{mosimage}आपदा चाहे मानवनिर्मित हो या प्रकृति की देन, सभी सरकारी एजेंसियों की प्रतिक्रिया हमेशा मदद की ही रहती है. और ऐसे में स्थान विशेष के कोई मायने नहीं होते. लेकिन अगर दो त्रासदियों के संदर्भ में देखा जाए-एक जिसका सामना बिहार में कोसी में आई बाढ़ प्रभावित पीड़ितों ने किया और दूसरी जो श्रीलंका में तमिल पीड़ितों ने भुगती-और जिस ढंग से भारत सरकार ने इन दोनों पर अपना रुख दिखाया है, उससे कई विवादों का जन्म होता है.
श्रीलंका के लिए 500 करोड़ रु. की मदद
जहां केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने श्रीलंका के तमिलों के लिए 500 करोड़ रु. आवंटित किए, वहीं उनका केंद्रीय बजट कोसी पीड़ितों की दुर्दशा पर खामोश रहा. इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि कोसी पीड़ितों के लिए विशेष राहत पैकेज से इनकार करने पर बिहार की राजनीति उबल रही है. कोसी में आई बाढ़ से 5 जिलों के 33 लाख लोग प्रभावित हुए थे. मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने आरोप लगाया है कि बिहार की केंद्रीय बजट में पूरी तरह से अनदेखी की गई है. वे पहले ही बिहार के लिए विशेष दर्जा और कोसी बाढ़ पीड़ितों के लिए पुनर्वास पैकेज की मांग कर चुके हैं.
बार-बार कुरेदा गया बिहार का घाव
बिहार सरकार पहले भी बाढ़ पीड़ितों के लिए दीर्घकालिक पुनर्वास पैकेज की मांग कर चुकी है. विडंबना यह कि केंद्र सरकार की ओर से इसके लिए कोई जवाब नहीं आया है. केंद्रीय बजट को संतुलित बताने वाले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लालू प्रसाद यादव ने भी कोसी बाढ़ पीड़ितों के लिए पैकेज का प्रावधान न रखने की आलोचना की है. बात यहीं खत्म नहीं होती. पश्चिम बंगाल के आइला तूफान पीड़ितों के लिए 1,000 करोड़ रु. का बजटीय प्रावधान करके बिहार के घावों को कुरेदने का काम किया गया है. {mospagebreak}कोसी पीड़ित इतने भाग्यशाली नहीं रहे और आज भी विपरीत परिस्थितियों से जूझ रहे हैं.
पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्यों में बाधा
इसके बावजूद, कोसी पीड़ितों को लेकर केंद्रीय बजट में चुप्पी ने बिहार सरकार के पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्यों की राह में बाधा पैदा कर दी है. यही {mosimage}नहीं, पिछले साल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कोसी में आई बाढ़ से हुई तबाही को ''राष्ट्रीय आपदा'' करार दिया था.
बिहार की त्रासदी श्रीलंका की त्रासदी से बड़ी
अगर दोनों परिस्थितियों की तुलना की जाए तो बिहार की त्रासदी श्रीलंका की त्रासदी से बड़ी नजर आती है. जो किसी हद तक बिहार के राजग प्रशासन को चोट पहुंचाने वाली भी है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर नजर दौड़ाई जाए तो लगभग पांच लाख लोग श्रीलंका में आई आपदा के दौरान विस्थापित हुए. दूसरी ओर, बिहार सरकार के रिकॉर्ड इशारा करते हैं कि लगभग 33.29 लाख लोग विस्थापित हुए, 2.27 लाख मकान तबाह हुए, 527 लोगों की मौत हुई और 1,000 लोग लापता हो गए. बिहार में कोसी का तटबंध टूटने से 18 अगस्त 2008 को बाढ़ आ गई थी.
भारतीय करदाताओं के पैसे श्रीलंका पर खर्च
केंद्र ने भारतीय करदाताओं के पैसे को श्रीलंका के पीड़ितों पर खर्च करने का फैसला लिया लेकिन बिहार इससे ठगा-सा महसूस कर रहा है. यूपीए का मजबूत सहयोगी द्रमुक तमिलनाडु में सत्ता में है जो श्रीलंका के मुद्दे को लेकर कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है. दूसरी ओर, बिहार से कोई भी नेता केंद्रीय मंत्रिमंडल में नहीं है. संभवतः यह भी एक कारण हो सकता है कि वित्त मंत्री बिहार के लिए केंद्रीय बजट में किसी तरह का प्रावधान रखना ही ''भूल गए.'' लगता है कि यूपीए सरकार मान रही है कि 1,010 करोड़ रु.-पिछले साल दी गई राष्ट्रीय आपदा आकस्मिकता निधि-बिहार में पुनर्वास और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए पर्याप्त है. लेकिन, बिहार सरकार 1,010 करोड़ रु. की राहत को मामूली भत्ता भर मान रही है. इससे ज्यादा कुछ नहीं.