काबुल अब सिर्फ 90 KM दूर, अफगानिस्तान के लोगार प्रांत पर भी तालिबान ने किया कब्जा

अफगानिस्तान में हर बदलते दिन के साथ तालिबान का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. पिछले एक हफ्ते में तालिबान ने बहुत तेज़ी से अफगानिस्तान के कई शहरों पर कब्जा जमा लिया है और अब वह राजधानी काबुल के बहुत करीब है.

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अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाकों में अब तालिबान का कब्ज़ा (पीटीआई) अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाकों में अब तालिबान का कब्ज़ा (पीटीआई)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 अगस्त 2021,
  • अपडेटेड 1:53 PM IST
  • अफगानिस्तान के 12 प्रांतों में तालिबान का कब्जा
  • कंधार, हेरात, गजनी जैसे बड़े इलाके भी कब्जे में

अफगानिस्तान (Afghanistan) में हर बदलते दिन के साथ तालिबान (Taliban) का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है. पिछले एक हफ्ते में तालिबान ने बहुत तेज़ी से अफगानिस्तान के कई शहरों पर कब्जा जमा लिया है और अब वह राजधानी काबुल के बहुत करीब है.

अफगानिस्तान के बड़े शहरों में शुमार कंधार, गजनी और हेरात पर भी अब तालिबानी लड़ाकों का कब्जा है, जिसने दुनिया में एक बड़ा संदेश पहुंचाया है. शुक्रवार को आई ताज़ा जानकारी के मुताबिक, तालिबान ने अब अफगानिस्तान के लोगार इलाके पर कब्जा कर लिया है. अब यहां से काबुल सिर्फ 90 किमी. दूर ही है. 

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एक-एक कर तालिबान के कब्जे में आए बड़े शहर...

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना (American Army) के वापस लौटने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से ही तालिबान का कब्जा बढ़ता ही जा रही है. अफगानिस्तान के कुल 34 प्रांत में से करीब 12 से अधिक प्रांतों पर अब पूरी तरह से तालिबान का कब्जा है. कंधार अफगानिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा शहर है, ऐसे में यहां पर तालिबान का कब्जा होना एक बड़ा खतरा है. 

जानकारी के मुताबिक, गुरुवार देर रात को तालिबानियों ने कंधार (Kandhar) पर धावा बोला. देर रात को ही कंधार से सरकारी कर्मचारी और अन्य लोग शहर छोड़कर भाग गए.

क्लिक करें: खुद को हारते देख अफगान राष्ट्रपति गनी ने तालिबान को दिया ये प्रस्ताव: रिपोर्ट

कंधार के बाद अफगानिस्तान का तीसरा बड़ा शहर हेरात (Herat) भी तालिबानी लड़ाकों के कब्जे में आ गया है. हेरात में तालिबानी लड़ाकों ने यहां की ऐतिहासिक मस्जिद पर कब्जा जमाया, इस इलाके का संबंध एलेक्सजेंडर द ग्रेट से है. लेकिन अब यहां की सभी सरकारी बिल्डिंगों पर तालिबान का कब्जा हो गया है. 

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पहले सरेंडर किया, फिर भागे अफगानी सैनिक

अगर गजनी (Gazani) इलाके की बात करें तो ये भी अब तालिबान के कब्जे में है. गजनी पर तालिबान का कब्जा होने का मतलब है कि अब वह सीधे काबुल के संपर्क में है. यानी से हाइवे सीधे राजधानी को लिंक करता है. इसी के साथ आज एक बार फिर तालिबान बीस साल पुरानी स्थिति में आ गया है, जहां देश के सबसे अहम इलाकों पर सिर्फ उसका ही परचम था.

एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, हेरात और गजनी के कुछ इलाकों में अफगानी सैनिकों और कुछ सरकारी कर्मचारियों ने तालिबानी लड़ाकों के सामने सरेंडर कर दिया. इसके बाद वह वहां से भाग गए. तालिबानी लड़ाकों की ओर से एक वीडियो भी जारी की गई, जिसमें सैनिकों ने उनके सामने सरेंडर किया और फिर तालिबान की इजाजत लेकर वहां से सुरक्षित जा निकले. 

अपने कर्मचारियों के लिए सैनिक भेजेगा अमेरिका 

अफगानिस्तान में बढ़ते हुए संकट के बीच अमेरिकी सरकार ने घोषणा की है कि वह अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों की कमी का समर्थन करने के लिए काबुल हवाई अड्डे पर हजारों सैनिकों को तैनात करेगी, क्योंकि युद्धग्रस्त इलाकों में सुरक्षा की स्थिति लगातार बिगड़ जा रही है.

विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा है कि बढ़ती सुरक्षा स्थिति के मद्देनजर हम काबुल में अपने नागरिकों की संख्या कम कर रहे हैं. हम आने वाले हफ्तों में अफगानिस्तान में एक प्रमुख राजनयिक उपस्थिति की ओर आकर्षित होने की उम्मीद करते हैं. उन्होंने कहा, इस कमी को आसान बनाने के लिए, रक्षा विभाग हामिद करजई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अस्थायी रूप से अतिरिक्त कर्मियों को तैनात करेगा. 

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क्या है तालिबान? क्या है इसकी ताकत

तालिबान का उभार अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था. पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी. तालिबान पर देववंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है. तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया.

शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है. शुरू-शुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी लेकिन तब तक तालिबान इतना पावरफुल हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई.

(एजेंसियों के इनपुट की मदद से)

 

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