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Exit Poll: त्रिपुरा में बीजेपी वापसी के तीन बड़े कारण क्या हैं?

त्रिपुरा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी सरकार बना सकती है. आजतक के एग्जिट पोल ने पार्टी को स्पष्ट बहुमत दी है. अब इस बढ़त के कई कारण माने जाते हैं, तीन तो प्रमुख कारण सामने आए हैं. इसमें विकास से लेकर सीएम तक शामिल हैं.

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त्रिपुरा चुनाव
त्रिपुरा चुनाव

पूर्वोत्तर का राज्य त्रिपुरा, जहां पर कुछ साल पहले तक बीजेपी सरकार तो छोड़िए, विपक्षी पार्टी का दर्जा पाने की स्थिति में नहीं रहती थी. 2018 के विधानसभा चुनाव में सभी को चौंकाते हुए पार्टी ने लेफ्ट के 25 साल के शासन को ध्वस्त कर दिया और प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई. उस ऐतिहासिक जीत को पांच साल हो चुके हैं और फिर विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. नतीजे 2 मार्च को आने वाले हैं, लेकिन एग्जिट पोल ने हवा किस ओर है, इसका अंदाजा दे दिया है.

एग्जिट पोल के नतीजे क्या बता रहे हैं?

Axis My India और आजतक के एग्जिट पोल में बीजेपी की त्रिपुरा में प्रचंड वापसी होने वाली है. एक बार फिर पूर्ण बहुमत की सरकार बनती दिख रही है. एग्जिट पोल के मुताबिक बीजेपी के खाते में 36 से 45 सीटें जा सकती हैं. लेफ्ट-कांग्रेस का गठबंधन सरकार बनाने से चूक रहा है. उसके खाते में 9 से 11 सीटें आ सकती हैं. टीएमपी, लेफ्ट से भी बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है. एग्जिट पोल के मुताबिक इस चुनाव में टीएमपी को 9 से 16 सीटें मिल सकती हैं. 

अब एग्जिट पोल बताता है कि बीजेपी को त्रिपुरा में 45 फीसदी के करीब वोटशेयर मिल सकता है, जो हर लिहाज से बेहतरीन है. लेकिन पार्टी का पिछला परफॉर्मेंस इससे बेहतर रहा था, उसका वोटशेयर 51 प्रतिशत दर्ज किया गया था. लेकिन इस 6 फीसदी की गिरावट के बावजूद भी बीजेपी ने विपक्षी दलों पर अच्छी लीड बना रखी है. लेफ्ट-कांग्रेस पर 13 प्रतिशत की निर्णायक बढ़त है जिस वजह से पार्टी फिर सत्ता में लौटती दिख रही है. वैसे बीजेपी अगर वापसी कर रही है तो इस चुनाव में Pradyot Bikram Manikya Debbarma की टीएमपी भी अच्छी उपस्थिति दर्ज करवा रही है, आदिवासी इलाकों में तो पार्टी ने बीजेपी को भी पछाड़ा है. इस चुनाव में टीएमपी को 20 फीसदी वोट मिल सकते हैं. 

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2014 के बाद से बदली चुनावी फिजा

2014 के बाद से पूर्वोत्तर में जिस तरह से बीजेपी का विस्तार हुआ है, जिस तरह से उसका वोटर बेस बढ़ता गया है, ये मायने रखता है. पहले असम में सरकार बनाई, फिर मणिपुर में सत्ता में आए और अब त्रिपुरा, नगालैंड में भी पार्टी वापसी करती दिख रही है. इस समय त्रिपुरा चुनाव में बीजेपी की वापसी के तीन बड़े कारण दिखाई देते हैं. इसमें विकास वाली योजनाएं, मुख्यमंत्री की लोकप्रियता और डेमोग्राफी शामिल है. 

पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने अपना खुद का एक लाभकारी वोटबैंक तैयार किया है. ये वो वोटबैंक है जिसे बीजेपी सरकार के समय कई फायदे मिले हैं, उसकी जिंदगी में फर्क आया है. एग्जिट पोल के दौरान भी लोगों से बात की गई. पता चला है कि 44 प्रतिशत ऐसे लोग हैं जो विकास के नाम पर बीजेपी को वोट दे रहे हैं. अकेले बीजेपी समर्थकों के भीतर तो ये आंकड़ा 49 फीसदी तक जा रहा है. वहीं विकास के नाम पर लेफ्ट-कांग्रेस को सिर्फ 32 प्रतिशत लोग पसंद कर रहे हैं. यहां भी बीजेपी को कम से कम 17 फीसदी की एक बड़ी एज है. 10 प्रतिशत ऐसे लोग भी सामने आए हैं जिन्होंने किसी पार्टी को इसलिए वोट दिया है क्योंकि उन्हें उनकी योजनाओं का जमीन पर फायदा मिला है.

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बीजेपी का लाभार्थी वोटबैंक

अब बीजेपी को अपनी योजनाओं का तो फायदा मिलता दिख ही रहा है, इसके अलावा समय रहते जो बिल्पल देव की जगह माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाया गया, वो सियासी दांव भी जमीन पर पार्टी के पक्ष में माहौल बना रहा है. एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं कि मुख्यमंत्री माणिक साहा की लोकप्रियता लोगों के बीच में अच्छी है. 27 फीसदी ऐसे लोग हैं जो एक बार फिर माणिक साहा को बतौर मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं. सिर्फ 14 फीसदी ऐसे हैं जिनके लिए लेफ्ट-कांग्रेस के जितेंद्र चौधरी बतौर सीएम अच्छे हैं. वैसे मुख्यमंत्री के साथ-साथ बीजेपी को हर इलाके से बंपर वोट भी मिलता दिख रहा है.

डेमोग्राफी के लिहाज से पार्टी को हर वर्ग का वोट मिल सकता है. पार्टी को एसटी का 30 प्रतिशत, एससी का 57 प्रतिशत, ओबीसी का 60 फीसदी और सामान्य का 61 फीसदी वोट मिल रहा है. लेफ्ट-कांग्रेस की बात करें तो उसे एसटी का 18 फीसदी, एससी का 36 फीसदी, ओबीसी का 35 प्रतिशत और सामान्य वर्ग का 34 फीसदी वोट मिल सकता है. टीएमपी को एसटी का 51 फीसदी, एससी का 3 फीसदी, ओबीसी का 2 प्रतिशत और सामान्य का 2 प्रतिशट वोट मिल सकता है.

महिला वोटरों की पहली पसंद कौन?

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वैसे बीजेपी को इस बार महिला वोटर भी बढ़ चढ़कर वोट करती दिख रही हैं. एग्जिट पोल के मुताबिक त्रिपुरा की 49 फीसदी महिलाएं बीजेपी को पहली पसंद मान रही हैं. वहीं पुरुषों के 42 प्रतिशत वोट पार्टी को मिल रहे हैं. युवा वोटरों की पहली पसंद भी बीजेपी बनती दिख रही है. एग्जिट पोल के नतीजों से पता चलता है कि 18 से 35 साल की उम्र के 44 प्रतिशत लोग बीजेपी-IPFT को वोट कर सकते हैं. वहीं इसी वर्ग का लेफ्ट-कांग्रेस को 32 प्रतिशत वोट मिल सकता है.

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