भारत ने मंगलवार को चागोस द्वीपसमूह के मुद्दे पर मॉरीशस को अपना समर्थन दोहराया, जिसकी हिंद महासागर में स्थित द्वीपीय राष्ट्र ने तुरंत सराहना की. चागोस द्वीपसमूह के संबंध में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत का समर्थन व्यक्त किया. जयशंकर द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए मॉरीशस के नेतृत्व के साथ बातचीत की खातिर दो दिन के दौरे पर हैं. ये द्विपक्षीय संबंध हिंद महासागर क्षेत्र के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं.
जयशंकर ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ के साथ एक कार्यक्रम में कहा, 'प्रधानमंत्री जी, जैसा कि हम अपने गहरे और स्थायी संबंधों को देखते हैं, मैं आज आपको फिर से आश्वस्त करना चाहूंगा कि चागोस के मुद्दे पर भारत उपनिवेशवाद के उन्मूलन और राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपने मुख्य रुख के अनुरूप मॉरीशस को अपना निरंतर समर्थन जारी रखेगा.'
भारत भी एक समय ब्रिटेन का उपनिवेश था और संभवतः एक समान औपनिवेशिक अतीत से प्रेरित होकर मॉरीशस के विदेश मंत्री मनीष गोबिन ने तुरंत इस भावना का समर्थन किया. कार्यक्रम के तुरंत बाद गोबिन ने सोशल मीडिया मंच 'एक्स' पर पोस्ट किया, 'हम डॉ. जयशंकर के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं कि उन्होंने चागोस द्वीपसमूह के संबंध में मॉरीशस को लगातार समर्थन दिया है, जो उपनिशेववाद के अंत, संप्रभुता, और क्षेत्रीय अखंडता पर भारत के सैद्धांतिक रुख के अनुरूप है.'
चागोस द्वीपसमूह 60 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला 58 द्वीपों से बना एक प्रवालद्वीप समूह है, जो मॉरीशस के मुख्य द्वीप से लगभग 2,200 किमी उत्तर-पूर्व में और तिरुवनंतपुरम से लगभग 1,700 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है. मॉरीशस सरकार की वेबसाइट के अनुसार, चागोस द्वीपसमूह कम से कम 18वीं शताब्दी से मॉरीशस गणराज्य का हिस्सा रहा है, जब यह एक फ्रांसीसी उपनिवेश था और इसे आइल डी फ्रांस के नाम से जाना जाता था.
क्या है चागोस द्वीप विवाद?
चागोस विवाद हिंद महासागर में स्थित द्वीपसमूह के इर्द-गिर्द केंद्रित है, जिस पर ब्रिटेन ने 1814 में मॉरीशस के साथ दावा किया था. 1966 में ब्रिटेन ने चागोस द्वीप समूह के सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया को अमेरिका को पट्टे पर दे दिया, जो इस क्षेत्र में एक सैन्य अड्डा बनाने की मांग कर रहा था. इस कदम के कारण 1960 और 1970 के दशक में लगभग 2,000 चागोसियन को जबरन हटा दिया गया, जिन्हें सैकड़ों मील दूर मॉरीशस और सेशेल्स में भेज दिया गया.
चागोसियन जो ज्यादातर 18वीं शताब्दी में द्वीपों पर लाए गए अफ्रीकी दासों के वंशज हैं. वे तब से अपने देश लौटने के अधिकार के लिए लंबी कानूनी लड़ाई में लगे हुए हैं. उनके पक्ष में कई ब्रिटिश अदालती फैसलों के बावजूद, ब्रिटेन की सर्वोच्च अदालत ने 2008 में इन फैसलों को पलट दिया.
1968 में ब्रिटेन से आजादी पाने वाले मॉरीशस ने चागोस द्वीप समूह पर अपना दावा लगातार बनाए रखा है. मॉरीशस के पूर्व राष्ट्रपति अनिरुद्ध जगन्नाथ ने इस बात पर जोर दिया था कि चागोस को मॉरीशस से अलग करना संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के खिलाफ है और देश के साथ घोर अन्याय है.
aajtak.in