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कर्नाटक में किसकी सरकार? एग्जिट पोल ही नहीं, वोटिंग ट्रेंड से भी मिल रहे सत्ता परिवर्तन के संकेत

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इस बार 72.67 फीसदी वोटिंग हुई है जो कि पिछली बार से ज्यादा है. कर्नाटक के अब तक के चुनावी पैटर्न को देखें तो जब-जब वोट प्रतिशत में बढ़ोतरी हुई है तब-तब सत्ता परिवर्तन हुआ है. इस बार भी एग्जिट पोल के अनुमान कुछ ऐसे ही संकेत दे रहे हैं. देखना है कि क्या ये ट्रेंड बरकरार रहता है?

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कर्नाटक में 13 मई को चुनाव नतीजे आएंगे
कर्नाटक में 13 मई को चुनाव नतीजे आएंगे

कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों के लिए वोटिंग हो चुकी है. और अब 13 मई को आने वाले नतीजों का इंतजार है. लेकिन इस बार चुनाव में कर्नाटक की जनता ने रिकॉर्ड बना दिया है, जो पिछली बार से भी ज्यादा है. 

चुनाव आयोग से मिले आंकड़ों के मुताबिक, कर्नाटक में इस बार 72.67 फीसदी वोटिंग हुई है. अभी ये वोटिंग प्रतिशत और बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि इसमें पोस्टल बैलेट और होम वोटिंग का आंकड़ा शामिल नहीं है. वहीं, 2018 के चुनाव में 72.44 फीसदी और 2013 में 71.83 फीसदी वोट पड़े थे. इस लिहाज से देखें तो वोटिंग फीसदी में मामूली इजाफा हुआ है. 

कर्नाटक में सबसे ज्यादा 90.93 फीसदी वोटिंग मंड्या जिले की मेलुकोटे विधानसभा सीट पर हुई तो सबसे कम मतदान 47.43 फीसदी बेंगलुरु की सीवी रमन नगर सीट पर हुई. 

कर्नाटक वोटिंग ट्रेंड के संकेत

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि अधिक या फिर कम मतदान प्रतिशत के बावजूद सत्ता में वापस आने की संभावना कम रहती है. चुनाव में एक आम धारणा है कि ज्यादा मतदान होने का अर्थ सत्ता विरोधी लहर और कम वोटिंग के होने का मतलब राज्य में सत्ता समर्थक लहर नहीं है. इस लिहाज से इस बार वोटिंग फीसदी में बढ़ोत्तरी हुई है, जिसके सियासी मायने साफ तौर पर समझे जा सकते हैं. 

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कर्नाटक में अब तक कुल 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. आठ चुनावों में वोटिंग परसेंटेज में इजाफा हुआ, जिसमें सिर्फ एक बार 1962 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई है. वहीं, पांच चुनावों में वोट प्रतिशत कम रहा जिसमें बीजेपी एक बार सत्ता में लौटी है.

इतिहास में पहली बार इतनी वोटिंग

कर्नाटक के चुनावी इतिहास में ये अब तक की सबसे ज्यादा वोटिंग है. 2018 के चुनाव में 72.44 फीसदी और 2013 में 71.83 फीसदी वोट पड़े थे. 1999 के चुनाव के बाद ये पहली बार है जब इतनी ज्यादा वोटिंग हुई है. 1999 के चुनाव में राज्य में 67.65 फीसदी वोटिंग हुई थी. 2004 में 65.17% और 2008 में 65.17% वोट पड़े थे.

इस बार कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों पर 2,615 उम्मीदवार मैदान में हैं. चुनाव आयोग ने कुल 58,545 पोलिंग बूथ बनाए थे. ये पहली बार था जब राज्य के 95 हजार से ज्यादा वोटर्स को 'वोट फ्रॉम होम' की सुविधा मिली थी. इनमें 80 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और दिव्यांग वोटर्स थे. 

क्या कहता है ये पैटर्न?

चुनावों में बढ़ा हुआ वोटिंग प्रतिशत दो बात का संकेत देता है. पहला- वोटर्स में सरकार बदलने का उत्साह है. और दूसरा- चुनाव नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं. एग्जिट पोल के सर्वे से भी इसी तरह से संकेत मिलते नजर आ रहे हैं. मीडिया के ज्यादातर एग्जिट पोल में नतीजे सत्ता परिवर्तन के दिख रहे हैं. 

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कर्नाटक में इस बात की पुष्टि इसलिए भी हो जाती है, क्योंकि यहां 1985 के बाद से सत्तारूढ़ पार्टी की वापसी नहीं हुई है. 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी. लेकिन 2018 में कांग्रेस 80 सीटों पर सिमट गई. बाद में कांग्रेस ने जनता दल (सेक्युलर) के साथ मिलकर सरकार बनाई. वो बात अलग है कि एक साल के भीतर ही जेडीएस में फूट पड़ गई और उसके विधायक बीजेपी में चले गए. इस कारण बीजेपी की सरकार बन पाई.  

एग्जिट पोल में कांग्रेस की वापसी के आसार

एग्जिट पोल में कर्नाटक में इस बार कांग्रेस की वापसी के आसार दिख रहे हैं. आजतक-एक्सिस माय इंडिया के एग्जिट पोल के मुताबिक, इस बार कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को पूर्ण बहुमत मिल सकता है. कर्नाटक की 224 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को सबसे ज्यादा 122 से 140 सीटें, बीजेपी को 62 से 80 सीटें, JDS को 20 से 25 सीटें और अन्य को शून्य से तीन सीटें मिलने का अनुमान है. 

वोट शेयर के मामले में भी कांग्रेस पार्टी, बीजेपी से काफी आगे निकल सकती है. एग्जिट पोल में कांग्रेस पार्टी को 42.5%, बीजेपी को 34.5% और JDS को 16.5% वोट मिलने का अनुमान है और सीटों और वोटों के लिहाज से ये स्थिति पिछली बार के मुकाबले काफी अलग है.

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कर्नाटक के पिछले चुनाव का पैटर्न

कर्नाटक में पिछले कुछ सालों में हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न के विभिन्न रुझान देखे गए हैं. चुनाव के आंकड़ों के अनुसार राज्य में अभी तक कुल 14 विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिनमें से करीब आठ मौकों पर पिछले चुनाव की तुलना में मतदान फीसदी में बढ़ोतरी दिखी. 

हालांकि, इन आठ विधानसभा चुनाव में से सत्ताधारी दल केवल एक चुनाव में सत्ता में पांच साल का कार्यकाल हासिल करने में सफल रहा. इसके अलावा बाकी चुनावों में मौजूदा सत्ताधारी पार्टी या तो किसी के समर्थन वापस लेने से या पद छोड़ने के चलते राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. 

साल 1983 में विधानसभा चुनाव में 6.2 फीसदी कम वोटिंग हुई थी. अगर पांच विधानसभा चुनावों के ट्रेंड को देखा जाए तो मौजूदा सत्ताधारी दल केवल साल 2008 के चुनाव में ही जीत हासिल करने में सफल रहा, जहां वोटिंग परसेंटेज में बहुत मामूली गिरावट आई थी.

2018 चुनाव का वोटिंग ट्रेंड

2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनावों में राज्य में सबसे अधिक 72.1 फीसदी मतदान हुआ था. राज्य की राजधानी बेंगलुरु के बाहरी इलाके में स्थित होसकोटे निर्वाचन क्षेत्र में पिछले विधानसभा चुनाव में लगभग 90 फीसदी का सबसे ज्यादा वोटिंग पर्सेंटेज दर्ज किया गया था. वहीं, सबसे कम वोटिंग बेंगलुरु शहर के दशरहल्ली सीट पर देखी गई, जिसमें लगभग 48 फीसदी मतदान हुआ था. 

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कर्नाटक में पिछले चुनावों की तुलना में अब वोटिंग पैटर्न देखें तो लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ्ज्यादा वोटिंग हो रही है. राज्य के लोगों का वोटिंग में रुझान बढ़ा है. साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में 58.49 फीसदी वोटिंग हुई थी जो 2019 में 68.1 फीसदी हो गई. 

वहीं, राज्य में अब तक के सभी विधानसभा चुनाव के वोटिंग पैटर्न को देखें तो तुलनात्मक रूप से  पर्सेंटेज बढ़ता जा रहा है.  राज्य में 1989 से 2019 तक हुए लोकसभा चुनावों में औसतन 64.3 फीसदी मतदान दर्ज किया गया. इसी अवधि के दौरान विधानसभा चुनावों में औसत मतदान 68.4 प्रतिशत रहा है. 

पिछले पांच चुनावों का ट्रेंड

- 1999: कांग्रेस ने जोरदार वापसी करते हुए 132 सीटों पर जीत हासिल की. सत्ताधारी जनता परिवार मात्र 28 सीटें ही जीत सकी. इनमें जेडीयू ने 18 और जेडीएस ने 10 सीटों जीत दर्ज की. संयुक्त रूप से इनका वोट शेयर 24 फीसदी तक गिर गया. एनडीए के हिस्से के रूप में बीजेपी और जेडीयू ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा और 20.7 फीसदी वोट हासिल कर 44 सीटें जीतीं.

- 2004: इस चुनाव में किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई. कांग्रेस के धरम सिंह मुख्यमंत्री बने. उस समय सिद्धारमैया जेडीएस में थे और उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया. हालांकि, दो साल में ही ये गठबंधन टूट गया, क्योंकि जेडीएस नेता कुमारस्वामी ने गुपचुप तरीके से बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा से हाथ मिला लिया. इसके बाद येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. 2006 में जेडीएस ने समर्थन वापस ले लिया. बाद में कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने और येदियुरप्पा डिप्टी सीएम. हालांकि, दो साल में ही ये गठबंधन फिर टूट गया.

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- 2008: इस चुनाव में 110 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी ने निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर बनाई. येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने. 2011 में येदियुरप्पा की जगह सदानंद गौड़ा को मुख्यमंत्री बनाया गया. हालांकि, सदानंद गौड़ा बहुत ही कम समय तक इस पद पर रहे और जुलाई 2012 में उनकी जगह जगदीश शेट्टार सीएम बन गए. इस चुनाव में जेडीएस ने 28 और कांग्रेस ने 80 सीटें जीती थीं.

- 2013: कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर जोरदार वापसी की. उसका वोट शेयर भी 1.8 फीसदी बढ़ गया. पार्टी में टूट की वजह से बीजेपी को भारी नुकसान हुआ. बीजेपी और जेडीएस ने 40-40 सीटें जीतीं. हालांकि, बीजेपी का वोट शेयर बढ़कर 19 फीसदी से बढ़कर 20.1 फीसदी हो गया. सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.

- 2018: इस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी में जोरदार मुकाबला हुआ. कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई. दोनों ने 117 सीटें जीतीं. कांग्रेस ने 80 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि, इस चुनाव में 104 सीटें जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार नहीं बना सकी.

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