प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को दो दिवसीय दौरे पर रूस पहुंचे जहां उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की है. मंगलवार के दिन दोनों नेताओं के बीच द्विपक्षीय बातचीत होगी और पीएम मोदी 22वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच पीएम मोदी के इस दौरे पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की पैनी नजर है. इसे लेकर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भी एक लेख प्रकाशित किया है और कहा है कि अमेरिका और पश्चिमी देश भारत-रूस के बढ़ते संबंधों से चिंतित हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि पश्चिमी मीडिया मोदी की रूस यात्रा पर बारीक नजर बनाए हुए है. वॉयस ऑफ अमेरिका सहित कई मीडिया आउटलेट्स ने दावा किया है कि दौरे से मोदी का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि चीन-रूस संबंधों का भारत-रूस संबंधों पर कोई असर न हो.
'चीन रूस-भारत संबंधों को खतरा नहीं मानता लेकिन पश्चिम...'
सिचुआन इंटरनेशनल स्टडीज यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर लॉन्ग जिंगचुन के हवाले से चीनी अखबार ने लिखा, 'पश्चिमी देश भारत के रूस के साथ गहरे होते संबंधों से ज्यादा चिंतित हैं. चीन रूस-भारत के करीबी संबंधों को खतरे के रूप में नहीं देखता है जबकि पश्चिमी देश ही रूस के साथ भारत के बढ़ते संबंधों से परेशान हैं.'
ग्लोबल टाइम्स आगे लिखता है कि रूस-यूक्रेन संघर्ष को लेकर चीन को अमेरिका और पश्चिमी देशों से जो आलोचना और दबाव झेलनी पड़ी है, उसके उलट भारत को रूस की निंदा नहीं करने या पश्चिमी प्रतिबंधों में साथ न देने के लिए कम आलोचना का सामना करना पड़ा है. भारत ने तो रूस के साथ संबंध बनाए रखा और उससे तेल खरीदकर यूरोपीय बाजारों में बेचकर खूब मुनाफा कमाया है.
'पश्चिमी देशों ने भारत को अपने खेमे में...'
एक्सपर्ट लॉन्ग के हवाले से चीनी अखबार ने आगे लिखा, 'पश्चिमी देशों ने भारत को अपने खेमे में खींचने और चीन के प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश की है, लेकिन भारत ने जो प्रतिक्रिया दी है, उससे उन्हें निराशा हुई है. पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद, मोदी ने तीसरी बार सत्ता में आने बाद अपने पहले विदेश दौरे के लिए रूस को चुना है. विश्लेषकों ने कहा कि इस कदम का मकसद न केवल रूस के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करना है, बल्कि अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ निपटने में बढ़त हासिल करना भी है.'
अखबार लिखता है कि भारत-रूस रक्षा सहयोग अभी भी बेहद मजबूत है. अमेरिका पर दबाव है कि वो धीरे-धीरे भारत के प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में रूस की जगह ले लेकिन यह इतनी जल्दी नहीं होने वाला. विशेषज्ञ के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि भारत जैसे बड़े देश के लिए रूस के साथ स्थिर संबंध बनाए रखना और रक्षा सहयोग जारी रखना अहम है.
'भारत, चीन, रूस के बीच कलह पैदा करने की कोशिश'
चीनी अखबार लिखता है, 'विश्लेषकों का कहना है कि रूस और पश्चिम दोनों के साथ भारत के संबंध एक जटिल अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य को दिखाते हैं. यह एक ऐसा परिद्श्य है जिसमें देश वैश्विक राजनीतिक माहौल में संतुलन ढूंढते हुए अपने हितों को साधने की कोशिश में हैं.'
लेख के अंत में ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'फिलहाल पश्चिमी देश यही चाहते हैं कि चीन, रूस और भारत के बीच संबंधों को अधिक उछाला जाए. पश्चिमी देश तीनों देशों के बीच कलह पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. लॉन्ग कहते हैं कि अगर पश्चिमी देश ये मानते हैं कि भारत रूस के खिलाफ उनके साथ खड़ा है तो उन्हें यह देखते हुए चिंता करनी चाहिए कि भारत की विदेश नीति अपने हितों की रक्षा करते हुए किसी भी पक्ष की तरफ झुके बिना संतुलन बनाए रखने की है.'
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