देश भर में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच दिल्ली की हालत नाजुक बनी हुई है. ऐसे में जहां एक तरफ गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में ऑक्सीजन की किल्लत और स्वास्थ्य व्यवस्था पर सुनवाई हुई वहीं दिल्ली HC में भी Covid के हालात ऑक्सीजन, बेड की कमी पर सुनवाई शुरू हुई. इस दौरान एनआईसी के अधिकारी प्रोफेसर संजय धीर भी कोर्ट में मौजूद रहे. कोर्ट ने सबसे पहले पोर्टल पर रेमडेसिविर के मामले पर सुनवाई शुरू की. बता दें कि बीते कल सुनवाई के दौरान कोर्ट को जानकारी दी गयी थी कि कोरोना पोर्टल पर केवल रेमडेसिविर की जानकारी है. और कोई दूसरी मेडिसिन की जानकारी नहीं है. जिस पर नाराज कोर्ट ने एनआईसी के अधिकारी को तलब किया था.
एनआईसी के अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि अस्पतालों को नोटिस दिया गया है. पोर्टल ऑपरेशनल है और कौन सी दवाई उसमें जोड़ सकते हैं, इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के जवाब का इंतजार कर रहे हैं. वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को बड़ा आदेश दिया है. जिसमें दिल्ली के लोग जो कोरोना संक्रमित हैं उन्हें इलाज के लिए मेडिकल सुविधाएं दिल्ली सरकार मुहैया कराए. दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि संविधान का आर्टिकल 21 लोगों को जीने का अधिकार देता है, जिससे हर व्यक्ति आजादी से जी सके.
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हाई कोर्ट ने कहा कि लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए उन्हें शपथ दिलाई गई है. इसलिए हम यहां ये आदेश दे रहे हैं, ताकि इस शख्स की जान बच पाए. लेकिन उसी समय हम इस तथ्य को नहीं छोड़ सकते हैं कि शहर में हजारों लोग इसी बीमारी से पीड़ित हैं. यदि याचिकाकर्ता की तुलना में बदतर ना हो तो उनकी हालत भी उतनी ही खराब हो सकती है.
कोर्ट ने कहा कि उनका (याचिकाकर्ता) भी वेंटिलेटर सुविधा के साथ आईसीयू बेड के लिए बराबर का दावा बनता है. केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता ने इस अदालत का दरवाजा खटखटाया है, अदालत इस तरह का आदेश जारी तक उसे प्राथमिकता के आधार पर चिकित्सा सुविधा दिलाने के लिए आदेश जारी नहीं भी कर सकती है. दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट में गुरुवार को एक 52 साल के व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई हुई. ये शख्स कोरोना संक्रमित है और हालात गंभीर है.
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इसके अलावा हाई कोर्ट के सलाहकार ने कोर्ट को बताया कि हमें दवाईयों का स्टॉक रखना पड़ेगा और वो भी अस्पताल के पास. जिससे अगर डॉक्टर को जरूरत पड़े तो 15-20 मिनट में वहां दवा पहुंचाई जा सके. जिसके चलते हमें जल्द से जल्द दवाई पहुंचाने की जरूरत है. कहीं न कहीं अभी भी हमारे सिस्टम में गड़बड़ी है. रेमडेसिविर के स्टॉक के बारे में हमें मालूम ही नहीं है और इन्ही वजहों से ब्लैक मार्केटिंग हो रही है. सुनवाई के दौरान एक वकील ने कहा कि रेमडेसिविर की अभी तक कोई जानकारी नहीं है. क्या पोर्टल में कोई बदलाव करेंगे?
वहीं हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि हम चाहते हैं कि सप्लाई चैन पूरी तरह से पब्लिक डोमेन में हो. हमेशा ऐसा हो रहा है कि अस्पताल के पास स्टॉक खत्म हो जाता है और हम फिर चर्चा कर रहे होते हैं. और ये मरीज के लिए काफी दुखदायी और नुकसानदायक होता है. कई बार तो हम बहुत देर कर देते हैं.
कोर्ट के सलाहकार ने कोर्ट को बताया कि 4-5 दिन या फिर 7 दिन में सिस्टम पूरी तरह दुरुस्त हो जाएगा. हाई कोर्ट का निर्देश है कि सभी अस्पतालों को रेमडेसिविर का स्टॉक देना चाहिए. साथ ही आईआईटी के प्रोफेसर संजय धीर ने कोर्ट को बताया कि रेमडेसिविर के लिए डॉक्टर पहले ही बता सकते हैं. अस्पतालों को पोर्टल पर जानकारी देने में समय क्यों लग रहा है? मालूम नहीं चल पा रहा है. केवल 4-5 कॉलम ही भरने है.
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एक वकील ने कोर्ट से कहा कि डॉक्टर समय नष्ट नहीं करना चाहते. वो सिंपल चाहते हैं कि मरीज को अगर रेमडेससिविर की जरूरत है. तो उन्हें 5 मिनट में मिल जाये. हाई कोर्ट ने कहा कि अस्पताल को स्टॉक देना चाहिए रेमडेसिविर के लिए और उन्हें अकॉउंटेबल बनाना होगा. हाई कोर्ट ने कहा क्या कोई और लोग या अस्पताल हैं जो डेटा नहीं दे रहे हैं. उन्हें बताना होगा.इस पर कोर्ट के सलाहकार ने कहा कि ये हम चेक करके आपको जानकारी देंगे.