उत्तर प्रदेश में विधान परिषद (एमएलसी) की स्नातक कोटे की तीन और शिक्षक कोटे की दो सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी अपने वर्चस्व जमाए रखने में कामयाब रही जबकि सपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी. पांच सीटों में से चार सीटें बीजेपी ने जीत ली है जबकि एक सीट निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में जाती हुई दिख रही है. विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी के लिए समाजवादी पार्टी को एक बार फिर से लंबा इंतजार करना होगा.
बीजेपी चार सीटों पर जीती
स्नातक कोटे की तीनों एमएलसी सीटें बीजेपी जीतने में कामयाब रही. साथ ही एक शिक्षक कोटे की सीट भी अपने नाम कर ली है. स्नातक कोटे की गोरखपुर-फैजाबाद सीट पर बीजेपी देवेंद्र प्रताप सिंह ने जीत दर्ज की है. बीजेपी ने बरेली-मुरादाबाद सीट पर हैट्रिक लगाते हुए तीसरी बार बीजेपी के जयपाल सिंह व्यस्त ने जीत का परचम फहराया है. बीजेपी ने यह सीट लगातार आठवीं बार जीती है. कानपुर-उन्नाव सीट पर बीजेपी के अरुण पाठक ने जीत दर्ज की है. यह तीनों एमएलसी सीटें पहले भी बीजेपी के पास थी और पार्टी ने एक बार फिर से अपना दबदबा बनाए रखा.
एक सीट निर्दलीय को मिली
वहीं, शिक्षक कोटे की झांसी-इलाहाबाद एमएलसी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी बाबूलाल तिवारी को निर्वाचित घोषित किया गया है, जहां शर्मा गुट का पहले कब्जा था. कानपुर-उन्नाव शिक्षक कोटे की एमएलसी सीट पर निर्दलीय राज बहादुर सिंह चंदेल अपने निकटतम प्रतिद्वंदियों से आगे चल रहे हैं. तकरीबन उनकी जीत तय मानी जा रही है. हालांकि, खबर लिखे जाने तक अभी उनके जीत की अधिकारिक घोषणा नहीं की गई है.
सपा की उम्मीदों पर फिर पानी
शिक्षक-स्नातक कोटे की पांच एमएलसी सीटों के चुनाव में सपा को सियासी तौर पर बड़ा झटका ही नहीं लगा बल्कि उसकी उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है. सपा ने एमएलसी चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और अपने तमाम बड़े नेताओं को जिले स्तर पर जिम्मादारी सौंप रखी थी. सपा की कोशिश थी कि कम से कम एक एमएलसी सीट पर जीत हो जाए ताकि विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी दोबारा से हासिल हो जाए. सपा की यह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी.
बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही सपा की सियासी ताकत विधान परिषद में घटती गई और बीजेपी का कद बढ़ता गया. पिछले साल जुलाई में सपा ने विधान परिषद से नेता प्रतिपक्ष का पद भी गवां दिया, क्योंकि विधान परिषद के कुल 100 सदस्यों में से सपा के पास सिर्फ 9 सदस्य हैं जबकि नेता प्रतिपक्ष के लिए कम से कम 10 फीसदी सदस्यों का होना जरूरी है. ऐसे में सपा एक एमएलसी सीट जीतकर अपने 10 सदस्य करना चाहती थी, लेकिन बीजेपी की रणनीति के आगे वह सफल नहीं हो सकी.
बीजेपी की बढ़ी ताकत
विधानसभा की तरह विधान परिषद में भी बीजेपी की ताकत लगातार बढ़ती जा रही है. स्नातक-शिक्षक कोटे की 5 एमएलसी सीटों पर चुनाव हुए हैं, उनमें से चार सीटें बीजेपी ने जीत ली है जबकि पहले उसके पास तीन सीटें थीं. इस तरह बीजेपी को एक सीट का फायदा मिला है. बीजेपी को फायदा शिक्षक कोटे की झांसी-इलाहाबाद सीट पर मिली है. बीजेपी पहले शिक्षक कोटे की सीटों पर चुनाव नहीं लड़ करती थी, लेकिन 2021 के एमएलसी चुनाव से किस्मत आजमाने लगी है. पिछली बार उसे जफरदस्त फायदा मिला था.
शिक्षक कोटे की दो सीटों पर चुनाव हुए हैं, जिसमें झांसी-इलाहाबाद एमएलसी सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी बाबूलाल तिवारी ने जीत दर्ज की है. यह सीट पहले शिक्षक संघ शर्मा गुट के पास थी, जिस पर बीजेपी ने कब्जा जमाया. कानपुर-उन्नाव शिक्षक कोटे की सीट चंदेल गुट के पास थी. एक बार फिर से कानपुर-उन्नाव शिक्षक कोटे की एमएलसी सीट पर निर्दलीय राज बहादुर सिंह चंदेल जीत दर्ज करते नजर आ रहे हैं,
विधान परिषद में स्थिति
विधान परिषद (एमएलसी) में बीजेपी के 73 सदस्य हैं, जो सबसे ज्यादा है. इसके बाद सपा के 9, बसपा के 1, शिक्षक गुट के 2, निर्दलीय के कोटे से 4, अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस), संजय निषाद की निषाद पार्टी, रघुराज प्रताप सिंह की जनसत्ता दल के एक-एक सदस्य हैं तो पांच सीटें रिक्त हैं. ऐसे में 5 विधान परिषद सीटों पर चुनाव होने के बाद बीजेपी की संख्या बढ़ गई है तो शिक्षक गुट की एक सीट घट गई है.
कुबूल अहमद