बिना किसी पहचान पत्र के 2000 के नोट को बदलने के रिजर्व बैंक के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट सोमवार को फैसला सुनाएगा. ये फैसला बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनाया जाएगा. दरअसल, भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा चलन से बाहर किए गए 2000 रुपये के नोटों को बदलने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. इसके लिए आपसे किसी तरह का पहचान पत्र नहीं मांगा जा रहा है.
दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की अदालत में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने मांग की कि आरबीआई और एसबीआई को 2000 के नोट बदलने के लिए ID प्रूफ को अनिवार्य किए जाने का कोर्ट आदेश दे. कोर्ट ने उपाध्याय की दलीलों के बाद रिजर्व बैंक और सरकार की बातें सुनकर फैसला सुरक्षित रख लिया था.
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका पर दलीलें देते हुए कहा कि मैं इस मामले से जुड़े पूरे नोटिफिकेशन को चैलेंज नहीं कर रहा हूं. बल्कि नोटिफिकेशन के एक हिस्से को चुनौती दे रहा हूं.
RBI ने कहा था कि 2018 में 6 लाख करोड़ से ज्यादा 2000 के नोट सर्कुलेशन में थे, जो अभी 3 लाख करोड़ के आसपास हैं. वहीं, आरबीआई कहता है कि 2000 का नोट लीगल टेंडर रहेगा. पहली बार ऐसा हो रहा कि बिना किसी दस्तावेज के नोट एक्सचेंज करने की बात कही गई है. अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि आरबीआई एडमिट कर रहा है कि करीब सवा तीन लाख करोड़ रुपए की 2 हजार वाली मुद्रा डंप हो चुकी है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि हर घर में हर व्यक्ति के पास आधार नंबर वाला कार्ड है. फिर बिना आईडी के नोट एक्सचेंज क्यों किए जा रहे हैं? अश्विनी उपाध्याय ने दलील दी कि बिना किसी स्लिप यानी पर्ची के करेंसी बदली गई तो इससे एक बड़ी दिक्कत होती है. उन्होंने दलील दी कि इस तरह तो नक्सली और आतंक प्रभावित पूर्वोत्तर भारत के इलाके में कोई भी पैसा बदल लेगा. इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि अगर डॉक्यूमेंट्स नहीं देखे गए तो अतीक अहमद के गुर्गे भी बैंक जाकर पैसे बदल लेंगे.
नोटिफिकेशन ये नहीं कह रहा कि रोजाना 20000 रुपए मूल्य के दो हजार वाले नोट बदले जाएंगे. बल्कि एक बार में 2000 रुपये के 10 नोट बदल सकते हैं. आरबीआई के वकील ने कहा कि मौद्रिक नीति से जुड़ा मामला है और कोर्ट में इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है. आरबीआई के वकील ने कई पुराने फैसलों का उदाहरण दिया. RBI ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिका को जुर्माने के साथ खारिज किया जाए. ये आर्थिक नीतिगत मामला है. अदालत के पहले के फैसले हैं कि आर्थिक नीतिगत मामलों में अदालत दखल नहीं देगी.