नासिक की सेशन्स कोर्ट ने महाराष्ट्र के मंत्री माणिकराव कोकाटे की सजा को बरकरार रखते हुए कहा है कि उन्होंने राज्य सरकार को धोखा दिया और बेईमानी से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग यानी ईडब्ल्यूएस योजना के तहत फ्लैट हासिल किए. कोर्ट ने कहा कि यह योजना उन लोगों के लिए थी जिनकी सालाना आय 30,000 रुपये से कम थी, जबकि कोकाटे की आय इससे कहीं अधिक थी.
एडिशनल सेशन्स जज पीएम बदर ने अपने फैसले में कोकाटे को धोखाधड़ी, जालसाजी और जाली दस्तावेजों को असली के रूप में इस्तेमाल करने का दोषी ठहराया. हालांकि कोर्ट ने उन्हें दो आरोपों से बरी कर दिया. साथ ही ट्रायल कोर्ट की ओर से राज्य सरकार को फ्लैट आवंटन रद्द करने और कब्जा वापस लेने के निर्देश को अव्यवहारिक बताते हुए रद्द कर दिया.
क्या है पूरा मामला?
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 1989 और 1992 में राज्य सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर और जरूरतमंद वर्गों के लिए आवास योजना शुरू की थी, जिसमें केवल वही लोग पात्र थे जिनकी सालाना आय 30,000 रुपये से अधिक न हो. आरोप है कि माणिकराव कोकाटे और उनके भाई ने झूठे आय प्रमाण पत्र, फर्जी राशन कार्ड और अन्य जाली दस्तावेज जमा कर इस योजना के तहत फ्लैट के लिए आवेदन किया और अपनी आय 30,000 रुपये से कम दिखाई.
चार फ्लैटों को जोड़कर एक बना दिया
इस तरह उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को धोखा देकर नासिक के कॉलेज रोड स्थित वीस मला इलाके में बनी बिल्डिंग में ईडब्ल्यूएस कैटेगरी के फ्लैट हासिल किए. इसके अलावा आरोप है कि माणिकराव ने अपने फ्लैट के साथ-साथ बेनामी लेनदेन के जरिए अन्य लोगों के नाम पर उसी योजना के तहत दो और फ्लैट भी खरीदे. जिन लोगों के नाम पर फ्लैट लिए गए, वे न तो वहां रहते थे और न ही जरूरतमंद थे. यह भी आरोप है कि उन्होंने चार फ्लैटों में बदलाव कर उन्हें एक में मिला दिया, जो नियमों और शर्तों का उल्लंघन है.
कोकाटे ने क्या दलील दी?
इन मामलों में नासिक के एडिशनल कलेक्टर और सक्षम प्राधिकारी ने सरकारवाड़ा पुलिस स्टेशन में धोखाधड़ी और जालसाजी के तहत केस दर्ज कराया था. कोकाटे की ओर से दलील दी गई कि अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि 1989 में उनकी सालाना आय 30,000 रुपये से अधिक थी या उन्होंने झूठी आय घोषित की थी.