
सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरों के साथ दावा किया जा रहा है कि मध्य प्रदेश के रीवा में एक पुजारी को मंदिर में पुलिस ने बेरहमी से पीटा और पानी से भरे बर्तन को लात मार कर फेंक दिया.
दावे में ये कहने की कोशिश भी की गई है कि मंदिर में ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि रीवा के एसपी मुस्लिम हैं जिनका नाम आबिद खान है.
वायरल पोस्ट में दो तस्वीरें हैं जिनमें एक पुलिसकर्मी, किसी हिंदू धार्मिक स्थल पर भगवा कपड़े पहने एक आदमी को डंडे से पीटता दिख रहा है. कई लोग इन तस्वीरों पर प्रतिक्रिया देते हुुए एमपी के मुख्यमंत्री मोहन यादव को टैग कर रहे हैं और उनसे इस मामले का संज्ञान लेने की अपील कर रहे हैं.

पोस्ट के कैप्शन में लिखा है, “मध्य प्रदेश में रीवा के मन्दिर में अकेले पूजा कर रहे पुजारी को बेरहमी से पीटा. जल से भरा बर्तन लात मार कर फेंक दिया गया, और पूजा क्षेत्र को बूंट पहन के तबियत से कुचला गया है. बताते चले रीवा पुलिस के SP आबिद खान हैं @DrMohanYadav51 संज्ञान लीजिए”.
वायरल पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.

आजतक फैक्ट चेक ने पाया कि रीवा की ये घटना अभी की नहीं बल्कि अप्रैल 2020 की है जब देश में लॉकडाउन चल रहा था. पुजारी को पीटने वाले इस पुलिसकर्मी को लाइन अटैच कर दिया गया था.
कैसे पता की सच्चाई?
इन तस्वीरों को रिवर्स सर्च करने पर हमें ये अप्रैल 2020 में छपी कई खबरों में मिलीं. दैनिक भास्कर की खबर में बताया गया है कि रीवा में एक पुजारी को लॉकडाउन का उल्लंघन करना महंगा पड़ गया था. खबर के मुताबिक, पुजारी लॉकडाउन के दौरान ढेकहा मोहल्ले में स्थित देवी मंदिर में भीड़ जमा करके वहां पूजा-पाठ कर रहा था.
इसकी सूचना मिलते ही पुलिस मंदिर पहुंच गई थी और वहां से लोगों को भगा दिया गया था. लेकिन इसी दौरान सिविल लाइन थाना प्रभारी राजकुमार मिश्रा ने पुजारी की पिटाई कर दी थी. उन्होंने पूजा का सामान भी बिखेर दिया था.
इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. तत्कालीन एमपी सीएम शिवराज सिंह चौहान ने इस मामले को गंभीरता से लिया था और बाद में थाना प्रभारी लाइन अटैच कर दिया गया था.
उस समय रीवा के एसपी आबिद खान ही थे. इस मामले पर आबिद खान के बारे में भी फेक न्यूज फैल गई थी कि उन्होंने ही पुजारी को पीटा था. लेकिन रीवा पुलिस ने इस दावे का खंडन किया था कि पुजारी को थाना प्रभारी राजकुमार मिश्रा ने पीटा था. वर्तमान में रीवा के पुलिस अधीक्षक विवेक सिंह हैं.
इस तरह ये बात साफ हो जाती है कि पांच साल से ज्यादा पुरानी घटना को हाल-फिलहाल का बताकर भ्रम फैलाया जा रहा है.