क्या बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी का राज होगा? इंडिया के लिए एकदम अलग हो सकती है पड़ोसी देश में स्थिति

अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया है. BNP की लोकप्रियता घट रही है जबकि जमात-ए-इस्लामी तेजी से उभर रही है. अगले साल होने वाले चुनाव में अगर सत्ता जमात को मिलती है तो भारत को अपनी रणनीति में बड़े बदलाव करने होंगे.

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बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी की एक रैली (Photo:Jamaat-e-Islami/X) बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी की एक रैली (Photo:Jamaat-e-Islami/X)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:23 AM IST

अगस्त 2024 में बांग्लादेश में जब शेख हसीना सरकार का पतन हुआ तब मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की सत्ता में आने की उम्मीदें जाग गईं. पिछले चुनाव का बहिष्कार करने वाली बीएनपी को लगा कि अगर चुनाव होते हैं तो वही सरकार बनाने की प्रबल दावेदार होगी. लेकिन अब जबकि बांग्लादेश में तख्तापलट को एक साल से अधिक समय बीत गया है, बीएनपी अपनी बढ़त खोती हुई दिख रही है और कभी प्रतिबंधित रही बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी चुपचाप आगे बढ़ती दिख रही है.

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अब यह सवाल गंभीर हो गया है कि क्या जमात-ए-इस्लामी 2026 के फरवरी में होने वाले बांग्लादेश चुनाव में जीत हासिल कर सकती है? गंभीर इसलिए क्योंकि अमेरिका स्थित थिंक-टैंक इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टिट्यूट (IRI) के एक सर्वे के अनुसार, 33% लोगों ने कहा कि वे BNP को वोट देंगे, जबकि 29% ने जमात को पसंद किया. यह सर्वे रिपोर्ट 2 नवंबर को जारी हुई.

सितंबर-अक्टूबर में जुटाए गए आंकड़ों में यह भी सामने आया कि छात्रों की बनाई गई नेशनल सिटिजन्स पार्टी (NCP) को सिर्फ 6% जनता का समर्थन मिला. यह पार्टी उन छात्रों ने मिलकर बनाई है जिनके नेतृत्व में बांग्लादेश में छात्र आंदोलन शुरू हुआ जिसके बाद शेख हसीना को देश छोड़कर जाना पड़ा था.

सितंबर में पहली बार ऐसा हुआ कि जमात के छात्र संगठन 'इस्लामी छात्र शिबिर' ने ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन का चुनाव जीत लिया. इस जीत ने बता दिया कि जमीन पर जनता का मूड क्या है. शिबिर ने इसके बाद जाहानगीरनगर, राजशाही और चटगांव यूनिवर्सिटी में भी छात्र चुनावों में दबदबा कायम किया.

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BNP और जमात के बीच IRI सर्वे में सिर्फ चार प्रतिशत का अंतर है, और चुनाव के करीब आने पर स्थिति किसी भी तरफ जा सकती है.

जमात-ए-इस्लामी की जीत भारत के लिए पैदा करेगी मुश्किल

देवबंदी इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी का संस्थागत स्ट्रक्चर काफी मजबूत रहा है. माना जाता है कि आवामी लीग के बाद संस्थागत मजबूती में जमात ही है और बीएनपी इससे पीछे है.

शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश में उनकी पार्टी आवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और अब वो चुनाव नहीं लड़ सकती. ऐसे में अब मुख्य मुकाबला बीएनपी और जमात के बीच ही है.

भारत के बांग्लादेश और उसके लोगों के साथ ऐतिहासिक संबंध रहे हैं. इस संबंध को बरकरार रखते हुए बांग्लादेश में चुनाव में जो भी जीतकर आएगा, भारत उसके साथ काम करेगा.

लेकिन अगर जमात की जीत होती है, तो भारत को बिल्कुल अलग तरह की रणनीति अपनानी होगी. ऐतिहासिक रूप से, जमात को प्रो-पाकिस्तान माना जाता रहा है और इसके कई नेताओं को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल की तरफ से दोषी ठहराए जाने के बाद फांसी दी जा चुकी है.

BNP और जमात-ए-इस्लामी 2001 से 2006 तक सत्ता में साझेदार रहे और इस दौरान BNP की खालिदा जिया प्रधानमंत्री थीं. 2008 में कार्यवाहक सरकार के तहत हुए चुनाव में आवामी लीग सत्ता में आई और हसीना 2024 में पद से हटाए जाने तक शासन करती रहीं.

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क्यों जमात-ए-इस्लामी BNP से आगे बढ़ रही है

बांग्लादेश की राजनीति पर पैनी नजर रखने वालों के लिए, बीएनपी के मुकाबले जमात का उभरना कोई बड़ा आश्चर्य नहीं है. इसके कई कारण हैं जैसे-

पहला- बांग्लादेश में ऐसे चुनावी उलटफेर का इतिहास रहा है. 2001 में BNP ने 300 में से 193 सीटें जीती थीं, जबकि आवामी लीग, जिसकी जीत की उम्मीद थी, सिर्फ 66 सीटों पर सिमट गई. हालांकि आरोप लगे थे कि चुनाव में न्यायमूर्ति लतीफुर रहमान के नेतृत्व वाले कार्यवाहक सरकार ने हेरफेर किया था. 

दूसरा- BNP की बढ़ती अराजक छवि- बीएनपी को लेकर बांग्लादेश में असंतोष की स्थिति है. कुछ BNP समर्थक वसूली, धमकी और जमीन कब्जे जैसी घटनाओं में संलिप्त पाए गए हैं जिससे आम लोगों में पार्टी के प्रति डर और नाराजगी पैदा हुई है.

बांग्लादेश के लोग हसीना की सरकार को लेकर जैसे विरोधी बन रहे थे, बीएनपी के साथ अब वैसा ही दिख रहा है. NCP के कुछ नेताओं पर भी हुक्मरानों जैसी हरकतें करने के आरोप लगे हैं.

तीसरा- तीसरी बात ये कि जमात ने अपनी छवि में काफी सुधार किया है. स्थानीय लोगों के अनुसार, जमात के लोग बांग्लादेश में बीएनपी और अन्य कट्टर संगठनों की तरफ से परेशान किए जा रहे लोगों, भले ही वे हिंदू हों, की मदद कर रहे हैं.

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देश में पुलिस बल अब भी कमजोर है, इसलिए जमात रक्षक की छवि पेश कर रही है जो उसके पक्ष में वोट ला सकती है.

अगर आवामी लीग (जिसे हिंदू वोटों का बड़ा हिस्सा मिला था) को चुनाव से बाहर रखा जाता है, तो अल्पसंख्यक या तो वोट देने से बच सकते हैं या जमात को समर्थन दे सकते हैं.

क्या BNP का वोट बैंक जमात की ओर शिफ्ट हो रहा है?

बांग्लादेश के लोगों में हसीना सरकार के प्रति गुस्से से बीएनपी को फायदा हो रहा था लेकिन लोगों में शेख हसीना के लेकर गुस्सा कम हुआ है. और जैसे-जैसे ये हो रहा है बीएनपी का फायदा भी घट रहा है.

जमात चुनाव सुधारों की मांग उठा रही है और मध्यमार्गी इस्लामिस्ट, स्वतंत्रता सेनानी परिवारों और बिजनेस क्लास जैसे BNP के प्रमुख वोटरों को आकर्षित करती दिख रही है.

वहीं, BNP नेतृत्व अंदरूनी संकट से गुजर रहा है, खालिदा जिया लाइफ सपोर्ट पर हैं और तारीक रहमान, जो लंदन में हैं, अब भी सुरक्षा खतरे के कारण वापस नहीं आ पा रहे.

जमात को 2014 से चुनाव लड़ने से रोका गया था और 1 अगस्त 2024 को हसीना सरकार ने उस पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया. हालांकि 2008 के चुनाव में जमात को सिर्फ 4.28% वोट मिले थे (और 1970 में अधिकतम 6.03%), लेकिन मौजूदा राजनीतिक माहौल पूरी तरह बदल चुका है.

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भारत के लिए जमात का उभार क्यों महत्वपूर्ण है

हसीना सरकार के अंतिम चरण (2021 के बाद) में भारत-विरोधी भावना और पाकिस्तान समर्थक तत्वों में वृद्धि हुई. यूनुस की अगुवाई वाली केयरटेकर सरकार में कट्टरपंथियों को खुली छूट मिल गई है.

पिछली BNP-जमात सरकार (2001–2006) भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से बेहद चुनौतीपूर्ण रही. भारत विरोधी आतंकवादियों और जिहादी तत्वों ने भारत विरोधी गतिविधियों के लिए बांग्लादेश की जमीन का भरपूर इस्तेमाल किया. भारत भेजे जा रहे हथियारों से भरे 10 ट्रक 2004 में पकड़े गए. गृहमंत्री रहे लुत्फोज्जमान बाबर को 2007 में अवैध हथियार रखने के आरोप में 10 साल की सजा हुई थी. हसीना के हटने के कुछ महीनों बाद बाबर रिहा हो गए

विशेषज्ञों का मानना है कि फरवरी 2026 के चुनाव से पहले बांग्लादेश में कई बड़े घटनाक्रम देखने को मिल सकते हैं. BNP और जमात के बीच सिर्फ चार प्रतिशत का अंतर है, इसलिए नतीजे कभी भी किसी भी दिशा में जा सकते हैं. भारत को हर स्थिति के लिए तैयार रहना होगा. 

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