भारतीय मूल के अमेरिकी कारोबारी संजय मेहरोत्रा 'वाइब्रेंट गुजरात समिट' में शामिल होने के लिए भारत आए हैं. मेहरोत्रा अमेरिकी कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी के सीईओ हैं. ये कम्प्यूटर मेमोरी और कम्प्यूटर डेटा स्टोरेज की डिवाइसेस बनाती है, जिसमें रैम, फ्लैश मेमोरी और यूएसबी ड्राइव शामिल हैं.
समिट में शामिल होने भारत आए मेहरोत्रा ने कहा कि वाइब्रेंट गुजरात सेमीकंडक्टर जैसी अहम तकनीक पर चर्चा करने के लिए बड़ा मंच है. इससे बड़ा मंच मुझे आज तक नहीं मिला.
मेहरोत्रा की कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी भारत में बड़ा निवेश भी करने जा रही है. गुजरात के साणंद में एक प्लांट भी बना रही है. गुरुवार को उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर इसके बारे में भी जानकारी दी. इससे पहले पिछले साल जून में जब पीएम मोदी अमेरिका की यात्रा पर गए थे, तो माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने भारत में 82.5 करोड़ डॉलर का निवेश करने का वादा किया था.
अक्टूबर 1978 में बनी माइक्रोन टेक्नलॉजी की गिनती दुनिया की बड़ी टेक कंपनियों में होती है. आज के समय में इस कंपनी की मार्केट कैप 91 अरब डॉलर (लगभग 7.5 लाख करोड़ रुपये) है.
आज मेहरोत्रा जहां सबसे बड़ी अमेरिकी कंपनियों में से एक की कमान संभाल रहे हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब अमेरिका ने तीन बार उनकी वीजा एप्लीकेशन को रिजेक्ट कर दिया था.
क्यों कर दिया था वीजा रिजेक्ट?
मेहरोत्रा ने एक इंटरव्यू में इस बारे में बताया था. उन्होंने बताया था कि उनके पिता का सपना था कि वो अमेरिका जाकर पढ़ाई करें. उनका कहना था कि भले ही हम मिडिल क्लास से थे, लेकिन पिता ने बड़े सपने देखे थे. मैं 18 साल की उम्र तक भारत में ही रहा.
उन्होंने बताया था कि स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अमेरिका के वीजा के लिए अप्लाई किया था. अमेरिकी कॉलेज में एडमिशन के लिए 12 साल हाईस्कूल की पढ़ाई जरूरी है, लेकिन भारत में 11 साल ही होती थी. तो पहली बार मेरा वीजा रिजेक्ट कर दिया.
उसके बाद उन्होंने भारत में ही पढ़ाई की. कॉलेज में सेकंड ईयर के दौरान उनका एडमिशन कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हो गया था, लेकिन उस समय उम्र 18 साल नहीं हुई थी. इसलिए दूसरी बार वीजा एप्लीकेशन फिर रिजेक्ट हो गई.
उन्होंने बताया था कि मेरे पिता ने कहा कि हमें हार नहीं माननी है. तो मैंने फिर अप्लाई किया, लेकिन वो भी रिजेक्ट हो गया. इस तरह तीन बार मेरी वीजा एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई.
ऐसे मिला था अमेरिका का वीजा
मेहरोत्रा के मुताबिक, अमेरिका का वीजा मिलने में उनके पिता का बड़ा रोल था. उनके पिता ने एम्बेसी के काउंसलर का पता लगाया और उससे मिलने पहुंचे. पिता ने काउंसलर को बहुत समझाया. आखिरकार 20 मिनट बाद काउंसलर ने पिता से कहा कि ठीक है मैं आपके बेटे को वीजा दूंगा. वो बताते हैं कि मैंने अपने पिता से सीखा कि दृढ़ता ही सफलता की कुंजी है.
वीजा मिलने के बाद मेहरोत्रा अमेरिका पहुंचे. यहां उन्होंने बर्कले की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कम्प्यूटर साइंस की डिग्री ली. साल 2022 में बोइस स्टेट यूनिवर्सिटी ने मेहरोत्रा को डॉक्टरेट की मानद उपाधि दी है.
सैनडिस्क की शुरुआत
1958 में कानपुर में जन्मे संजय मेहरोत्रा ने सैनडिस्क कंपनी शुरू की थी. साल 1988 में उन्होंने एली हरारी और जैक युआन के साथ मिलकर सैनडिस्क कंपनी खोली.
सैनडिस्क ने कम समय में ही अपनी खासी पहचान बना ली. 1995 में ये कंपनी स्टॉक मार्केट में लिस्टेड हो गई. 2011 में मेहरोत्रा सैनडिस्क के सीईओ और प्रेसिडेंट बने. उनके दौर में सैनडिस्क ने सबसे पहले प्लायंट टेक्नोलॉजी को खरीदा. उसके बाद सैनडिस्क कई कंपनियों को अधिग्रहित करती चली गई. साल 2014 में सैनडिस्क ने फ्यूजन आईओ को 1.1 अरब डॉलर में अधिग्रहित कर लिया.
2016 सैनडिस्क को 16 अरब डॉलर में खरीद लिया था. अगले ही साल 2017 में मेहरोत्रा माइक्रोन टेक्नोलॉजी से जुड़ गए. मई 2017 में मेहरोत्रा को माइक्रोन टेक्नोलॉजी का सीईओ नियुक्त किया गया. 2019 में मेहरोत्रा को सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री एसोसिएशन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. ये अमेरिका में सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री की वकालत करने वाला सबसे बड़ा संगठन है.
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