झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान की तारीख 30 नवंबर नजदीक आ रही है. सूबे की शीर्ष सत्ता के लिए चुनावी बिसात बिछ चुकी है. सभी उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में उतर चुके हैं. विपक्षी कांग्रेस अन्य दलों के साथ गठबंधन कर भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त देने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है. वहीं हरियाणा के चुनाव नतीजों से सीख लेकर देश की वर्तमान सियासत के चाणक्य अमित शाह भी भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए पूरा दम-खम लगा रहे हैं.
शाह ने शनिवार को दिल्ली में आयोजित आदि महोत्सव के मंच से झारखंड की सियासत साधने की कोशिश करते हुए यह संदेश दिया कि सूबे के विधानसभा चुनाव में विपक्ष की राह आसान नहीं होगी. पांच साल तक सफलतापूर्वक सरकार चलाने वाले मुख्यमंत्री रघुवर दास के गैर-आदिवासी होने पर सवाल उठते रहे हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा समेत अन्य विरोधी दल आदिवासी बहुल राज्य में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर आदिवासी अस्मिता को उभारने और भाजपा को घेरने की कोशिश करते रहे हैं. अमित शाह ने अब आदिवासियों को भाजपा के साथ जोड़े रखने के लिए बिरसा मुंडा कार्ड चल दिया है.
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में आयोजित आदि महोत्सव को संबोधित करते हुए कहा कि आजादी का पहला युद्ध आदिवासियों ने लड़ा था लेकिन इसे इतिहास में जगह नहीं मिली. शाह ने आदिवासियों के लिए मोदी सरकार की ओर से कराए गए कार्यों का जिक्र किया और कहा कि मोदी सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के योगदान को पहचानने और इसके बारे में आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित करने के लिए संग्रहालयों की स्थापना की है.
शाह के इस बयान को गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के मुद्दे को धार देकर भाजपा को बैकफुट पर लाने की दिशा में विपक्षी दलों की रणनीति के काट के तौर पर देखा जा रहा है. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री रघुवर दास गैर आदिवासी समुदाय से आते हैं. विपक्षी दल इस मुद्दे को लगातार उछालते रहे हैं. शाह ने भी आदिवासियों के बीच भगवान का दर्जा रखने वाले बिरसा मुंडा का जिक्र कर न सिर्फ एक नई बहस की शुरुआत कर दी, बल्कि विपक्ष को भी अपनी रणनीति को लेकर एक बार फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया है.