलिए जॉब कार्ड लिए अधिकारियों का चक्कर लगा रही हैं.
फागी की महिलाओं का दर्द समझने के लिए हम फागी पंचायत समिति के विकास अधिकारी नारायण सिंह के पास पहुंचे. उन्होंने कहा कि फागी में जितने भी मनरेगा में रजिस्टर्ड मज़दूर हैं सभी को सौ दिन का रोज़गार मिल रहा है. लेकिन जब सरपंच और अब मनरेगा इन्चार्ज चारों कर्मचारियों से सामना कराया तो साहब कहने लगे कि उन्हें कुछ पता ही नहीं था. जांच कराएंगे.
राजस्थान में मनरेगा में कुल 1,10,37,000 मज़दूर रजिस्टर्ड हैं. इनमें 68,37,000 परिवार का जॉब कार्ड बना है लेकिन 2020-21 में 100 दिन केवल 2 लाख 53 हजार लोगों को काम मिल रहा है. जबकि 2019-20 में 8 लाख 49 हज़ार लोगों को 100 दिन का रोज़गार मिला था. एक साल में एक परिवार को औसत रूप से 48 दिन का रोज़गार मिलता है और 166 रुपये मज़दूरी मिलती है. यानी मनरेगा से एक परिवार साल में 9768 रुपया कमाता है. यानी एक परिवार एक साल में एक दिन में 26 रुपया कमाता है. इसी 26 रुपये के लिए ये महिलाएं दर दर भटक रही हैं.
मनरेगा के बारे में कहा जाता है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जब राजस्थान में पहली बार सीएम बने तो राजस्थान में अकाल राहत काम शुरू किया था. जिसे देखकर सोनिया गांधी ने देश भर में नरेगा के नाम से इस कार्यक्रम को शुरू किया था.