Ambedkar Jayanti 2023: बाबासाहब आंबेडकर के पास कितनी उपाधियां थीं? जानिए कब और कहां से की पढ़ाई
Ambedkar Jayanti 2023: बाबा साहब आंबेडकर का परिवार महार जाति से संबंध रखता था, जिसे अछूत माना जाता था. बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव देखने वाले आंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की थी.
Ambedkar Jayanti 2023: भारत रत्न, भारत के संविधान निर्माता, चिंतक, समाज सुधारक बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के मऊ में 14 अप्रैल 1891 को हुआ था. उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे. डॉ. भीमराव आंबेडकर का जीवन संघर्षों से भरा रहा लेकिन उन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा और दृढ़ निश्चय से जीवन की हर बाधा पर विजय पाई जा सकती है. उनके जीवन में सबसे बड़ी बाधा हिंदू समाज द्वारा अपनाई गई जाति व्यवस्था थी जिसके अनुसार वे जिस परिवार में पैदा हुए थे उन्हें 'अछूत' माना जाता था. लेकिन उनकी प्रतिभा, कभी हार न मानने वाला हौसला, गरीब और पिछड़े लोगों के उत्थान का जज्बा, शिक्षा ऐसी अनगिनत बाते हैं जिनकी वजह से लोग उन्हें याद करते हैं. आइए जानते हैं बाबासाहब के पास कितनी उपाधियां थी और कहां तक पढ़ाई की थी.
भीमराव आंबेडकर की स्कूलिंग दापोली और सतारा में हुई थी. साल 1908 में युवा भीमराव ने एलफिन्स्टोन स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की थी. इस अवसर पर एक अभिनंदन समारोह आयोजित किया गया था और उसमें भेंट स्वरूप उनके शिक्षक श्री कृष्णाजी अर्जुन केलुस्कर ने अपनी पुस्तक 'बुद्ध चरित्र' उन्हें प्रदान की थी.
इसके बाद बड़ौदा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ की फैलोशिप पाकर आंबेडकर ने 1912 बॉम्बे विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में स्नातक किया और बड़ौदा में नौकरी कर ली. संस्कृत पढने पर मनाही होने से वह फारसी से पास हुए.
लगभग उसी समय उनके पिता का निधन हो गया. बी.ए. के बाद एम.ए. की पढ़ाई के लिए बड़ौदा नरेश सयाजी गायकवाड़ की दोबारा फैलोशिप पाकर उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में दाखिला मिला. हालांकि वे बुरे समय से गुजर रहे थे, भीमराव ने कोलंबिया विश्वविद्यालय में आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका जाने का अवसर स्वीकार करने का फैसला किया, जिसके लिए उन्हें बड़ौदा के महाराजा द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की गई.
भीमराव 1913 से 1917 तक विदेश में रहे. इस अवधि के दौरान उन्होंने खुद को एक प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी के रूप में स्थापित कर लिया था. कोलंबिया विश्वविद्यालय ने उन्हें उनकी थीसिस के लिए पीएचडी से सम्मानित किया था, जिसे बाद में 'ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त का विकास' शीर्षक के तहत एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया था. लेकिन उनका पहला प्रकाशित लेख 'भारत में जातियां - उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास' था.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पीएचडी करने के बाद उन्होंने बॉम्बे के एक कॉलेज में पढ़ाया था और मराठी भी निकाली थी. साप्ताहिक जिसका शीर्षक 'मूक नायक' (अर्थ 'गूंगा हीरो') था.
1920 में वे लंदन चले गए, उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनामिक्स एंड पोलिटिकल सांइस में एम.एससी. और डी. एस सी. और ग्रेज इन नामक विधि संस्थान में बार-एट-लॉ की उपाधि के लिए रजिस्टर किया.
1923 तक लंदन में रहने के दौरान, उन्होंने अपनी थीसिस भी पूरी की जिसका शीर्षक था "रुपये की समस्या जिसके लिए उन्हें डीएससी की उपाधि से सम्मानित किया गया था. छात्रवृत्ति की शर्त के अनुसार भारत लौटने के बाद बड़ौदा नरेश के दरबार में सैनिक अधिकारी और वित्तीय सलाहकार का दायित्व स्वीकार किया.
उन्होंने मूक और अशिक्षित और गरीब लोगों को जागरुक बनाने के लिए मूकनायक और बहिष्कृत भारत साप्ताहिक पत्रिकाएं संपादित की और अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी करने के लिए वह लंदन और जर्मनी जाकर वहां से एम. एससी., डी. एससी., और बैरिस्टर की उपाधियां प्राप्त की.
उनके एम. एससी. का शोध विषय 'साम्राज्यीय वित्त के प्राप्तीय विकेन्द्रीकरण का विश्लेषणात्मक अध्ययन' और उनके डी.एससी उपाधि का विषय 'रुपये की समस्या उसका उद्भव और उपाय' और 'भारतीय चलन और बैकिंग का इतिहास' था.
बाबासाहब डॉ. आंबेडकर को कोलंबिया विश्वविद्यालय ने एल.एलडी और उस्मानिया विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की मानद उपाधियों से सम्मानित किया था.
इस प्रकार डॉ. आंबेडकर वैश्विक युवाओं के लिये प्रेरणा बन गए, क्योंकि उनके नाम के साथ बीए, एमए, एम.एससी, पीएच.डी, बैरिस्टर, डीएससी आदि कुल 26 उपाधियां जुड़ी हैं.