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चित्रगुप्त, फरिश्ते, देवदूत और शैतान... किस धर्म में कौन कैसे रखता है पाप-पुण्य का लेखा-जोखा

दिवाली के पांचवें दिन कायस्थ समाज भगवान चित्रगुप्त की पूजा करता है, जो पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं. महाभारत में चित्रगुप्त ने सभी आत्माओं का न्याय किया था. उनकी न्यायप्रियता और लेखनी की ताकत का वर्णन विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में मिलता है.

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विश्व के हर धर्म में है चित्रगुप्त जैसी सत्ता की मौजूदगी
विश्व के हर धर्म में है चित्रगुप्त जैसी सत्ता की मौजूदगी

दिवाली के पांचवें दिन कायस्थ समाज अपने कुल देवता के रूप में भगवान चित्रगुप्त की पूजा करता है. चित्रगुप्त महाराज यमराज के सहायक हैं और सभी मनुष्यों के पाप और पुण्यों का लेखा-जोखा रखते हैं. वह न्यायप्रिय हैं और सभी आत्माओं के साथ उनके कर्म के आधार पर न्याय करते हैं. उनके हाथ में लेखनी यानी कलम और एक लिपि (नोटपैड) या बही दिखाई जाती है, जिसमें वह सभी जीवात्मा का कर्म वर्णन करते हैं.

आस्था की हर परंपरा में है पाप-पुण्य का लेखा-जोखा
चित्रगुप्त जैसी सत्ता का जिक्र दुनिया की हर सभ्यता और आस्था की परंपरा में मिल जाती है. उनके नाम अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उनके कर्म लगभग एक जैसे ही हैं. ये कलम की ताकत का सबसे अच्छा उदाहरण है कि कोई कितनी भी ताकतवर बन जाए, लेकिन आखिरी फैसला तो चित्रगुप्त की कलम ही करती है. इसका विवरण महाभारत में बहुत करीने से मिलता है.

कलम की ताकत का स्पष्ट रूप है चित्रगुप्त पूजा

महाभारत के युद्ध में यह स्पष्ट माना जाता है कि पांडव धर्म की ओर थे और कौरव अधर्म की ओर. लेकिन कौन कितना पुण्यात्मा और पापी था, इसका ठीक-ठीक लेखा-जोखा चित्रगुप्त ने ही बताया और उन्होंने किसी के साथ अन्याय नहीं होने दिया. यहां तक कि धर्मराज को भी चित्रगुप्त के कारण ही अपने ही रूप युधिष्ठिर की परीक्षा भी लेनी पड़ी और एक अर्धसत्य के पाप के कारण कुछ पलों का नर्कवास भी कराना पड़ा.

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महाभारत में आता है चित्रगुप्त के दंडविधान का जिक्र
महाभारत युद्ध के बाद जब दोनों पक्षों की आत्माएं यमलोक पहुंची तो चित्रगुप्त ने सभी आत्माओं को उनके अनुसार दंडविधान सुनाया. इस दंडविधान में हर एक छोटी से छोटी घटना का ध्यान रखा गया था. चित्रगुप्त ने एकलव्य की आत्मा को वैसा ही दंड देने को कहा, जैसा कि उसने एक कुत्ते के साथ व्यवहार किया था. एकलव्य ने गुरु द्रोण के कुत्ते का मुंह बाणों से भर दिया था. इसलिए एकलव्य के मुंह को तीर से भर देने का दंड दिया गया.

चित्रगुप्त ने सभी के साथ किया न्याय
इसी तरह दुर्योधन-दुःशासन, कर्ण आदि सभी को यमदूतों ने वैसे ही घेर कर दंडित किया जैसे उन्होंने अभिमन्यु की हत्या की थी. भीम को यमदूतों से मल्लयुद्ध का दंड मिला. अर्जुन पर तीरों की बौछार की गई. चित्रगुप्त ने हर किसी के पाप और पुण्य को जौ और तिल भर भी नहीं छोड़ा था. पांडवों को धरती पर जितना धर्मात्मा होने का गुमान था, चित्रगुप्त की न्याय सभा में किसी की एक नहीं चली और सभी इसकी जद में आए. 

क्यों होती है कलम-दवात की पूजा
यह एक घटना बताती है कि न्याय की लेखनी में कितनी ताकत होती है कि देवताओं को भी उसके आगे झुकना पड़ता है. इसलिए सिर्फ कायस्थ समाज में ही नहीं भारतीय न्याय विधान, दंड विधान और लेखकों में भी चित्रगुप्त का बहुत सम्मान है. इस सम्मान में ही चित्रगुप्त की पूजा कलम-दवात की पूजा के रूप में की जाती है. दिवाली के बाद से ही कलम और दवात को पूजा घर में रखकर विश्राम दिया जाता है. 

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इसके बाद भाई दूज के दिन सुबह भैया दूज मनाने के बाद दोपहर बाद चित्रगुप्त और कलम-दवात, लेखनी- पाठ्य पुस्तकों की पूजा की जाती है. नई कलम को हल्दी-रोली और अक्षत से तिलक किया जाता है और फिर शाम को नई बही की शुरुआत करके फिर से लेखनी उठाई जाती है. इस तरह कलम दवात की पूजा की जाती है.

इस्लाम में भी पाप-पुण्य का लेखा-जोखा
खैर, पाप-पुण्य के लेखा-जोखा की बात करें तो ऐसा हर धर्म और आस्था में देखने को मिलता है. इस्लाम पर ही नजर डालें तो यहां कहा गया है कि हर शख्स के दाएं और बाएं कंधे पर एक दूत बैठे होते हैं. जो उनके अच्छे और बुरे कामों को दर्ज करते रहते हैं. इन्हें किरामन-कातिबिन कहा जाता है. ये दोनों जिंदगी भर इंसान के हर काम पर नजर बनाए रखते हैं.

ईसाई धर्मशास्त्रों में भी है जिक्र
ईसाई धर्मशास्त्रों में भी जिक्र आता है कि हर शख्स के दाहिने कंधे पर एक देवदूत और बाएं कंधे पर एक शैतान बैठता है. दाहिने कंधे वाला देवदूत अच्छे कर्मों का लेखा-जोखा रखता है, जबकि बाएं कंधे पर बैठा शैतान बुरे कर्मों को उकसाता है. बाइबिल की व्याख्या में, यीशु को परमेश्वर के दाहिने हाथ में विराजमान बताया गया है. इसका अर्थ है कि मसीह के रूप में, उन्हें मानवता पर परमेश्वर का अधिकार प्राप्त है. परमेश्वर अच्छे कार्यों की सराहना करता है और जो भी बुरे कर्म का ब्योरा शैतान लेकर आता है, मसीहा परमेश्वर से उनके लिए माफी की मांग करता है, दया दिखाने के लिए कहता है. 

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बौद्ध परंपरा में पाप-पुण्य
जापानी बौद्ध परंपरा में पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखने वाले ऐसे किसी देवदूत या देवता का जिक्र नहीं मिलता है, लेकिन इस परंपरा में कर्म (अच्छे और बुरे) के आधार पर मेरिट तय की जाती है. इसे तय करने वाली सर्वोच्च शक्ति है, जो बुद्ध ही हैं. जातक कथाएं इसी मेरिट के आधार पर लिखी गई हैं. जिसमें तथागत के पूर्व जन्मों के कर्मों का विवरण है और इसी के आधार पर कई रूपों में जन्मों के बाद उन्हें तथागत का जन्म मिला था. 

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